World Book Day 2022: पढ़ते रहिए, यही सबसे बेहतरीन एडवेंचर है
एक समय था जब हमारे पास पढ़ने के लिए केवल पुस्तकें होती थीं. हम भाग्यशाली हैं कि अब हम इन्हें अलग अलग तरीके से एक्सेस कर सकते हैं. मसलन ई बुक, या ऑडियो बुक और प्रिंटेड किताबें. विश्व पुस्तक दिवस पर आज जानते हैं, किताबों से जुड़ी जानी-अनजानी और रोचक बातें.

एक समय था जब हमारे पास पढ़ने के लिए केवल पुस्तकें होती थीं. हम भाग्यशाली हैं कि अब हम इन्हें अलग अलग तरीके से एक्सेस कर सकते हैं. मसलन ई बुक, या ऑडियो बुक और प्रिंटेड किताबें. विश्व पुस्तक दिवस पर आज जानते हैं, किताबों से जुड़ी जानी-अनजानी और रोचक बातें.
मोबाईल और ई बुक के इस दौर में पढ़ना अपेक्षाकृत आसान हो गया है. अब आपको असीमित ज्ञान प्राप्त करने के लिए बड़ी-बड़ी पोथी का बोझ नहीं उठाना पड़ता है. इसके चलते अब ज्ञान की बातें पढ़ना या सुनना और करना कुछ खास लोगों की बपौती नहीं रह गई है. बावजूद इसके किताबों कीअहमियत कम नहीं हुई है. आज भी ड्राईंग रूम में बुक सेल्फ को किताबों से सजाकर रखना सम्मान का प्रतीक माना जाता है. किसीने इस बारे में खूब कहा है-
‘किताबों से सारा ध्यान खत्म हो गया, कि मोबाईल पर ही सारा ध्यान उपलब्ध हो गया, रातों को चलती रहती हैं मोबाईल पर उंगलियां, सीने पर किताब रख के सोए काफी वक्त हो गया.’
बहरहाल, एक समय था जब हमारे पास पढ़ने के लिए केवल पुस्तकें होती थीं. हम भाग्यशाली हैं कि अब हम इन्हें अलग अलग तरीके से एक्सेस कर सकते हैं. मसलन, ई बुक, या ऑडियो बुक और प्रिंटेड किताबें. नए ज़माने के युवा जोड़ों को ये बात शायद अटपटी लगे पर पुराने लोग आज भी अहमद फ़राज़ की लाईनों में अपनी सुनहरी यादें तलाशते दिख जाते हैं –
‘अबके बिछड़े तो शायद ख्वाबों में मिलें, जिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिले.’
कहते हैं जब भी आप एक अच्छी किताब पढ़ते हैं तो कहीं ना कहीं दुनिया मेंआपके लिए रोशनी का एक नया दरवाजा खुलता है. किताबों के बारे में मिसाइल मेन अब्दुल कलाम कह गए हैं.
‘एक अच्छी किताब हजार दोस्तों के बराबर होती है जबकि एक अच्छा दोस्त एक पुस्तकालय के बराबर होता है.’
पढ़ाकू लोगों को किताबी कीड़ा के नाम बुलाया जाता था. बता दें ‘किताबी कीड़ा’ शब्द छोटे कीड़ों से निकला है जो किताबों कीबाइंडिंग पर भोजन तलाशते हैं. बात पढ़ाकू लोगों की निकली है तो याद करते चलें एक विवादास्पद हस्ती आचार्य रजनीश उर्फ ओशो को. किताबों से उन्हें इतना लगाव था कि वे एक दिन में तीन किताबें पढ़ लिया करते थे. ओशो पढ़ने के इतने शौकीन थे कि उनका पूरा समय भोजन और प्रवचन के अलावा सिर्फ पढ़ने में ही बीतता था. कहते हैं उन्होंने अपने जीवन में एक लाख से भी ज्यादा किताबों का अध्ययन किया. इसीलिए उन्हें ‘इंडियाज़ ग्रेटेस्ट बुक मेन’ के नाम का संबोधन भी मिला. बताया जाता है किओशो ने अपने पिता से किताबों के अलावा किसी और चीज़ के लिए पैसे नहीं मांगे. वो लाइब्रेरी से लाकर किताब पढ़ना इसलिए पसंद नहीं करते थे क्योंकि वे नहीं चाहते थे कि वो किसी की अंडरलाइन की हुई बातें या किताबें पढ़ें. लायब्रेरी में अक्सर लोगअपने पसंद के हिस्सों को अंडर लाइन कर दिया करते हैं. दिलचस्प ये है कि उन्होंने एक भी किताब नहीं लिखी फिर भी उनकी 600 से ज्यादा किताबें प्रकाशित हुई हैं. ये सभी उनके प्रवचनों पर आधारित हैं.
प्रिंटिंग प्रेस के अविष्कार ने पुस्तक लेखन को आसान बनाया है. इससे पहले किताब लिखना बहुत श्रमसाध्य होता था. सभी किताबें हाथ से लिखी जाती थीं. इसलिए किताबें मंहगी और तुलनात्मक रूप से दुर्लभ होती थीं. जब प्राचीन सभ्यताओं में लेखन प्रणाली का अविष्कार हुआ तब विभिन्न प्रकार की सामग्री जैसे मिट्टी, पत्थर, पेड़ की छाल, धातु की चादरें और हड्डियों का उपयोग लिखने के लिए किया जाता था.
स्याही की बात करें तो प्राचीन काल में स्याही आमतौर पर कालिख और गोंद से तैयार की जाती थी. इसने लेखन को भूरा काला रंग दिया. लेकिन भूरे और काले रंग के अलावा लाल रंग का लेखन भी मिलता है. सोने से लिखावट भी की जाती थी. शानदार पांडुलिपियों के लिए बैंगनी रंग के चर्मपत्र और सोने या चांदी का उपयोग किया गया. शुरुआती किताबों में पन्नों के लिए चर्मपत्र का इस्तेमाल किया जाता था.
रोचक बात ये है कि 18वीं शताब्दी तक सार्वजनिक पुस्तकालय में पुस्तकों को अक्सर बुक सेल्फ या डेस्क पर जंजीर से बांध दिया जाता था. ऐसा चोरी के डर से किया जाता था. जंजीरों वाली इन किताबों को ‘लिबरी केटेनटी’ के नाम से पुकारा जाता था. पुस्तकें हमें महत्वपूर्ण जानकारी देती हैं और साथ ही हमें प्रखर और बुद्धिमान बनाती हैं. पुस्तक पढ़ने से तनाव दूर होता है और रचनात्मक बढ़ती है.
संदर्भ से हटकर बात है लेकिन फिल्म की बात छूट रही थी सो बताते चलें. 1977 में एक फिल्म आई थी ‘किताब’. इस ड्रामा फिल्म को गुलज़ार ने लिखा और निर्देशित किया था. यह एक ऐसे बच्चे की कहानी है जिसे पढ़ने के लिए गांव से अपनी बहन के पास शहर भेज दिया जाता है. जहां वो अपनी शरारतों और मस्ती के चलते बहन के लिए परेशानी पैदा करता है. फिल्म बच्चों की स्वाभाविक मस्ती और खुलेपन के साथ किताब ( शिक्षा ) की बात रोचक तरीके से करती है.
पुस्तकों में ज्ञान का भंडार तो है ही इनकी दूसरी विशेषताएं भी हैं. किताब हमारा सच्चा साथी होती हैं. ये हमेशा तो नहीं लेकिन अधिकांश सच बोलती है. बुरे वक्त में हमें साहस और उत्साह से भर देती है. साथ ही अच्छे वक्त में विनम्र रहना सिखाती है. कुछ लोग किताबी ज्ञान से ज्यादा प्रकृति को ज्ञान की बड़ी पाठशाला मानते हैं. शायर निदा फ़ाज़ली कहते हैं :
‘धूप में निकलो, घटाओं में नहाकर देखो, जि़ंदगी क्या है किताबों को हटाकर देखो.’
शायर बशीर बद्र भी किताबों को अलग अंदाज़ में याद करते हैं :
‘कागज में दब के मर गए कीड़े किताब के, दीवाना बेपढ़े, लिखे मशहूर हो गया.’
इश्क मोहब्बत की बातों का दखल हर जगह होता है, किताबें भी इससे अछूती नहीं हैं. किसी ने कहा है :
‘इस मोहब्बत की किताब के दो ही सबक याद हुए, कुछ तुम जैसेआबाद हुए, कुछ हम जैसे बरबाद हुए.’
एक महाशय नेकमाल की बात कह दी.
‘आजकल की लड़कियां अंग्रेजी की किताब हो जाती हैं, पसंद तो बहुतआती हैं, पर समझ में नहीं आती हैं.’
कहते हैं एक पेड़ से पचास किताबें बनाई जा सकती हैं. ई बुक और ऑडियोबुक आदि के आने से एक फायदा तो ये जरूर हुआ है कि कम से कम कागज़ के लिए काटे जानेवाले पेड़ों की संख्या में तो कमी आई है.
चलिए पुस्तकों से जुड़ी कुछ दिलचस्प जानकारियों पर भी नज़र डाल लें. पहली मुद्रित किताब में कवर पर लेखक का नाम नहीं था, यहां तक कि किताब का टाईटल भी उस पर नहीं छापा गया था. कवर पर आर्ट वर्क थे, जो चित्रों, चमड़े और सोनेसे ढंके हुए थे.
टाइपराइटर पर लिखा पहला नॉवेल मार्क ट्वेन का ‘द एडवेंचर ऑफटॉम सॉयर’ था.
पूर्वअमेरिकी राष्ट्रपति थिओडोर रूज़वेल्ट प्रतिदिन औसतन एक किताब पढ़ते थे.
एक उपन्यास लिखने में औसतन 475 घंटे लगते हैं.
हैरी पॉटर की किताबें अमेरिका में सबसे ज्यादा बैन किताबें हैं.
दुनिया की सबसे मंहगी किताब को बिल गेट्स ने 30.8 मिलियन डॉलर में खरीदा था. यह लियोनार्डो दाविंची की ‘कोडेक्सलीसेस्टर’थी.
लेखक विर्जीनावूल्फ ने अपनी सारी किताबें खड़े होकर लिखीं.
एलिस इनवंडरलैंण्ड में एलिस का किरदार एक असली छोटी लड़की पर आधारित है. एलिस लिडेल नामकी दस वर्षीय लड़की के नाम पर.
किसी ने कहा है किताबें जिंदगी का वह अस्त्र हैं, जो बिना किसी को घाव दिए हमें जीतहासिल करने में सहायता करते हैं.
एकऔर सज्जन कहते हैं : ‘अगर किताबों से दोस्ती करोगे तो आगे चल कर खुद को जरुर कामयाब बना पाओगे.’
ये भी सच ही है कि सुनहरा भविष्य बनाने के लिए किताबों से मित्रताअनिवार्य शर्त है और पुस्तकों से प्यार करोगे तो जीवन भर सफल रहोगे.पुस्तकों पर सबसे सटीक बात ल्योड अलेक्जेंडर की लगती है.
‘पढ़ते रहिए, यही सबसे बेहतरीन एडवेंचर है’
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
शकील खानफिल्म और कला समीक्षक
फिल्म और कला समीक्षक तथा स्वतंत्र पत्रकार हैं. लेखक और निर्देशक हैं. एक फीचर फिल्म लिखी है. एक सीरियल सहित अनेक डाक्युमेंट्री और टेलीफिल्म्स लिखी और निर्देशित की हैं.