OPINION: बजट 2022 में मध्य वर्ग के हाथ फिर खाली, चुनिंदा सेक्टर को छोड़ उद्योगों के लिए भी कुछ नहीं

इकोनॉमी अभी मांग में कमी से जूझ रही है. मांग तभी बढ़ेगी जब लोगों के पास खरीदारी के लिए पैसे होंगे. कोरोना महामारी से पहले भी लगातार नौ तिमाही तक विकास दर गिर रही थी. इसका सीधा असर सरकार की कमाई पर पड़ा. महामारी के कारण सरकार की माली हालत और कमजोर हुई है. इसलिए इनकम टैक्स के मोर्चे पर तो राहत की उम्मीद नहीं थी, लेकिन वर्क फ्रॉम होम के बढ़ते चलन को देखते हुए स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा बढ़ाई जा सकती थी.

Source: News18Hindi Last updated on: February 1, 2022, 8:40 pm IST
शेयर करें: Share this page on FacebookShare this page on TwitterShare this page on LinkedIn
OPINION: बजट में मध्य वर्ग के हाथ खाली, उद्योगों के लिए भी कुछ नहीं
पार्टी ने वर्ष 2022-2023 के बजट को विकासशील से विकसित होते भारत के लिए महत्वपूर्ण और ज़रुरी करार दिया.

जट से आम आदमी को क्या उम्मीद रहती है? यही न कि बेरोजगारी और महंगाई जैसी समस्याएं दूर करने के लिए सरकार क्या उपाय कर रही है. लेकिन वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट भाषण में महंगाई का एक बार भी जिक्र नहीं किया, ‘वेलफेयर’ का जिक्र तीन बार है. रोजगार का जिक्र छह बार है लेकिन प्रत्यक्ष तौर पर रोजगार देने के उपाय बहुत कम हैं.


वित्त मंत्री ने बजट को अगले 25 वर्षों का ब्लूप्रिंट बताया है, लेकिन कैपिटल एक्सपेंडिचर 35 फीसदी बढ़ाकर 7.5 लाख करोड़ रुपये करने को छोड़ दें, तो बजट में कोई बड़ी घोषणा नहीं दिखती. नए प्रोजेक्ट आदि में निवेश कैपिटल एक्सपेंडिचर के तहत आते हैं. यह खर्च 2022-23 में जीडीपी का 2.9 फीसदी होगा.


इकोनॉमी अभी मांग में कमी से जूझ रही है. मांग तभी बढ़ेगी जब लोगों के पास खरीदारी के लिए पैसे होंगे. कोरोना महामारी से पहले भी लगातार नौ तिमाही तक विकास दर गिर रही थी. इसका सीधा असर सरकार की कमाई पर पड़ा. महामारी के कारण सरकार की माली हालत और कमजोर हुई है. इसलिए इनकम टैक्स के मोर्चे पर तो राहत की उम्मीद नहीं थी, लेकिन वर्क फ्रॉम होम के बढ़ते चलन को देखते हुए स्टैंडर्ड डिडक्शन की सीमा बढ़ाई जा सकती थी.


वित्त मंत्री ने उसे भी 50,000 रुपये सालाना पर बरकरार रखा है. कॉरपोरेट टैक्स में भी कुछ नहीं बदला है, बस नई मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों के लिए 15 फीसदी की रियायती कॉरपोरेट टैक्स दर मार्च 2024 तक के लिए बढ़ा दी गई है. लांग टर्म कैपिटल गेन पर सरचार्ज की ऊपरी सीमा 15 फीसदी करने से स्टार्टअप को फायदा मिलेगा. अभी अनलिस्टेड कंपनियों में कैपिटल गेन पर सरचार्ज 37 फीसदी तक पहुंच जाता है.

बजट में क्रिप्टो या डिजिटल करेंसी पर सरकार के रुख का इंतजार था. रिजर्व बैंक कई बार इसका विरोध कर चुका है. बजट में डिजिटल एसेट पर 30 फीसदी टैक्स का प्रस्ताव एक तरह से इसे मान्यता देने जैसा है. नॉन फंजिबल टोकन (एनएफटी) डिजिटल एसेट में आएंगे.


क्रेडिट गारंटी स्कीम को हॉस्पिटैलिटी सेक्टर के लिए और एक साल बढ़ाना यह बताता है कि अभी तक यह सेक्टर पटरी पर नहीं लौटा है. वित्त मंत्री का कहना है कि इस स्कीम से पांच वर्षों में 60 लाख लोगों को नौकरियां मिलेंगी. अगले पांच-दस वर्षों बाद के लिए किए जाने वाले दावों का कोई मतलब नहीं होता है. बढ़े हुए कैपिटल एक्सपेंडिचर से जरूर रोजगार के मौके निकलेंगे, लेकिन ये मौके अस्थायी प्रकृति के ज्यादा होंगे.


निर्यात बढ़ाने के लिए लेदर, फर्नीचर फिटिंग्स और पैकेजिंग बॉक्स जैसी कुछ चीजों पर इन्सेंटिव का प्रावधान है. यह है तो ठीक और रोजगार में भी मदद मिल सकती है, लेकिन जब आईएमएफ और विश्व बैंक 2022 के लिए ग्लोबल ग्रोथ रेट का अनुमान घटा रहे हैं तब निर्यात कितना बढ़ेगा यह देखने वाली बात होगी. हेडफोन, ईयरफोन, लाउड स्पीकर, स्मार्ट मीटर, इमिटेशन ज्वैलरी, सोलर सेल पर कस्टम ड्यटी बढ़ाने से ये इंपोर्टेड चीजें महंगी होंगी लेकिन इससे देश में इन्हें बनाने वाली कंपनियों को बढ़ावा मिलेगा.

महामारी के कारण लाखों बच्चों की पढ़ाई पर असर हुआ है. कहा जा सकता है कि दो साल में एक पूरी पीढ़ी की शिक्षा बाधित हुई है. ऐसे छात्रों की मदद के लिए बजट में पीएम ई-विद्या स्कीम की घोषणा की गई है. इसमें पहली से 12वीं कक्षा तक ‘एक क्लास-एक टीवी चैनल’ योजना के तहत करीब 200 टीवी चैनल शुरू किए जाएंगे. अभी 12 चैनल हैं. ये चैनल अलग-अलग भाषाओं में होंगे. सवाल है कि दूरदराज के इलाकों में टीवी पेनिट्रेशन कितना है. सार्वजनिक टीवी की व्यवस्था बेहतर उपाय हो सकता है. बिजली की नियमित सप्लाई भी जरूरी है.


एमएसपी पर धान और गेहूं खरीदने के लिए रकम का प्रावधान तो हर बार होता है, लेकिन चुनावी राज्यों उत्तर प्रदेश और पंजाब में किसानों की मांग को देखते हुए बजट भाषण में अलग से इसका जिक्र किया गया है. वैसे, महामारी के दौर में कृषि ने ही अर्थव्यवस्था को सहारा दिया लेकिन उसके लिए बजट में ज्यादा कुछ नहीं है. 3.8 करोड़ घरों को नल से जल उपलब्ध कराने के लिए 60,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. यह कदम अच्छा तो है, लेकिन इस स्कीम के तहत जहां नल लगाए हैं ज्यादातर जगहों पर पानी न मिलने की समस्या है.


मौजूदा वित्त वर्ष के बजट में मनरेगा के लिए 73,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, जबकि वास्तव में 98,000 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है. अगले साल के लिए फिर 73,000 करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है. सरकारी आंकड़े ही बताते हैं कि कोरोना से पहले मनरेगा में जॉब की जितनी मांग थी, अभी तक मांग उससे ज्यादा है. इस मद में प्रावधान घटाने से गांवों में भी रोजगार की कमी हो सकती है.

राज्यों को अगले वित्त वर्ष में राजकोषीय घाटा राज्य की जीडीपी के चार फीसदी तक ले जाने की इजाजत दी गई है, लेकिन इसके लिए बिजली क्षेत्र में सुधार की शर्त जोड़ दी गई है. यानी जो राज्य बिजली वितरण का निजीकरण करेंगे वही ज्यादा कर्ज ले सकेंगे. बीते दो वर्षों में इन्हीं शर्तों के कारण राज्य ज्यादा कर्ज नहीं जुटा पाए थे.


एक दिन पहले इकोनॉमिक सर्वे में कहा गया था कि सरकार के पास राजकोषीय स्तर पर काफी गुंजाइश है. इसलिए अगले वित्त वर्ष में सरकार को राहत जारी रखते हुए कैपिटल एक्सपेंडिचर बढ़ाना चाहिए. बजट इस लाइन पर तो है, लेकिन आम आदमी के हाथ खाली हैं.


(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्लॉगर के बारे में
सुनील सिंह

सुनील सिंहवरिष्ठ पत्रकार

लेखक का 30 वर्षों का पत्रकारिता का अनुभव है. दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण जैसे संस्थानों से जुड़े रहे हैं. बिजनेस और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.

और भी पढ़ें
First published: February 1, 2022, 8:40 pm IST

टॉप स्टोरीज
अधिक पढ़ें