पैदल चढ़ाई हमेशा मुश्किल होती है. चाहे वो सीधी सड़क ही क्यों न हो. पहाड़ी और ऊबड़-खाबड़ पगडंडियों पर चढ़ना और मुश्किल होता है. इससे भी मुश्किल होता है पहाड़ों पर चढ़ना. उससे भी मुश्किल एक और चढ़ाई होती है वो है एवरेस्ट जैसे बर्फ से ढंके पहाड़ों की चढ़ाई. ज्वालामुखी पर चढ़ना और ज्यादा मुश्किल होता है क्योंकि उसमें लगातार विस्फोट होते रहते हैं. सक्रिय ज्वालामुखी पर चढ़ना हो तो कहने को बाकी ही क्या रह जाता है? इक्वाडोर में स्थित कोटोपैक्सी विश्व के सबसे ऊंचे ज्वालामुखी पर्वतों में से एक है. यह वर्तमान में सक्रिय अवस्था में है.
आज ही के दिन यानि 28 नवंबर 1872 को, इसके शीर्ष पर पहुंचकर इसके फतह की सूचना दुनिया को दी गई थी. सूचना देने वाले थे जर्मन वैज्ञानिक और ट्रेवलर विल्हेम रीस. उन्होंने ही इसकी सबसे ऊंची चोटी पर पहुंचने में सबसे पहले सफलता हासिल की थी. इस सक्रिय ज्वालामुखी में अंतिम बार इरप्शन जनवरी 2016 में हुआ था. इसकी 5897 मीटर यानि 19,347 फीट की ऊंचाई ज्वालामुखी पर चढ़ने वालों, इसे फतह करने वाले लोगों को बहुत लुभाती है. विल्हेम रीस को भी इसके चैलेंज ने लुभाया और अंतत: जिताया भी. इससे पहले इसे फतह करने का प्रयास 1802 में हुआ, जब यूरोपियन अलेक्जेंडर वॉन हम्बोल्ट ने इसकी चोटी पर चढ़ने की कोशिश की. 1831 और 1858 में भी इसे फिर फतह करने की कोशिश हुई, लेकिन पर्वतारोही या कहें ज्वालामुखी-रोही इस भेदने में सफल नहीं हुआ. फिर 28 नवंबर 1872 को इसके शीर्ष पर पहुंचा जा सका.
बता दें कोटोपैक्सी और इसके आसपास के घास के मैदान कोटोपैक्सी नेशनल पार्क में संरक्षित किए गए हैं. इन दिनों यह पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र है. किसी शायर ने कहीं लिखा है,
राख के ढे़र को बिखरा गई जब तेज हवा
सूनी-सूनी सी फिजाओं में धुआं उठने लगा
आंच देने को उभर आई दबी चिंगारी और
बुझता हुआ शोला भी नजर आने लगा
किस कदर आग को सीने में दबा रखा था
राख के ढे़र में शोलों को छुपा रखा था.
कुछ-कुछ ऐसे ही हाल ज्वालामुखी के होते हैं. ज्वालामुखी पृथ्वी की सतह पर ऐसी दरार या मुख होता है जिससे पृथ्वी के अंदर समाहित गर्म लावा, गैस और राख आदि बाहर निकलकर तबाही मचाता है. वास्तव में पृथ्वी की ऊपरी परत में एक विभंग यानि रैप्चर (rupture) होता है जिसके माध्यम से अंदर के पदार्थ बाहर निकलते हैं. ज्वालामुखी द्वारा छोड़े गए ये पदार्थ जमा होकर शंक्वाकार स्थल का निर्माण करते हैं जिन्हें ज्वालामुखी पर्वत कह कर संबोधित किया जाता है.
‘राख के ढे़र में शोले दबे हों’ तो शायर भले ही इसे सक्रिय मान ले, लेकिन भू-वैज्ञानिक ऐसा नहीं मानते. ज्वालामुखी की सक्रियता को लेकर उनमें मतैक्यता नहीं है. मोटा-मोटा कहा जाता है कि अगर कोई ज्वालामुखी वर्तमान में फट रहा है वही सक्रिय ज्वालामुखी माना जाता है. ऐसा तब माना जाता है जब उसके जल्द ही फटने के आसार नजर आ रहे हैं, उसमें गैस रिस रही हो, धुआं या लावा उगलने के संकेत मिल रहे हों, या फिर भूकंप आने के सिग्नल हों. ये सभी संकेत उसकी सक्रियता के चिह्न माने जाते हैं और ऐसे हालात में ही किसी ज्वालामुखी को सक्रिय ज्वालामुखी माना जाता है.
बेशक, ज्वालामुखी को एक प्राकृतिक आपदा के रूप में जाना-पहचाना जाता है, होना भी चाहिए, स्वाभाविक है ये, क्योंकि इससे जान-माल का नुकसान होता है, लेकिन इसका एक छोटा रचनात्मक पहलू भी है, इससे अनेक नए स्थल रूपों का निर्माण भी होता है. ज्वालामुखी विस्फोट बेशक हाहाकारी होता है लेकिन इसके बाद इससे बनने वाली प्राकृतिक छटांं देखते ही बनती है. न्यूजीलैंड की खूबसूरती इसका बेहतर नमूना है.
पृथ्वी क्या थी, आग का एक गोला ही तो थी. इसमें हुए लगातार विस्फोटों और परिवर्तन ने इसे वर्तमान रूप दिया है. पृथ्वी पर कितने ज्वालामुखी हैं? इंटरनेट और पत्रिकाओं में छपे लेखों की मानें तो विश्व में जागृत ज्वालामुखियों की संख्या लगभग 500 है. इसमें खास है इटली के एटना तथा स्ट्राम्बोली ज्वालामुखी. स्ट्राम्बोली भूमध्य सागर में सिसली के उत्तर में लिपारी द्वीप पर मौजूद है. इसमें से हमेशा प्रज्वलित गैसें निकलती रहती हैं.
भारत की बात करें तो यहां दो ज्वालामुखी हैं.पहला ज्वालामुखी बैरन ज्वालामुखी है, जो अंडमान निकोबार द्वीप समूह में मध्य अंडमान में स्थित बैरन द्वीप में मौजूद है. दूसरा ज्वालामुखी नारकंदम ज्वालामुखी है लेकिन यह प्रसुप्त ज्वालामुखी है. इस तरह बैरन एकमात्र सक्रिय ज्वालामुखी है. यह 353 मीटर या 1158 फीट की ऊंचाई पर तथा नारकंदम 710 मीटर की ऊंचाई पर है. बैरन तीन किलोमीटर में फैला हुआ है.
2017 में खबरें आईं कि भारत का इकलौता सक्रिय ज्वालामुखी फिर जागृत हो गया है. दरअसल, हुआ यूं कि वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद यानि सीएसआईआर और राष्ट्रीय समुद्र वैज्ञानिक संस्था के वैज्ञानिकों की एक टीम ज्वालामुखी के पास समुद्र तल से नमूने एकत्र करने गई थी. तभी ज्वालामुखी से लावा और धुआं निकलना प्रांरभ हो गया. इसके बाद टीम के सदस्यों ने पाया कि ज्वालामुखी लगभग दस मिनिट तक फूटता रहा. खबरों में कहा गया कि दिन में इससे राख निकलती देखी गई और रात में लावा भी निकलने लगा. तीन दिन बाद वैज्ञानिकों के एक और दल ने बैरन द्वीप का दौरा किया और सेंपल इकट्ठे किए. जोखिम के चलते वैज्ञानिकों ने एक किलोमीटर दूर से ही इसका अवलोकन किया. इससे आप समझ सकते हैं कि सक्रिय ज्वालामुखीपर चढ़ना कितना जोखिम भरा काम होता होगा. ज्वालामुखी के रोमांच का अनुभव अगरआप घर बैठे करना चाहते हैं तो आप नेशनल जियोग्राफिक चैनल ट्यून कर सकते हैं. यहां आपको कई सुंदर और रोमांचक डॉक्यूमेंट्रीज देखने को मिलेंगी.
चलते चलते बता दें, ज्वालामुखी के पास जाना या उस पर चढ़ना आम लोगों के लिए भले ही जोखिम भरा रहा हो. लेकिन कुछ लोग ऐसे भी हैं जो इसके अंदर रहते हैं. यहां उन्होंने अपना अड्डा बनाया हुआ है. यकीन नहीं होता तो जैम्स बॉण्ड सीरीज की मूवी ‘मूनरेकर’ देख लीजिए. इसमें विलेन ने ज्वालामुखी जैसी जगह पर ही अपना अड्डा बनाया हुआ है.
फिल्म और कला समीक्षक तथा स्वतंत्र पत्रकार हैं. लेखक और निर्देशक हैं. एक फीचर फिल्म लिखी है. एक सीरियल सहित अनेक डाक्युमेंट्री और टेलीफिल्म्स लिखी और निर्देशित की हैं.
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