O.P.Nayyar Birthday Special: ‘आओ हुज़ूर तुमको सितारों में ले चलूं’
ओंकार प्रसाद नैयर (O.P.Nayyar) का जन्म 16 जनवरी 1926 को अविभाजित हिंदुस्तान के लाहौर में हुआ था. उनका निधन 27 जनवरी 2007 को हुआ. अपने कैरियर के शुरूआती दौर में उन्होंने लाहौर के एक स्कूल में म्युजि़क टीचर की नौकरी की. जल्द ही उन्हें वहां से निकाल दिया गया क्योंकि स्कूल की हेड मिस्ट्रेस को उनसे प्यार हो गया था. उनकी यह आशिक मिज़ाजी ताउम्र उनके साथ रही. शबाब के साथ शराब भी उनकी कमजोरी थी.

ओंकार प्रसाद नैयर का जन्म 16 जनवरी 1926 को अविभाजित हिंदुस्तान के लाहौर में हुआ था.
विद्रोही और जिद्दी हुए बिना आप क्रिएशन तो कर सकते हैं लेकिन अद्भुत कतई नहीं रच सकते. इस तर्क में कितनी सच्चाई है, हम नहीं जानते लेकिन इस तर्क को अगर ओपी नैयर के संगीत की कसौटी पर कसें, तो आपको सहमति में सिर हिलाना पड़ेगा. ओपी नैयर (O.P.Nayyar) के पास न तो स्कूली शिक्षा का किताबी ज्ञान था और न ही संगीत की विधिवत शिक्षा उन्होंने प्राप्त की, लेकिन फिर भी उन्होंने कालजयी संगीत रचा. वे ऐसा इसलिए कर पाए क्योंकि उन्हें संगीत से गहरा प्यार था. उनके संगीत में न जाने क्या था कि जब भी कोई उनकी धुनों के तिलिस्मी ‘समुद्र’ में डुबकी लगाता, ऊपर आना ही नहीं चाहता. बरसों बरस से चल रहा सुरों की जादूगरी का यह सिलसिला आज भी बदस्तूर जारी है.
जिद्दी या घमंडी और स्वाभिमान में बहुत महीन अंतर होता है. कभी स्वाभिमानी को घमंडी मान लिया जाता है तो कभी घमंड को स्वाभिमान के रूप में पेश कर दिया जाता है. ओपी नैयर इनमें से किस केटेगरी में आते हैं हम इस पर कोई फतवा नहीं देंगे. लेकिन ये जरूर कहेंगे कि वो कभी इस पलड़े में नज़र आए, तो कभी उस पड़ले में.
ओपी नैयर के स्वाभिमान की हद
ओपी नैयर के स्वाभिमान की हद को नापना हो तो उनका ये किस्सा सुन लीजिए. मध्य प्रदेश शासन ने गायिका लता मंगेशकर के नाम पर एक पुरस्कार स्थापित किया था(है). यह पुरस्कार संगीत से जुड़ी हस्तियों को दिया जाता है और इसकी राशि एक लाख रूपए है. नब्बे के दशक की शुरूआत में एक बार इस पुरस्कार के लिए ओपी नैयर को चुना गया. लेकिन ओपी नैयर ने यह पुरस्कार लेने से यह कहते इंकार कर दिया कि जिस गायिका को मैंने कभी गीत नहीं गवाया. उसके नाम पर स्थापित पुरस्कार कैसे ले सकता हूं. यह भी कहना था कि एक गायिका के नाम पर रखा गया पुरस्कार एक संगीतकार कैसे ले सकता है ? उस दौर में एक लाख रूपए बहुत बड़ा अमाउंट था. आपको ये जानकर हैरत होगी कि उन दिनों ओपी नैयर की आर्थिक स्थिति बहुत ही ज्यादा खराब थी और वो पेइंग गेस्ट के रूप में रह रहे थे.
बात लता की निकली है तो बताते चलें, ओपी नैयर ने लता मंगेशकर को कभी अपने संगीत निर्देशन में नहीं गवाया. उस दौर में भी नहीं गवाया जब फिल्मी दुनिया पर लता का एकक्षत्र राज्य था. लता और ओपी की टसल भी तब हुई जब ओपी नैयर अपनी पहली फिल्म में संगीत दे रहे थे. हुआ कुछ यूं था कि फिल्म ‘आसमान’ का एक गीत फिल्म की सहनायिका पर फिल्माया जाना था. लता को यह गंवारा नहीं था कि उनका गाया गीत सहनायिका पर फिल्माया जाए, सो उन्होंने मना कर दिया. बस ये बात ओपी नैयर को चुभ गई और उन्होंने लता के साथ कभी नहीं गाने का फैसला कर लिया. उन्होंने यह प्रण ताउम्र निभाया. यह गाना किसी और गायिका ने गाया. यह लता से न गवाने की उनकी जि़द का प्रतिफल ही था कि, आशा भोसले जैसी गायिका फिल्म जगत को मिलीं. आशा को तराशने से लेकर स्थापित करने तक का श्रेय ओपी नैयर के खाते में है. उनका साथ बहुत लंबे समय तक (14 साल) चला बाद में (1974) आशा भोंसले ने अपने इस मेंटर को छोड़कर आरडी बरमन का हाथ थाम लिया. आशा भोंसले पर यह इल्ज़ाम भी आयद किया जाता रहा है कि जिसकी बदौलत वे ऊंचाई पर पहुंची उसे ही उन्होंने त्याग दिया. बहरहाल, इसके बाद ओपी नैयर ऐसे टूटे कि फिर उबर नहीं पाए, न पर्सनल लाइफ में और न ही करियर में.
‘मेरी दुनिया लुट रही थी और मैं खामोश था, टुकड़े टुकड़े दिल के चुनता किसको इतना होश था’ यह फिल्म मिस्टर एण्ड मिसेस 55’ का एक सेड सांग है. इसे कव्वाली के रूप में पेश किया गया है. गीत के बोल और धुनें एक दूसरे से बिलकुल विपरीत हैं. तालियों की थाप के बीच में कव्वाली की धमक वाला संगीत है तो दूसरी तरफ गीत के बोल दिल के टुकड़े होने की गवाही दे रहे हैं. ऐसा विरोधाभासी संगीत हर कोई नहीं रच सकता.
ओपी नैयर के संगीत के बारे में एक बात बहुत प्रचलित है वे घोड़ों की टॉप, ताली की थाप और सीटियों से संगीत का जादू जगाने में सिद्धहस्त थे. ‘ज़रा होले होले चलो मेरे साजना’ और ‘ ‘मांग के साथ तुम्हारा’ में घोड़े की नाल की थाप जब जमीन को थपथपाती है तो उससे निकलने वाली ठुक-ठुक जादू सा जगाती है. ‘मांग के साथ तुम्हारा’ नया दौर का गाना था जिसमें दिलीप कुमार और वैजयंतीमाला परद पर नज़र आते हैं. ‘होले होले’ में मनोज और शर्मीला थे. खुली वादियों में टांगे पर बैठकर रोमांटिक गीत गाने के अंदाज़ को फिल्म ‘अंदाज़ अपना अपना’ में आमिर और रबीना ने दोहराया था. बताते चलें कि ‘नया दौर’ बीआर चौपड़ा की फिल्म थी. ओपी नैयर की यह संभवत: एकमात्र फिल्म थी जो किसी बड़े बैनर की थी. वरना तो ओपी नैयर ने हमेशा मंझले प्रोड्यूसरों के साथ काम किया था. उनका रवैया ही ऐसा था कि बड़े प्रोड्यूसर के साथ काम करना संभव नहीं था. ये अलग बात है कि वो किसी भी संगीतकार के मुकाबले सबसे ज्यादा फीस चार्ज करते थे.
एक किस्सा ये भी चर्चित है कि ओपी नैयर के गीतों पर ऑल इंडिया रेडियो ने 1950 में बैन लगा दिया था. उनके गाने ये कहकर प्रसारित होने से रोक दिए गए थे कि ओपी का संगीत कुछ ज्यादा ही वेस्टर्न और माडर्न है.
हीरो बनना चाहते थे ओपी नैयर
ओंकार प्रसाद नैयर उर्फ ओपी नैयर फिल्मी दुनिया में संगीतकार बनने नहीं बल्कि हीरो बनने आए थे. उन्हें रिजेक्शन के साथ ही सलाह मिली कि ‘कुछ और करो’. ‘कुछ और’ के नाम पर एक संगीत ही था जो वो थोड़ा बहुत जानते थे. सो हारमोनियम से अपनी पुरानी दोस्ती को याद करते हुए उन्होंने संगीत क्रिएट करने का निश्चय किया. 1949 में उन्हें पहली बार ‘कनीज़’ फिल्म में बैक ग्राउंड स्कोर देने का मौका मिला और 1952 में पहली फिल्म ‘आसमान’ में संगीत देने का. सफलता का स्वाद चखने के लिए उन्हें दो साल इंतज़ार करना पड़ा जब गुरूदत्त की फिल्म ‘आरपार’ (1954) उनके हिस्से में आई.
‘कभी आर कभी पार लागा तीरे नज़र’, ‘ऐ लो मैं हारी पिया’ और ‘बाबूजी धीरे चलना… बड़े धोखे हैं इस राह में’. गीतों ने धूम मचाई और ओपी का नाम फिल्म जगत में चल निकला. ‘बाबूजी’ गीत के संगीत की शुरूआत सस्पेंस मूवी की याद दिलाती है, जो इसके बोल से पूरी तरह तालमेल खाता नज़र आता है.
गुरूदत्त और ओपी की जोड़ी
इसके बाद गुरूदत्त और ओपी की जोड़ी ने ‘मिस्टर एण्ड मिसेस 55’ और ‘सीआईडी’ जैसी हिट फिल्में दीं, हिट संगीत भी. मिस्टर एण्ड मिसेस 55 में एक खूबसूरत गीत कामेडियन जॉनीवाकर पर फिल्माया गया है जिसके बोल थे ‘जाने कहां मेरा जिगर गया जी’. बिना देखे इस गीत को सुनें तो यकीन नहीं होता कि यह किसी कामेडियन के लिए रचा गया संगीत है. गुरूदत्त द्वारा निर्मित देवानंद, शकीला और वहीदा की फिल्म ‘सीआईडी’ के संगीत ने भी खूब धूम मचाई. ‘आंखों ही आंखों में इशारा हो गया’ ‘ये है बाम्बे मेरी जान’ ‘लेके पहला-पहला प्यार’ गाने खासे पापुलर हुए.
‘जाईए आप कहां जाएंगे, ये नज़र लौट के फिर आएगी’ गीत जब शुरू होता है तो एक अजीब से नशीले माहौल में आपको पहुंचा देता है. ‘मेरे सनम’ फिल्म के गीतों ने ओपी नैयर के संगीत को लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा दिया. ‘पुकारता चला हूं में’ भी इसी फिल्म का गीत था. इसी तरह हावड़ा ब्रिज के एक गाने को भी याद किया जा सकता है. वो भी ‘नज़र’ की तरह नशीला गीत था ‘आईए मेहरबां, बैठिए जाने जां’ इस गीत का तो फिल्मांकन भी कमाल का था, अशोक कुमार, मधुबाला और केएन सिंह पर फिल्माए गए इस गीत में मधुबाला सिर्फ एक जगह खड़े होकर गीत गाती है और अपने चेहरे के हावभाव भर से मदहोश कर देती है, इसमें मधुबाला के चेहरे के भावों को जगाने में संगीत बड़ी भूमिका निभाता है.
ओंकार प्रसाद नैयर का जन्म 16 जनवरी 1926 को अविभाजित हिंदुस्तान के लाहौर में हुआ था. उनका निधन 27 जनवरी 2007 को हुआ. अपने कैरियर के शुरूआती दौर में उन्होंने लाहौर के एक स्कूल में म्युजि़क टीचर की नौकरी की. जल्द ही उन्हें वहां से निकाल दिया गया क्योंकि स्कूल की हेड मिस्ट्रेस को उनसे प्यार हो गया था. उनकी यह आशिक मिज़ाजी ताउम्र उनके साथ रही. शबाब के साथ शराब भी उनकी कमजोरी थी.
‘प्रीतम आन मिलो’
ओपी नैयर के यादगार नग्मों की बात करें तो लिस्ट काफी लंबी खिंच जाएगी. लेकिन फिर भी कुछ का जि़क्र जरूरी है, ‘ठंडी हवा काली घटा’ मिस्टर एण्ड मिसेसे 55, ‘लेके पहला पहला प्यार’ सीआईडी, ‘उड़ें जब जब ज़ुल्फें तेरी’ नया दौर, ‘एक परदेशी मेरा दिल ले गया’ फागुन, ‘बाबूजी धीरे चलना’ आरपार, ‘चैन से हमको कभी आपने जीने ना दिया’ प्राण जाए पर वचन न जाए, ‘आपके हसीन रूख पे आज नया नूर है’ बहारें फिर भी आएंगी, ‘‘वो हसीन दर्द दे दो’ हमसाया, ‘चेहरे से जरा आंचल’ एक बार मुस्कुरा दो, आदि.
आपको व्हिस्की या वाइन उतना नशा नही देगी जितना नशा आपको ओपी नैयर के संगीत में मिलेगा. एक अलग ही तरह का निराला और मदहोश करने वाला संगीत रचने में उन्हें कमाल हासिल था. बेशक उनसे खराब संगीत रचा गया है और उनसे बेहतर संगीत भी क्रिएट हुआ है, लेकिन ‘उनसा’ संगीत न कभी रचा गया है और न रचा जाने वाला है. ओपी नैयर बिरले संगीतज्ञ थे, हैं और रहेंगे. उनका संगीत उनके चाहने वालों को आवाज़ दे रहा है, – ‘आओ हुज़ूर तुमको सितारों में ले चलूं’, दिल झूम जाए ऐसी बहारों में ले चलूं’.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
शकील खानफिल्म और कला समीक्षक
फिल्म और कला समीक्षक तथा स्वतंत्र पत्रकार हैं. लेखक और निर्देशक हैं. एक फीचर फिल्म लिखी है. एक सीरियल सहित अनेक डाक्युमेंट्री और टेलीफिल्म्स लिखी और निर्देशित की हैं.