दान कहने को तो दो अक्षर का शब्द है पर इसके मायने बहुत बड़े हैं अपने अंतर में सृष्टि का सार छिपाए इसका अर्थ खोजें तो शब्द कम पड़ जाएं. महाभारतकालीन कर्ण ने याचक बनकर आए इंद्र को अपने कवच-कुंडल देकर विशाल मन का परिचय दिया. स्वयं लहूलुहान हो गए पर याचक को खाली हाथ नहीं जाने दिया था. वामन बनकर आए प्रभु को राजा बलि ने तीन पगों में सब कुछ दे दिया था. हरिश्चंद्र ने स्वप्न के आधार पर ही अपना राज्य दे दिया था. दधीची ने अपनी हड्डियों का वज्र बना दिया था.
इतिहास गवाह हैं कि देने वालों की कमी नहीं रही. दानवीरों की गाथाओं से संसार में उजाला है हर युग में हर काल में. स्वेच्छा से किसी की आवश्यकताओं को पूरा करने का साहस हर किसी में नहीं होता है. बिरले ही होते हैं जो दूसरों के लिए कुछ भी करने के लिए सहर्ष तैयार हो जाते हैं.
ईश्वर द्वारा दिया गया यह जीवन अनमोल है. किसी एक अंग की कमी जीवन को निराशा में डूबो देती है. असंख्य लोग अंगों की कमी की वजह से दर्दनाक जिंदगी जीने को विवश है. उनके प्रति सहानुभूति तो होती है पर कोई कुछ कर नहीं पाता. बेबस जिंदगी से जूझते व्यक्तियों के काम आना, उनके लिए सोचना, मरकर भी दूसरों के लिए कुछ कर गुजरना बड़ी दिलेरी का काम है. मरना तो है ही, अपने अंग देकर जाने वाले सदैव के लिए जीवित हो जाते हैं. अंगदान कर दूसरों को जीवन देने वाले श्रद्धेय व्यक्ति स्वयं तो दुनिया से प्रयाण कर जाते हैं पर जाते-जाते उन निरीह, निराश, असहाय लोगों के जीवन में प्राण फूंक जाते हैं. जो जीवन से निराश होते हैं, हंसती, खुशहाल जिंदगी जिनके लिए सिर्फ एक सपना होती है, जो अपना हर पल आहें भरकर सिसकता हुआ काटते हैं.
ये दुनिया कितनी भी निर्मोही क्यूं ना हो आज भी जीवंतता लोगों में कूट-कूट कर भरी है. उत्साहित जीवट कुछ लोग ऐसा कर गुजरते हैं जिसकी सामान्य लोग कल्पना भी नहीं कर सकते हैं. रक्तदान कर सैकड़ों व्यक्ति कितनी ही बार असंख्य जिंदगी बचाने मे सहयोग करते हैं. आंखें जो इतनी मूल्यवान होती हैं, उन आंखों का महादान अपने जीते जी ही कर देते हैं. तनिक गौर करें तो आम आदमी अपनी छोटी-छोटी चीजों के लिए लड़ते रहते हैं पर इनका साहस देखिए जो स्वेच्छा से कहते हैं कि मरने के बाद यदि उनकी आंखें किसी के काम आ जाएं तो वह दान कर देगें. कोई किसी को अपनी आंखें दे देता है तो कोई किसी को अपनी किडनी.
वि़ज्ञान की प्रगति की बात करें तो कितना सहज हो गया हैं अंगों का प्रत्यारोपण. चमत्कारों ने जीवन के मायने ही बदल दिए हैं. यद्यपि असंख्य बीमारियों ने अपना वर्चस्व कायम कर रखा है तब भी चिकित्सा जगत की सफलता भी कम आश्चर्यजनक नहीं है. डॉक्टरों के कार्य व प्रयास सराहनीय हैं. अंग प्रत्यारोपण कर निराश व्यक्तियों के जीवन को खुशियों से भर देने वाले समाज में देवदूत बनकर उभर रहे हैं. जहां एक ओर दुष्प्रवृति के लोगों द्वारा एक दूसरे को मारना, कत्लेआम करना सामान्य बात है, वहीं अपने अंगों को दूसरों के लिए देने वाले भी कम प्रशंसित नहीं हैं. ऐसी विचारधारा और संकल्प लाचार व्यक्तियों के लिए वरदान है.
प्रायः सुनते रहते हैं कि किसी ने अपने दोस्त को किडनी देकर उसकी जान बचाई तो किसी ने हर महीने रक्त देने का संकल्प ले रखा है. धन्य है वह परिवार जिसके एक सदस्य का जब ब्रेन डैड घोषित कर दिया गया तो उन्होंने उसके शरीर को दान करने का निर्णय लिया. उस एक व्यक्ति के अंगों से छह लोगों के जीवन में रंग भर गए. कितना महान कार्य और दान कि मरने के बाद भी छह व्यक्ति खुशियों भरी जिंदगी जी सके! किसी को आंखों की रोशनी मिली तो किसी का दिल धड़कने लगा. किसी को किडनी तो किसी को लीवर मिला. अन्य अंगों के दान से लेने वालों की कृतज्ञता भी जन्म-जन्म तक ऋणी हो गई.
कितने जीवन जो अंगों की कमी से जूझते रहते हैं, इन दान-दाताओं की कृपा से स्वाभाविक जीवन के सुख को भोग रहे हैं और मृतक के परिवार वाले जो अपनों के जाने से दुःखी होते है, उसके अंगों को दूसरों में देखकर उनके अपने के निकट होने के अहसास में जिंदगी व्यतीत कर देते हैं. पर ये सब इतना आसान नहीं होता. कितना झेलते होगें तन और मन की पीड़ा को बयान नहीं किया जा सकता है. जीवित व्यक्ति अपना कुछ भी देने से पहले सौ बार सोचता है. ये माया मोह उसे कुछ करने ही नहीं देती. अपने प्राणों को संकट में डालकर किसी के लिए कुछ भी करना महान कार्य है. कुछ मरने के बाद अंगदान करते हैं, कुछ जीवित ही ये निर्णय ले लेते हैं. निस्वार्थ भावना का यह रिश्ता केवल संबंधों का नहीं होता, मानवता का होता है. इस रिश्ते की कोई परिभाषा नहीं होती, ये अटूट होता है, मूल्यवान होता है. दान देने के लिए उम्र का बंधन नहीं होता.
अपने जीवन काल में ही हम अपने अंगों के दान का संकल्प कर सकते हैं. लीवर, फेफड़े, गुर्दे, आंखें और दूसरे अंगो को देने या देहदान के लिए अनेक फाउंडेशन संस्थाएं हैं जिनमें रजिस्ट्रेशन करवा सकते हैं. मृत्यु पश्चात् परिवार के सदस्य संपर्क करके संबंधित प्रक्रिया को अंजाम दे सकते हैं. पांच, सात घंटे के बाद शरीर दे देना चाहिए. सिसकते व्यक्ति को जीवन देना बहुत पुण्य का काम है. परोपकर की भावना सबमें नहीं होती है. बहुत से लोगों को पता भी नहीं होता कि देहदान की जा सकती है. हम अपने जीवन काल में ही देह का दान कर सकते हैं. कोई दांवपेंच या जटिल काम नहीं है. कोई प्रमाणपत्र भी नहीं बनवाना पड़ता है. सादे पेपर पर अपनी इच्छा को व्यक्त कर निर्णय ले सकते है. सक्रिय संक्रमण की वजह से विभिन्न बीमारियों जैसे एड्स, कैंसर आदि के रोगियों को अंगदान नहीं करने चाहिए.
इस अनिश्चित जीवन का कुछ पता नहीं कब समाप्त हो जाए. सुंदर देह जिसे हर पल सजाते संवारते हैं, उसे देने की तो सोच भी नहीं सकते पर जो दूसरों दे जाते हैं, वो इंसान जिंदगी को सही मायनो में जी जाते हैं. वे ईश्वर का ही प्रतिरुप हैं. देहदान से शरीर विज्ञान के विद्यार्थियों के भी ज्ञान रुपी भंडार के द्वार खुलते हैं और जिंदगी से निराश लोगों के जीवन में आशा का संचार होता है.
समसामयिक विषयों पर लेखन. शिक्षा, साहित्य और सामाजिक मामलों में खास दिलचस्पी. कविता-कहानियां भी लिखती हैं.
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