भारतीय रिजर्व बैंक की चौंकाने की आदत पुरानी है. बुधवार को अचानक रेपो रेट 0.40 फीसदी बढ़ा कर उसने एक बार फिर सबको चौंका दिया. रिजर्व बैंक की मौद्रिक नीति समिति हर दो महीने में समीक्षा करती है. करीब तीन हफ्ते पहले पिछली समीक्षा में समिति ने सर्वसम्मति से रेपो रेट 4 फीसदी पर ही रखने का निर्णय लिया था. माना जा रहा था कि रिजर्व बैंक कुछ देर से ब्याज दरें बढ़ाएगा. लेकिन उसने अचानक मौद्रिक नीति समिति की बैठक बुलाई और सर्वसम्मति से ब्याज बढ़ाने का फैसला किया, वह भी एक बार में 0.40 फीसदी. जो लोग देर-सबेर रेपो रेट में बढ़ोतरी की बात कर रहे थे, उन्हें भी एक बार में इतनी बढ़ोतरी की उम्मीद नहीं थी. अब जून में होने वाली समीक्षा बैठक में भी रेपो रेट बढ़ाए जाने की बात कही जा रही है. आरबीआई गवर्नर शक्तिकांत दास ने खुद संकेत दिए कि यह मौद्रिक नीति में सख्ती की शुरुआत है. आखिर अचानक इतनी अधिक वृद्धि का कारण क्या है?
यह इस बात का स्पष्ट संकेत है कि महंगाई को काबू में करने के लिए अब तक किए गए उपाय नाकाफी या नाकाम साबित हुए हैं. खुदरा महंगाई लगातार तीन महीने से रिजर्व बैंक की ऊपरी सीमा 6 फीसदी से ऊपर चल रही है. मार्च में तो यह 7 फीसदी के करीब पहुंच गई. थोक महंगाई एक साल से 10 फीसदी से ऊपर बनी हुई है. जानकार मानते हैं कि रिजर्व बैंक को और पहले मौद्रिक नीति सख्त करने का कदम उठाना चाहिए था. उसमें हुई देरी के कारण ही अचानक और इतनी अधिक वृद्धि का फैसला लेना पड़ा. महामारी के शुरुआती दिनों में अर्थव्यवस्था को सहारा देने के लिए रिजर्व बैंक ने रेपो रेट कई चरणों में 1.15 फीसदी घटाया था.
हाल के दिनों में महंगाई को लेकर रिजर्व बैंक के अनुमान और वास्तविक आंकड़ों में काफी अंतर रहा है. फरवरी में उसने वित्त वर्ष 2022-23 के दौरान खुदरा महंगाई 4.5 फीसदी रहने का अनुमान व्यक्त किया था. लेकिन दो महीने बाद अगली ही समीक्षा में उसने इसे बढ़ाकर 5.7 फीसदी कर दिया. अब जब वैश्विक परिस्थितियों के कारण खाने-पीने की चीजों समेत ज्यादातर कमोडिटी की कीमतें भी बढ़ी हैं और फिलहाल कीमतें नीचे आने का कोई संकेत भी नहीं है, तो कहा जा सकता है कि महंगाई के वास्तविक आंकड़े रिजर्व बैंक के संशोधित आंकड़ों से ऊपर ही रहेंगे. बुधवार की समीक्षा में रिजर्व बैंक ने यह तो कहा कि आने वाले दिनों में महंगाई दर अधिक रहने के आसार हैं लेकिन इसने अपने पुराने अनुमान में संशोधन नहीं किया. फरवरी की समीक्षा में उसने कहा था कि भारत में महंगाई के कारण पश्चिमी देशों के कारणों से अलग हैं. गौरतलब है कि अमेरिका चार दशक की सबसे अधिक महंगाई से जूझ रहा है. बुधवार को उसने भी 22 साल बाद ब्याज दरों में सीधे 0.5 फीसदी की बढ़ोतरी की. यही हाल यूरोप का भी है.
एक सवाल यह भी है कि क्या रेपो रेट बढ़ाकर महंगाई पर नियंत्रण पाया जा सकेगा? फिलहाल ऐसा होना मुश्किल लगता है. क्योंकि अगर मांग बढ़ने की वजह से किसी वस्तु की कीमत बढ़ती है तो कर्ज महंगा करके उस वस्तु की मांग कम की जा सकती है. लेकिन यहां महंगाई ज्यादा डिमांड के कारण नहीं बढ़ रही, यह सप्लाई की दिक्कतों के कारण है. एक तो रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण कई तरह की कमोडिटी महंगी हो गई हैं. इनमें कच्चा तेल, निकल, एलुमिनियम जैसे मेटल, फर्टिलाइजर, गेहूं, खाद्य तेल सब शामिल हैं. जहां तक खाद्य तेलों की बात है तो दुनिया में सबसे अधिक पाम ऑयल खर्च होता है और इंडोनेशिया इसका सबसे बड़ा निर्यातक है. पिछले दिनों उसने अपने यहां दाम बढ़ने पर पाम ऑयल निर्यात पर पाबंदी लगा दी. इससे पाम के साथ-साथ दूसरे तेलों के दाम भी बढ़ गए. चीन समेत कई देशों में कोरोना की नई लहर के कारण लॉकडाउन चल रहा है. इससे भी बहुत सी चीजों की सप्लाई में अड़चन आई है.
रिजर्व बैंक के पास ब्याज दर ज्यादा बढ़ाने की गुंजाइश नहीं है, क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था में मांग प्रभावित होगी और अंततः उसका असर जीडीपी ग्रोथ पर दिखेगा. अर्थव्यवस्था में बेहतरी का एक संकेत जीएसटी कलेक्शन है. हाल के महीनों में कलेक्शन बढ़ा है लेकिन यह सिर्फ अधिक बिक्री के कारण नहीं है. महामारी में बहुत सी एमएसएमई इकाइयां बंद हो गईं जिसका फायदा बड़ी कंपनियों को मिला जो हिसाब-किताब रखने और जीएसटी चुकाने में छोटी इकाइयों की तुलना में बेहतर हैं. डिमांड के लिहाज से अभी तक अर्थव्यवस्था सामान्य नहीं हुई है. जैसा कैंटर वर्ल्डपैनल का आकलन है, वित्त वर्ष 2021-22 में एफएमसीजी की डिमांड 0.8 फीसदी घट गई. शहरी इलाकों में गिरावट 2.6 फीसदी और चौथी तिमाही में तो 3.4 फीसदी की रही. सबसे अधिक गिरावट खाने-पीने की चीजों की डिमांड में ही है. पूरे साल में रोजाना इस्तेमाल किए जाने वाले खाद्य पदार्थों की डिमांड 4 फीसदी घटी तो जनवरी-मार्च 2022 तिमाही में 7.6 फीसदी कम हो गई.
महंगाई कम करने का एक तरीका सिस्टम में नकदी की उपलब्धता कम करना भी है. इसलिए रिजर्व बैंक ने कैश रिजर्व रेशियो (सीआरआर) 0.5 फीसदी बढ़ा दिया है. लेकिन रिजर्व बैंक पिछले साल से ही नकदी कम करने में लगा हुआ है, इसके बावजूद महंगाई बढ़ती जा रही है. ऐसे में मौद्रिक नीति की आपात समीक्षा यह संकेत है कि रिजर्व बैंक अब अर्थव्यवस्था में मांग बढ़ाने के बजाय महंगाई नियंत्रित करने को प्राथमिकता देगा. आने वाले दिनों में खाद्य महंगाई और बढ़ने के संकेत हैं. अब यह सरकार पर निर्भर है कि वह इसे नियंत्रण से बाहर ना जाने दे.
लेखक का 30 वर्षों का पत्रकारिता का अनुभव है. दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण जैसे संस्थानों से जुड़े रहे हैं. बिजनेस और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.
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