बीते दो महीने में सरकार के स्तर पर क्रिप्टो करेंसी को लेकर गतिविधियां काफी बढ़ी हैं. खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 13 नवंबर को इस पर बैठक की. उसके दो दिन बाद फाइनेंस पर संसद की स्थायी समिति ने क्रिप्टो करेंसी से जुड़े सभी पक्षों से चर्चा की. प्रधानमंत्री ने सिडनी डायलॉग में भी इसका जिक्र किया और कहा कि विभिन्न देशों को इस पर मिलकर काम करना चाहिए.
क्रिप्टो करेंसी, दरअसल वर्चुअल करेंसी होती हैं. इन्वेस्टोपीडिया के अनुसार दुनिया में अभी 10 हजार से ज्यादा क्रिप्टो करेंसी हैं, हालांकि बिटकॉइन, इथेरियम जैसे चुनिंदा करेंसी ही लोकप्रिय हैं. इनकी ट्रेडिंग एक्सचेंज पर होती है, जिन्हें क्रिप्टो एक्सचेंज कहा जाता है. भारत में क्रिप्टो एक्सचेंज करीब बांच साल से हैं.
कोई आधिकारिक आंकड़ा तो नहीं है, लेकिन माना जाता है कि क्रिप्टो करेंसी में डेढ़ से दो करोड़ लोगों ने पैसा लगा रखा है और उनकी होल्डिंग की वैल्यू करीब 40 हजार करोड़ रुपए है. तुलनात्मक रूप से देखा जाए तो भारत में शेयर बाजार दशकों पुराना है, फिर भी उसके निवेशकों की संख्या अभी नौ करोड़ (बीएसई में रजिस्टर्ड निवेशकों की संख्या) के आसपास ही है.
नवंबर के अंत में ऐसी खबरें आईं कि सरकार संसद के शीत सत्र में ऐसा बिल लाने जा रही है जिससे ज्यादातर प्राइवेट क्रिप्टो करेंसी पर प्रतिबंध लग जाएगा. इससे क्रिप्टो एक्सचेंज पर करेंसी बेचने वालों की कतार लग गई. यह बिल अब शायद शीत सत्र में ना लाया जाए और उसमें कुछ संशोधन किए जाएं. माना जा रहा है कि सरकार भी इन पर प्रतिबंध लगाने के बजाए इन्हें रेगुलेट करने पर विचार कर रही है.
दो साल पहले वित्त मंत्रालय, सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय, सेबी और रिजर्व बैंक के अधिकारियों कि समिति ने ‘क्रिप्टो करेंसी पर प्रतिबंध और आधिकारिक डिजिटल करेंसी रेगुलेशन बिल 2019’ तैयार किया था. उसमें क्रिप्टो करेंसी की माइनिंग, उन्हें खरीदने, रखने, बेचने सब पर प्रतिबंध लगाने की बात थी. प्रतिबंध का उल्लंघन करने पर जुर्माने के साथ 10 साल जेल का भी प्रावधान था.
हालांकि वह बिल संसद में पेश नहीं किया गया. नए बिल का नाम ‘क्रिप्टो करेंसी और आधिकारिक डिजिटल करेंसी रेगुलेशन बिल 2021’ है. बिल के नाम से भी पता चलता है कि दो वर्षों में सरकार का नजरिया बदला है. लेकिन यह संभावना कम ही है कि इन्हें करेंसी के रूप में मान्यता मिले. इन्हें शेयर की तरह फाइनेंशियल ऐसेट माना जा सकता है, जिसमें पैसा लगाने पर जोखिम की जिम्मेदारी निवेशक की होती है. शेयर की ही तरह इनमें होने वाली कमाई को टैक्स के दायरे में लाया जा सकता है.
उत्तर और दक्षिण अमेरिका, यूरोप, दक्षिण पूर्व एशिया के ज्यादातर देशों और ऑस्ट्रेलिया में क्रिप्टो करेंसी को कानूनी मान्यता मिली हुई है. लेकिन रूस, चीन, भारत और अफ्रीका के कुछ देशों में अभी तक इसे मान्यता नहीं मिली है. चीन ने क्रिप्टो करेंसी और इसके सर्विस प्रोवाइडर दोनों पर सख्त पाबंदी लगा रखी है.
केंद्रीय बैंक क्रिप्टो करेंसी के खिलाफ रहे हैं. भारतीय रिजर्व बैंक ने भी अप्रैल 2018 में बैंकों के क्रिप्टो करेंसी में डील करने पर रोक लगा दी थी. यह एक तरह से क्रिप्टो करेंसी पर प्रतिबंध जैसा ही था, क्योंकि क्रिप्टो ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म पर पैसा बैंकों के जरिए ही जाना था. लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने मार्च 2020 में रिजर्व बैंक के आदेश को खारिज कर दिया.
सुप्रीम कोर्ट के फैसले का आधार यह था कि ना तो सरकार ने क्रिप्टो करेंसी पर प्रतिबंध लगाया है और ना ही रिजर्व बैंक को क्रिप्टो एक्सचेंज में किसी तरह की गड़बड़ी मिली है. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बावजूद आज भी चुनिंदा बैंक ही क्रिप्टो एक्सचेंज के साथ डील कर रहे हैं.
क्रिप्टो करेंसी के साथ कई तरह के जोखिम जुड़े हैं. रिजर्व बैंक क्रिप्टो ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म के विज्ञापनों पर आपत्ति जताने के साथ-साथ मनी लॉन्ड्रिंग, आतंकवाद की फाइनेंसिंग की आशंका भी जता चुका है. निवेशकों के लिए सबसे बड़ा जोखिम है धोखाधड़ी का. भारत ही नहीं, विदेशों में भी ऐसे अनेक मामले सामने आए हैं जब माइनिंग के नाम पर लोगों से पैसे लिए गए और फिर पैसे लेने वाले गायब हो गए.
क्रिप्टो एक्सचेंज हैक करके करेंसी चोरी करने की घटनाएं भी हुई हैं. अगर किसी निवेशक के क्रिप्टो करेंसी वॉलेट का पासवर्ड चोरी या हैक हो जाए तो वह सारी करेंसी हमेशा के लिए खो सकता है. देखना है कि कानून में इन पेचीदगियों का कैसे ध्यान रखा जाता है.
लेखक का 30 वर्षों का पत्रकारिता का अनुभव है. दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण जैसे संस्थानों से जुड़े रहे हैं. बिजनेस और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.
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