अंतरिक्ष से मलबा हटाने का नया बिजनेस, पर्यावरण को भी बचाएगा

वर्षों से अंतरिक्ष में रॉकेट के बेकार पुर्जे, फ्यूल टैंक, टूटे हुए सैटेलाइट जैसी चीजों के कबाड़ का ढेर बन गया है. ये कबाड़ 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी की चारों तरफ घूम रहे हैं. भविष्य में ये कबाड़ अंतरिक्ष मिशन के लिए खतरनाक हो सकते हैं. ऐसे में एक ऑस्ट्रेलियाई कंपनी ने अंतरिक्ष में कबाड़ कम करने की ऐसी पहल की है जो पर्यावरण के लिए भी लाभदायक हो सकती है.

Source: News18Hindi Last updated on: December 1, 2021, 2:02 pm IST
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अंतरिक्ष से मलबा हटाने का नया बिजनेस, पर्यावरण को भी बचाएगा

ह घटना 15 नवंबर की है. नासा ने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन में मौजूद सात अंतरिक्ष यात्रियों को निर्देश दिया कि वे बाहर ना निकलें, क्योंकि उनका स्टेशन मलबे के एक बादल के करीब से गुजरने वाला था. मलबे के टुकड़ों से स्पेस स्टेशन के साथ अंतरिक्ष यात्रियों को भी नुकसान हो सकता था. दरअसल वह मलबा रूस के एक एंटी-सैटेलाइट हथियार की वजह से फैला था.


उसने मिसाइल से 1980 के दशक से अपने ही बेकार पड़े एक सैटेलाइट ‘कॉसमॉस 1408’ को नष्ट किया था. करीब 2,200 किलोग्राम वजन वाले उस सैटेलाइट के हजारों टुकड़े दूसरे सैटेलाइट और अंतरिक्ष यात्रियों के लिए कभी भी जानलेवा बन सकते हैं. दरअसल, वर्षों से अंतरिक्ष में रॉकेट के बेकार पुर्जे, फ्यूल टैंक, टूटे हुए सैटेलाइट जैसी चीजों के कबाड़ का ढेर बन गया है.


ये कबाड़ 28,000 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से पृथ्वी की चारों तरफ घूम रहे हैं. भविष्य में ये कबाड़ अंतरिक्ष मिशन के लिए खतरनाक हो सकते हैं. ऐसे में एक ऑस्ट्रेलियाई कंपनी ने अंतरिक्ष में कबाड़ कम करने की ऐसी पहल की है जो पर्यावरण के लिए भी लाभदायक हो सकती है.


विस्फोट से सैटेलाइट के 1,500 बड़े टुकड़े बने

एंटी-सैटेलाइट हथियार का प्रयोग सबसे पहले 2007 में चीन ने, 2008 में अमेरिका ने और मार्च 2019 में भारत ने किया. हालांकि ये सभी परीक्षण के लिए थे. भारत का परीक्षण बहुत ही निचली कक्षा में हुआ, जिससे वायुमंडल में प्रवेश करते ही मलबे जल गए. अमेरिकी अंतरिक्ष विभाग का कहना है रूस की इस कार्रवाई से मलबे के करीब 1,500 टुकड़े इतने बड़े बने कि उन्हें ट्रैक किया जा सकता है.


इनके अलावा लाखों छोटे टुकड़े हैं. अब तक के परीक्षणों से अंतरिक्ष में ट्रैक किए जा सकने योग्य करीब 20 हजार टुकड़े जमा हो गए हैं. यहां ट्रैक किए जाने का मतलब उन टुकड़ों से है जो 10 सेंटीमीटर से बड़े हैं. जब भी मिसाइल से किसी सैटेलाइट को नष्ट किया जाता है तो मलबे के टुकड़ों का एक बादल बन जाता है, जो सैटेलाइट की मूल कक्षा में घूमता है.


हालांकि विस्फोट के कारण कुछ टुकड़े पृथ्वी की करीबी कक्षा में तो कुछ दूर की कक्षा में भी पहुंच जाते हैं. टुकड़ों के फैलने से इस बादल का आकार बढ़ता जाता है. कई बार छोटे टुकड़े पृथ्वी के वायुमंडल में प्रवेश करते हैं और जलकर नष्ट हो जाते हैं.


मलबे से इंटरनेट और संचार सेवाओं को खतरा

इन टुकड़ों की गति अधिक होने के कारण ये बेहद खतरनाक साबित हो सकते हैं. गोल्फ की गेंद के आकार का एक टुकड़ा इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन को नष्ट कर सकता है. इंटरनेट और संचार जरूरतों को देखते हुए आने वाले दिनों में विभिन्न देश अनेक सैटेलाइट छोड़ेंगे. अंतरिक्ष में बढ़ती भीड़ के कारण सैटेलाइट छोड़ना पहले ही मुश्किल होता जा रहा है.


मलबे के कारण यह अधिक खतरनाक साबित हो सकता है. ये टुकड़े अंतरिक्ष में पहले से मौजूद सैटेलाइट से टकराकर उसे नष्ट कर सकते हैं, जिससे उस सैटेलाइट से जुड़ी इंटरनेट सेवाएं प्रभावित हो सकती हैं और संचार व्यवस्था बाधित हो सकती है. नष्ट होने वाला सैटेलाइट जब मलबा बन जाता है तो वह दूसरे सैटेलाइट को भी नुकसान पहुंचा सकता है.


इस तरह एक चेन बन सकती है. अंग्रेजी फिल्म ‘ग्रेविटी’ में कुछ इसी तरह का दृश्य दिखाया गया था. रूस एक सैटेलाइट को नष्ट करता है और उसके मलबे से सैटेलाइट हादसे की चेन बन जाती है. कुछ अंतरिक्ष यात्रियों को जान से हाथ धोना पड़ता है तो कुछ को आपात स्थिति में पृथ्वी पर लौटना पड़ता है.


अंतरिक्ष में ही मलबे को पिघलाकर ईंधन बनाया जाएगा

ऑस्ट्रेलियाई कंपनी न्यूमैन स्पेस ने ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे अंतरिक्ष से मलबे के ढेर को हटाया जा सकता है. कंपनी इस मलबे को इकट्ठा कर रॉकेट का ईंधन बनाएगी. इस काम में न्यूमैन स्पेस के साथ एस्ट्रोस्केल, नैनोरॉक्स और सिसलूनर कंपनियां भी हैं. जापानी कंपनी एस्ट्रोस्केल मलबा इकट्ठा करेगी, नैनोरॉक्स उसकी कटाई करेगी और सिसलूनर उन्हें पिघला कर मेटल के रॉड बनाएगी.


न्यूमैन उस रॉड को आयनाइज करेगी जो रॉकेट ईंधन का काम करेगा. यह सारा काम अंतरिक्ष में ही होगा. कंपनी को इसके लिए नासा से ग्रांट भी मिली है.


हर रॉकेट लांच पर्यावरण के लिए नुकसानदायक

इस प्रोजेक्ट से अंतरिक्ष में रॉकेट ईंधन ले जाने का खर्च तो बचेगा ही, यह तकनीक पर्यावरण के लिए भी लाभदायक हो सकती है. रॉकेट ईंधन पर्यावरण को नुकसान पहुंचाते हैं. एक अनुमान के मुताबिक चार यात्रियों को ले जाने वाला रॉकेट वातावरण में 200 से 300 टन कार्बन छोड़ता है. जिस तेजी से निजी कंपनियां स्पेस बिजनेस में आ रही हैं, उससे आने वाले दिनों में पर्यावरण को नुकसान बढ़ सकता है.


रॉकेट से निकलने वाले कार्बन में हर साल करीब छह फ़ीसदी वृद्धि हो रही है. अंतरिक्ष से मलबा हटाने के काम में पहले से कई कंपनियां हैं, लेकिन वे मलबे को वायुमंडल में लेकर आती हैं जहां वे घर्षण के कारण नष्ट हो जाते हैं. पहली बार उस मलबे की रिसाइक्लिंग होगी. उम्मीद की जा रही है कि आने वाले दिनों में इससे नए तरह का बिजनेस खड़ा होगा.

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्लॉगर के बारे में
सुनील सिंह

सुनील सिंहवरिष्ठ पत्रकार

लेखक का 30 वर्षों का पत्रकारिता का अनुभव है. दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण जैसे संस्थानों से जुड़े रहे हैं. बिजनेस और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.

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First published: December 1, 2021, 2:02 pm IST

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