संजय उवाच: रोमांचित करने वाले उधल-पुथल के साथ खत्म हुआ प्रोकबड्डी सीजन 8 के लीग का दौर, सजा प्लेऑफ्स का मंच
प्रो कबड्डी लीग में इससे पहले कभी इस कदर की उथल-पुथल नहीं देखी गई. इस सीजन रोमांच का आलम यह था कि दो चार नहीं, बल्कि 19 मुकाबले टाई खेले गए. यानि टीमों ने जीत के लिए जरूरी आक्रामकता को दरकिनार कर हार से बचने के लिए अंक बांटना बेहतर समझा. यह लीग के परिपक्व होने की निशानी भी मानी जा सकती है.

पिछले साल 22 दिसंबर से शुरू प्रोकबड्डी सीजन आठ का लीग दौर आखिर कल रात खत्म हुआ. सीजन आठ में सभी टीमों के बीच रस्साकशी का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि आखिरी दिन खेले गए तीन मैचों से प्लेऑफ्स में पहुंचने वाली तीन टीमों का फैसला हुआ. आखिरी दिन तीन टीमों के पास सुनहरा मौका था, कि वो सिर्फ जीत दर्ज करते और टॉप 6 में पहुंच जाते. जयपुर, गुजरात और हरियाणा को सिर्फ जीत की दरकार थी, लेकिन जयपुर को पुणे ने हराया और हरियाणा की उम्मीदें पटना पायरेट्स ने खत्म कर दीं. सिर्फ गुजरात-मुंबई से जीत सका और प्लेऑफ में चला गया.
पहले मैच में जयपुर को सिर्फ जीतना था, लेकिन पुणेरी पलटन को सीधे क्वालीफाई करने के लिए कम से काम 28 पॉइंट के फासले से जीत की दरकार थी, जो व्यावहारिक तौर पर संभव नहीं था. पुणे जीता, लेकिन कम मारजिन से, इसलिए पहले ही अपने मैचों का कोटा खत्म कर चुकी बेंगलूरू बुल्स को बैठे-बैठे ही टॉप 6 में जगह मिल गई. दूसरे मैच में गुजरात ने यू मुंबा की कमर तोड़ी और टॉप 6 में जगह बनाई. तीसरे मुकाबले में कयास यह भी लग रहे थे कि शायद पटना पायरेट्स इस आखिरी मुकाबले में अपने प्लेयर्स को इंजरी से बचाने के लिए दोयम दर्जे की टीम उतारे, जैसा कि उसने पिछले मैच में भी किया था.
लेकिन, पटना ने संभवतः पूरे आत्मविश्वास से प्ले ऑफ में उतरने की नियत से अपनी पूरी टीम उतारी, और हरियाणा को एक कडे मुकाबले में शिकस्त दी. पटना पहले ही नंबर एक पर था, इसलिए यहां पहले मैच में कम अंतर से जीतने वाली पुणेरी पलटन को टॉप 6 में जगह मिल गई. लब्बोलुआब यह कि प्रो कबड्डी में मैने इससे पहले कभी इस कदर की उथल-पुथल नहीं देखी. इस सीजन रोमांच का आलम यह था कि दो चार नहीं, बल्कि 19 मुकाबले टाई खेले गए. यानि टीमों ने जीत के लिए जरूरी आक्रामकता को दरकिनार कर हार से बचने के लिए अंक बांटना बेहतर समझा. यह लीग के परिपक्व होने की निशानी भी मानी जा सकती है.
फिलहाल प्लेऑफ्स का मंच सज चुका है, कल यानि 21 फरवरी को दो एलिमिनेटर खेले जाएंगे. इनमें यूपी योद्धा का मुकाबला पुणेरी पलटन से और गुजरात जाएंट्स का मुकाबला बेंगलूरू बुल्स से होगा. यह दोनों टीमें इससे पहले सीजन सिक्स का फाइनल भी खेल चुकी हैं, तब जीत का सेहरा बुल्स के सिर बंधा था. इससे पहले पटना पायरेट्स और दबंग दिल्ली टॉप टू में काबिज हो चुकी थी. पहले दो स्थानों में आने वाली टीमों को सीधे सेमीफाइनल में जगह मिलती है. यह दोनों टीमें अलग-अलग सेमीफाइनल में एलीमिनेटर की विजेता टीमों से भिड़ेंगी और फिर मिलेंगे इस सीजन के फाइनलिस्ट. सेमीफाइनल 23 को और फाइनल मुकाबला 25 को खेला जाएगा.
सबसे ज्यादा तीन बार प्रोकबड्डी का खिताब जीत चुकी पटना पायरेट्स की संभावनाए इस बार भी प्रबल हैं. इस टीम ने लीग दौर में 22 में से 16 मैच जीते हैं. जहां प्लेऑफ्स के लिए इस सीजन कट ऑफ 66 अंक था, वहीं पटना ने कुल 85 अंक हासिल किए. यह बताता है की इस टीम का सफर निरंतरता से और मजबूती से आगे बढ़ा है. इस टीम के पास चार ऐसे रेडर हैं, जिनके खाते में 80 या उससे ज्यादा पॉइंट्स हैं, रेडिंग में इस तरह के शानदार विकल्प और किसी के पास नहीं है. सिर्फ रेडिंग ही नहीं, डिफेंस में भी पटना के हर डिफेंडर ने हाई फाइव लगाया है, आधा दर्जन बार इस टीम ने 15 या उससे ज्यादा टैकल पॉइंट्स लिए हैं.
ऐसे में पटना की दावेदारी सबसे मजबूत है. रेडिंग में सचिन तंवर लगातार निखार पर हैं, प्रशांत राय, मोनू गोयत और अब गुमान सिंह भी बढ़िया कर रहे हैं. गुमान को कुछ मुकाबले पहले टीम की स्टार्टिंग सेवन में जगह मिली और कुछ ही दिनों में आलम यह कि अब उनकी वजह से मोनू गोयत को टीम में शामिल नहीं किया जा रहा है. डिफेंस में ईरान के मोहम्मद रेज़ा शादुलू पटना के लिए पहले ही सीजन में गजब ढा रहे हैं. 80 से ज्यादा टैकल पॉइंट लेकर वह इस सीजन के टॉप डिफेंडर बनने के बिल्कुल नजदीक पहुंच गए हैं. शादुलू के अलावा, सुनील, नीरज तो अच्हा खेले ही सजिन चंद्रशेखर ने भी अपने पहले सीजन में प्रभावित किया है.
दबंग दिल्ली इस सीजन दूसरे नंबर पर रही है, और इस नाते उसे सीधे सेमीफाइनल में प्रवेश मिला है. यह टीम वैसे तो मजबूत है, लेकिन अनिश्चित भी. नवीन पर बहुत कुछ निर्भर है, लेकिन अब सामने वाली टीमें इतनी तैयारी से आती हैं कि नवीन जैसे रेडर का हर मुकाबले में चलना संभव नहीं होता, और वैसे भी नवीन पिछले कुछ मैचों से पूरी तरह फिट नहीं हैं. नवीन के बिना भी विजय मलिक ने टीम को नाज़ुक मौकों पर सहारा दिया है. यही नहीं टीम का डिफेंस अनुभव में सबसे ज्यादा हो सकता है, लेकिन उसमें भी अनिश्चितता है. मंजीत छिल्लर, संदीप नरवाल, जीवा और जोगिंदर नरवाल से बेहतर डिफेंस और क्या हो सकता है. लेकिन हकीकत यह है की यह डिफेंस लीग दौर में सबसे फिसड्डी रहा है. दिल्ली की असली परेशानी भी यही डिफेंस रहा है.
बेंगलूरू बुल्स ने जिस तरह आधा सफर तय किया था, टॉप में पहुंचने वाली पहली टीम इसे ही बनना चाहिए था, लेकिन इस पर जैसे अचानक ग्रहण लग गया, और यह टीम किसी तरह से टॉप 6 में पहुंच पाई. पवन सेहरावत चल रहे हैं लेकिन बरस नहीं रहे है. डिफेंस में भी गलतियां उनसे हो रही हैं. भरत के तौर पर एक भरोसेमंद रेडर टीम में है. डिफेंस निराश कर रहा है, उतार चढ़ाव इस डिफेंस की पहचान बन चुकी है.
गुजरात ने इतने बदलाव टीम में किए हैं, कि अब और प्रयोग की गुंजाइश टीम के पास हैं नहीं. मध्यम स्तर के रेडर्स के अलावा सुनील परवेश की हिट जोड़ी भी इस सीजन चल नहीं पाई है. पुणेरी पलटन भी बिल्कुल निचली पायदान से ऊपर आई है, युवा सितारों से सजी इस टीम की अपनी समस्याएं हैं. असलम ईनामदार से कही ज्यादा मोहित गोयत फॉर्म में दिखते हैं, वहीं डिफेंस में सोमबीर और अबिनेश नादराजन ने प्रभावित किया है.
प्लेऑफ का दौर अनिश्चित होता है, जहां दूसरा मौका नहीं मिलता, ऐसे में इस बार भी खिताब किसके पास चला जाए, कहना मुश्किल है, लेकिन अब तक के हालात पटना के हक की कहानी कहते हैं.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
संजय बैनर्जीब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट व कॉमेंटेटर
ब्रॉडकास्ट जर्नलिस्ट व कॉमेंटेटर. 40 साल से इंटरनेशनल मैचों की कॉमेंट्री कर रहे हैं.