आज 14 सितंबर है. हिंदी दिवस (Hindi Divas). हमारी राजभाषा का यह दिन हमारे लिए गौरव का विषय है. हिंदी और हिंदी दिवस पर आज बहुत सारी बातें हो रही हैं. हम यहां बड़ी-बड़ी और गंभीर बातें नहीं करेंगे, बल्कि आसान और सरल भाषा में रोजमर्रा की जिंदगी में उपयोग की जाने वाली हिंदी भाषा की बात करेंगे. देखेंगे कि हम दैनंदिन में धड़ल्ले से जिन शब्दों का उपयोग करते हैं, उनमें से कितने सही हैं और कितने गलत. होने को यह बच्चों का खेल जैसे लगता है लेकिन इतना आसान भी नहीं. तो चलिए सीधे मुद़दे पर आते हैं.
‘उपरोक्त’ इस शब्द का इस्तेमाल हम सब करते हैं, खूब करते हैं. हमने परीक्षा के प्रश्नपत्रों में उपरोक्त शब्द को अनेक बार देखा है. लेकिन यह शब्द सही नहीं है, यह उपर्युक्त का अपभ्रंश है यानि बिगड़ा हुआ रूप है. सही शब्द है ‘उपर्युक्त’. ऐसे ही एक शब्द है ‘ब्रम्हा‘ और इससे बनता है ‘ब्राम्हण’. ये दोनों ही शब्द गलत हैं, सही होता है ब्रह्मा और ब्राह्मण. हिंदी भाषा की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि यह जैसे बोली जाती है, ठीक वैसे ही लिखी जाती है. अगर आप उच्चारण सही करेंगे तो अपने आप सही बोलेंगे भी. शर्त ये है कि लिखा सही हो. ब्रह्मा या ब्राह्मण गलत लिखने में गलती के पीछे दरअसल ‘ह’ की गलती ज्यादा है. शब्द को ध्यान देखिए. ‘ह’ आकार में बड़ा और प्रभावी दिख रहा है. इसलिए हमें लगता है कि ‘म’ आधा है और ‘ह’ पूरा. जबकि है इससे उलट ‘ह’ आधा और ‘म’ पूरा. ऐसा ही हाल द का है. अब ‘शुध्द’ को ही देख लीजिए इसमें भी ‘द’ आकार में बड़ा होने के चलते हम इतने भ्रमित हो गए कि ‘शुध्द’ भी ‘शुद्ध’ नही लिख पाए. यहां ‘द’ आधा है और ‘ध’ पूरा. सही शब्द ‘शुद्ध’ है. ‘द’ चूंकि आकार में बड़ा है इसलिए यहां भी गलती होती है.
असल में हिंदी वर्णमाला में जिन शब्दों में डंडा होता है जैसे प ब क ख ग घ च ज ल म न आदि, उन्हें तो सीधे सीधे डंडा हटाकर आधा शब्द बनाया जा सकता है. जैसे ब को डंडा हटाकर ब्. टाइप में इसे अकेले आधा नहीं लिखा जा सकता इसलिए इसे समझने के लिए पूरा ‘शब्द’ पढ़ें इसमें आधा ‘ब’ है. यही हाल द और व के मिलने से बनने वाले संयुक्त वर्ण या संयुक्त् अक्षर के साथ होता है. अपराह्न का किस्सा भी कुछ ऐसा ही है. अपराह्न सही है और अपरान्ह गलत. इन संयुक्त वर्णों में द्य, द्व, द्ध, द्द, ह्व, ह्न शामिल हैं.
हिंदी की इतनी बात कर रहे हैं तो ये भी जानते चलें कि हिंदी दिवस क्यों मनाया जाता है? संविधान सभा ने 14 सितंबर 1949 को एकमत से निणर्य लिया कि हिंदी ही देश की राजभाषा रहेगी. तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने इस दिन के महत्व को देखते हुए 14 सितंबर को हिंदी दिवस के रूप में मनाने का निर्णय लिया और पहला हिंदी दिवस 14 सितंबर 1953 को मनाया गया. चलते चलते एक बात और बता दें. हिंदी देश की राजभाषा है, राष्ट्रभाषा नहीं.
आप कभी-कभी इसे लेकर भ्रमित होते होंगे कि ई लिखें या यी, ए लिखें या ये. इन दोनों का उच्चारण लगभग समान है. बड़ा सामान्य सा नियम है. अगर संज्ञा है तो ‘ई’ का उपयोग होगा और क्रिया है तो ‘यी’ का. उदाहरण मिठाई, मलाई, कढ़ाई, हलवाई, रजाई आदि. ये भी शब्द चूंकि संज्ञा हैं इसलिए इनमें ‘ई’ का प्रयोग होगा. जो काम करने वाले शब्द होते हैं जैसे देखना, खाना, जाना आदि से संबंधित भूतकाल के शब्दों का प्रयोग होता है तो हम ‘यी’ का प्रयोग करेंगे. दूसरे शब्दों में जब भाषा में क्रिया का उपयोग करते हैं तो ‘यी’ का प्रयोग होगा. उदाहरण – आयी, गयी, दिखायी, बनायी, सुनायी, चलायी आदि. ये शब्द आना, जाना, दिखाना, सुनाना, बनाना, चलाना आदि से बने हैं. इन सबके अंत में ना है और ये सभी शब्द भूतकाल का प्रतिनिधित्व करते हैं. क्रिया के भूतकाल रूप का प्रयोग करेंगे तो ‘यी’ का प्रयोग होगा. क्या आपको लग रहा है कि आप भी ऐसी गलती करते हैं?
ऐसी ही स्थिति ए और ये के साथ होती है. जब हम क्रिया का प्रयोग करते हैं तो ‘ये’ का प्रयोग करते हैं. जैसे कीजिये, सुनिये, कहिये, देखिये, आदि. जब हम अवयव का प्रयोग करते हैं तो ‘ए’ का इस्तेमाल करते हैं. जैसे - इसलिए, चाहिए, के लिए. उदाहरण - राम के लिए आम लाओ. कुछ ऐसे शब्दों पर ध्यान देते हैं जिन्हें लेकर हम अक्सर भ्रमित होते हैं और गलत भी लिखते हैं. इनमें से कुछ शब्द तो ऐसे हैं जो हमें गलत वाले ही सही लगेंगे. रचयिता सही शब्द है, हम ज्यादातर रचियता लिखते हैं. ऐसा ही एक शब्द है कवियत्री जो गलत है सही शब्द है कवयित्री. महत्त्व है, महत्व नहीं. अध्ययन और उज्ज्वल है उज्जवल नहीं.
सहस्त्र सही है सहस्त्रों नहीं होता. मानवीकरण है, मानवीयकरण नहीं. उपर्युक्त है, उपरोक्त नहीं. उच्छिष्ट सही है. इंदिरा है, इंद्रा नहीं. ईर्ष्या है, ईर्षा नहीं. ऐक्य है, एक्य या एक्यता नहीं. गरूड़ सही है गरूण गलत. कालिदास सही है कालीदास नहीं. आशीर्वाद बहुत देते हैं लोग, लेकिन आर्शीवाद नहीं दीजिए कृपया. आर्द्र है आद्र नहीं. जिसकी पूजा की जाए उसे पूजनीय कहेंगे, पूज्यनीय नहीं. अग्नि सही है. युधिष्ठिर और ज्योत्स्ना सही है. चिह्न है, चिन्ह नहीं. मृत्युंजय, परिणिति, नूपुर नि:स्वार्थ सही शब्द हैं, इनमें हम गलती करते हैं. अहिल्या का अधिकांश उपयोग होता है जबकि सही शब्द है अहल्या. जागृत नहीं जाग्रत, अग्रगम्य नहीं अग्रण्य, पुनरोक्ति नहीं पुनरूक्ति, केन्द्रीयकरण नहीं केन्द्रीकरण, सदृश्य नहीं सदृश है. इसी तरह निरपराधी नहीं निरपराध.
हिंदी में तीन तरह के शब्द होते हैं तत्सम, तद्भव और अप्भ्रंश. तत्सम वे शब्द हैं जो हिंदी में संस्कृत से सीधे आए हैं. जिन संस्कृत शब्दों में बदलाव हुआ है उन्हें तद्भव कहते हैं और अप्भ्रंश वे शब्द हैं जो मूल शब्द का बिगड़ा हुआ रूप हैं. हिंदी बहुत मुश्किल भाषा है. गलतियां ढूंढ़ना कई बार जोखिमभरा काम हो जाता है. अत: गलती के लिए क्षमा. वैसे यह बहुत आसान भी है. करना सिर्फ इतना है जैसा बोलें वैसा ही लिखें, जैसा लिखें वैसा ही बोलें.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं.)ब्लॉगर के बारे मेंफिल्म और कला समीक्षक तथा स्वतंत्र पत्रकार हैं. लेखक और निर्देशक हैं. एक फीचर फिल्म लिखी है. एक सीरियल सहित अनेक डाक्युमेंट्री और टेलीफिल्म्स लिखी और निर्देशित की हैं.
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