किसी अपने का दूर हो जाना वह भी जीवित ही काफी दर्दनाक है. मृत्यु तो सब्र दे जाती है, पर सांसों के रहते छोड़कर चले जाना असहनीय होता है. कभी पढ़ने के लिए, कभी खेलने के लिए, कभी अनायास ही घूमने जाने के लिए निकले बच्चों व अन्य सदस्यों के इंतजार में परिवार के लोगों की सुबह शाम में परिवर्तित हो जाती है. इंतजार लंबा होता जाता है. कहां रह गए, किस काम में इतनी देर हो गई, कहीं कुछ अनिष्ट तो नहीं हो गया या कोई दुर्घटना? सोचते ही कलेजा मुंह को आने लगता है. चेहरे का रंग उड़ जाता है. भूख मर जाती है और आंखें अपनों को तलाशने लगती हैं पर अपने नजर नहीं आते. घर की दहलीज लांघते वक्त खुशी-खुशी जल्दी आने की कहकर जाने वाले जब नहीं लौटते हैं तो जिंदगी प्रश्नवाचक बन जाती है. स्थिति चिंताजनक हो जाती है.
असंख्य लोग भटक कर, रास्ता भूलकर या किसी दुर्घटना का शिकार होकर ऐसे गंतव्य पर पहुंच जाते हैं जहां से घर लौटना मुश्किल हो जाता है. इसमें अपहरण की भूमिका भी महत्वपूर्ण हो जाती है. कितनों का तो अपहरण ही कर लिया जाता है. हालांकि, अपहरण की घटनाओं में कमी आई है पर जो भी इन हादसों के शिकार होते हैं वे तन-मन पर बहुत झेलते हैं. गुमशुदा होना बड़ा सामान्य हो गया है. स्वेच्छा से, अनिच्छा से या दूसरे की इच्छा से राह का भटकाव होना घर वापसी के द्वार बंद कर देता है. कितने ही बच्चे खेलते-खेलते कितनी दूर निकल जाते हैं. रास्ता भूल जाते हैं. कई बार कितनी युवतियां गलत ट्रेन या बस में सफर करते हुए ऐसी जगह पहुंच जाती हैं कि लौटने में बहुत मुश्किलें बढ़ जाती है. कोई किसी के बहकावे में आकर घर छोड़ देतें हैं. तनिक-तनिक बातों में नाराज होकर भी घर से निकल जाते हैं और गलत हाथों में पड़ जाते हैं. कुछ बच्चे, महिलाएं या पुरुष भी अपराधी तत्वों द्वारा बंधक बना लिए जाते हैं और इनके साथ दुराचार होता है. इनके सकुशल लौट आने की संभावना ही खत्म हो जाती है.
सुरेश किसी काम के सिलसिले में घर से निकला पर आज कई साल व्यतीत होने के बावजूद उसका कुछ पता नहीं. पत्नी के लिए इंतजार की घड़ियां इतनी लंबी हो गई कि छठी कक्षा में पढ़ने वाले बेटे के विवाह की तैयारियां होनी शुरु हो गईं. ऐसा इंतजार हर घड़ी रुलाने वाला था. हर रस्म की गई पर हर आहट पर दिल पर दस्तक होती कि शायद अब लौट आएं. कहां, कहां नहीं ढूंढा. किस किससे नहीं पूछा? हार थककर बैठ गए पर मन ने कभी नहीं माना कि दुनिया में नहीं हैं. 20 वर्ष पूर्व गए सुरेश का कोई पता नहीं पर इंतजार आज भी है. पत्नी का जीवन भी ठहर गया है. ना जीने में ना मरने में. सारी उदासियां जैसे झोली में एक साथ गिर गई हों. व्यक्ति यदि संसार छोड़ दे तो भी सब्र आ जाए. उसका इंतजार खत्म हो जाए कि अब तो उसके बिना जीना ही पड़ेगा पर जो ऐसे चले जाएं उनका कैसे सब्र करें? उनका इंतजार कभी खत्म नहीं होता. सुरेश की पत्नी आज भी सुहागन बनी उसका इंतजार करती हैं.
कहीं एक किस्सा नहीं दर्द की लंबी कभी ना खत्म होने वाली दास्तान है. नन्हा किशोर पड़ोस के बच्चों के साथ ही तो खेल रहा था. माता-पिता लाख सचेत रहें कभी-कभी अनदेखी हो ही जाती है. पता नहीं कौन बहला-फुसलाकर ले गया. मां-बाप की तड़प का अंदाजा कौन लगाए? कहां चला गया जिगर का टुकड़ा? हर पल भारी हो गया. बदहवास दौड़े, ढूंढा पर नहीं मिला. क्या करें कहां जाएं? जो दुनिया की भीड़ मे खो जाते हैं, उन्हें कहां तलाशे? क्या जतन करें? कभी-कभी बिछड़े हुए जब मिलते हैं तो चमत्कार ही होता है पर जिनके साथ चमत्कार नहीं होते वे तो मौत से बद्तर जिंदगी जीने को विवश हो जाते हैं. सबसे मदद की याचना करते अखबारों में इश्तहार देते हैं. मीडिया का सहारा लेते हैं. अपनों की तलाश में जमीन-आसमान एक कर देते हैं.
कई बार तो अनिष्टकारी विचार भी आते हैं किसी ने मार ना दिया हो. किडनी ना निकाल ली हो. ऐसे गैंग भी मुखर हो रहें हैं जो लोगों के अंगों का सौदा कर लेते हैं. अंगों की तस्करी की खातिर अपहरण कर लेते हैं. मुंह मांगें दाम मिलते हैं. ताकतवर के सामने कमजोर पड़ जाते हैं. निरीह लोग ऐसे व्यक्तियों के आगे बेबस और असहाय हो जाते हैं. कौन लोग हैं जिनके अंदर की मानवता मर गई है जो अंगों के बेचने का काम करते हैं, जो हंसते खेलते परिवार उजाड़ देते हैं? राजीव जी ट्रेन में सफर कर रहे थे. पत्नी का फोन आया तो उन्हें जानकारी दी कि वे सकुशल हैं. कल तक घर आ जाएंगें. फोन रखा ही था कि सभ्य से दीखने वाले शख्स ने कहा कि माता के दर्शन कर आ रहा है. प्रसाद राजीव जी को भी दिया. खाते ही ऐसे सोए कि कई घंटे की सुध-बुध ही नहीं रही. जहां जाना था वहां ना जाकर कहीं और ही पहुंच गए. मोबाइल, पैसे, घड़ी सब नदारद. आंख खुली तो आभास ही नहीं कि कहां हैं. पुलिस से संपर्क साधा तो घर वापसी हुई.
अखबार के किसी कोने में गुमशुदा का कॉलम देखकर मन वेदना से भर जाता है. क्या ये कभी अपनों से मिल पाएंगे? कहां चले गए होंगे कौन ले गया होगा? क्या हुआ होगा असंख्य प्रश्न मस्तिष्क में कौंधने लगते हैं. अपने ना होकर भी ये अपने लगते हैं और दुआओं के लिए ईश्वर के आगे नतमस्तक हो जाते हैं. षड्यंत्र के तहत भी कई बार अनेक लोग झांसे में आ जाते हैं और उनके साथ अनहोनी हो जाती है. कई बार छोटी सी बात पर अपने अपनों से रूठ जाते हैं. कहीं चले जाते हैं. बिछड़ने का दर्द बिछड़ने के बाद ही पता चलता है. अपने परिवार से कितना भी नाराज हों पर गुमनाम ना हों. गुमशुदा जिंदगी से खुशियां रूठ जाती हैं. परिवार में मायूसियां छा जाती हैं.
पुलिस की टीमें इसमें बहुत सहयोग कर रही हैं. अनेकों प्रदेशों से लापता लोगों को उनके स्वजनों को सुपुर्द कर पुलिस देश के गौरव में वृद्धि कर रही है. बिछड़े बच्चों महिलाओं को अपने संबंधियों तक पहुंचाने में एएचटीयू की टीम काम कर रही है. गुमशुदा बच्चों को उनके घर तक पहुंचाने के लिए ऑपरेशन मुस्कान चलाया जाता है. एंटी हयूमन ट्रैफिकिंग यूनिट भी बिछड़ी महिलाओं और बालिकाओं को मिलाने का काम करती है जिनके स्वजन अपनों से बिछड़ हैं. उन्हें शीघ्रातिशीघ्र अपने घर की चौखट मिले. वे जिंदगी की खुशियों को भरपूर जीयें. अपहरण और गुमशुदा जैसे दर्द देने वाले शब्दों की सच्चाई से किसी का सामना ना हो. अपराधी भी कानून की गिरफ्त में हों.
समसामयिक विषयों पर लेखन. शिक्षा, साहित्य और सामाजिक मामलों में खास दिलचस्पी. कविता-कहानियां भी लिखती हैं.
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