शुक्रवार, 28 मई को सात महीने बाद जीएसटी काउंसिल की बैठक हुई. इसमें कोविड-19 की वैक्सीन और इलाज से जुड़ी सामग्री पर जीएसटी खत्म करने के मुद्दे पर भी विचार हुआ. ब्लैक फंगस की दवा, मेडिकल ऑक्सीजन और ऑक्सीजन कंसंट्रेटर जैसी चीजों के आयात पर इंटीग्रेटेड जीएसटी खत्म करने पर तो सहमति बन गई, लेकिन देश में बन रही वैक्सीन और चिकित्सा उपकरणों पर जीएसटी खत्म करने को लेकर कोई फैसला नहीं हो सका. इस पर विचार करने के लिए मंत्रियों की समिति बनाने का फैसला हुआ, जो 8 जून तक रिपोर्ट देगी.
कोविड-19 में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों पर कितना जीएसटी लगे, इस पर राज्यों की राय अलग-अलग है. कुछ राज्य वैक्सीन और इन उपकरणों पर शून्य जीएसटी की मांग कर रहे हैं तो कुछ जीएसटी की दर घटाकर 5 प्रतिशत करने की बात कह रहे हैं. शुक्रवार की बैठक में 9 राज्यों ने शून्य जीएसटी और तीन राज्यों ने पांच प्रतिशत जीएसटी का सुझाव दिया. आइए समझते हैं कि जीएसटी की मौजूदा व्यवस्था में किसी भी वस्तु पर जीएसटी खत्म करने का मतलब क्या है और उसका उपभोक्ता पर क्या असर होगा.
इनपुट टैक्स क्रेडिट का फायदा
देश में 1 जुलाई 2017 से जो जीएसटी व्यवस्था लागू है, उसमें वैल्यू चेन के हर चरण में जीएसटी जुड़ता तो है, लेकिन अगले चरण में उसका इनपुट टैक्स क्रेडिट (आईटीसी) भी मिल जाता है. इस नियम को आसान शब्दों में समझते हैं. मान लीजिए किसी सामान को बनाने से लेकर कंज्यूमर तक पहुंचने में चार चरण लगते हैं. पहले चरण में सामान बनाने वाली कंपनी कच्चा माल खरीदती है. उस कच्चे माल पर जीएसटी की जो भी दर तय होगी, उस दर से माल बेचने वाला कंपनी से टैक्स की रकम लेगा और सरकार के पास जमा करवाएगा. मान लीजिए पहले चरण में टैक्स की रकम 25 रुपए है. अब कंपनी उस कच्चे माल से सामान बनाकर बेचती है. उस सामान पर टैक्स की रकम 40 रुपए बनती है. सामान बनाने में इस्तेमाल हुए कच्चे माल पर पहले 25 रुपए का टैक्स जमा हो चुका है, इसलिए कंपनी को सिर्फ (40 – 25) 15 रुपए का टैक्स देना पड़ेगा. यहां कंपनी को 25 रुपए का इनपुट टैक्स क्रेडिट मिलेगा. इसी तरह डिस्ट्रीब्यूटर और रिटेलर के स्तर पर भी टैक्स की गणना होगी. रिटेलर जब डिस्ट्रीब्यूटर से सामान खरीद कर कंज्यूमर को बेचेगा तो उसे भी इनपुट टैक्स क्रेडिट का लाभ मिलेगा.
इनपुट क्रेडिट खत्म हुआ तो लागत बढ़ेगी
अब मान लीजिए किसी सामान पर जीएसटी की दर शून्य कर दी जाती है, यानी जीएसटी खत्म कर दिया जाता है. उस सामान को बनाने में जो कच्चे माल का इस्तेमाल हुआ, उस पर तो कंपनी ने जीएसटी चुकाया, अगर आगे के चरणों में इस जीएसटी का अगर उसे इनपुट क्रेडिट नहीं मिलता है तो टैक्स की यह रकम उस कंपनी की लागत में जुड़ जाएगी. अपना मार्जिन बनाए रखने के लिए कंपनी को उस बढ़ी हुई लागत को सामान की कीमत में शामिल करना पड़ेगा. इससे कंज्यूमर के लिए सामान महंगा हो जाएगा.
जीएसटी दर कम से कम हो, तो मिलेगा लाभ
तो सवाल उठता है कि महामारी जैसी परिस्थिति में कंज्यूमर को राहत कैसे मिले. इसके दो तरीके हो सकते हैं. पहला तो यह कि तैयार सामान पर जीएसटी की दर कम (जैसे 5%, या काउंसिल इससे भी कम दर तय करती है) रखी जाए. इससे कंज्यूमर तक पहुंचने से पहले सामान पर जितना भी जीएसटी दिया गया है, उसका इनपुट क्रेडिट लिया जा सकेगा. कंज्यूमर को सिर्फ 5% जीएसटी की मामूली दर चुकानी पड़ेगी. दूसरा तरीका किसी सामान के बनने से लेकर रिटेलर तक, पूरी वैल्यू चेन में जीएसटी खत्म करने का हो सकता है. लेकिन इसमें जटिलता होने के कारण सरकारें बचना चाहती हैं.
अध्यादेश से बदला जा सकता है नियम
जटिलता इसलिए कि मैन्युफैक्चरिंग कंपनी कोई एक प्रोडक्ट नहीं बनाती. उदाहरण के लिए स्टील कंपनी कोई एक नहीं बल्कि कई तरह के प्रोडक्ट बनाती है. अब उनमें से किसी एक प्रोडक्ट पर जीएसटी खत्म किया गया तो मैन्युफैक्चरिंग कंपनी को यह दिखाना पड़ेगा कि उस खास प्रोडक्ट को बनाने में कितना स्टील लगा है. यहां कुछ कंपनियां टैक्स बचाने के लिए धांधली भी कर सकती हैं. इस पर नजर रखना सरकार के लिए बहुत मुश्किल होगा. मंत्रिसमूह इन्हीं बारीकियों पर विचार करके अपना निर्णय देगा. नियमों में किसी भी बदलाव के लिए अध्यादेश जारी किया जा सकता है. आयातित सामान पर जीएसटी खत्म करना आसान है, क्योंकि उसमें सिर्फ आयात के समय इंटीग्रेटेड जीएसटी (आईजीएसटी) चुकाना पड़ता है, देश में बनने वाले सामान की तरह अलग-अलग चरणों में नहीं.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)
लेखक का 30 वर्षों का पत्रकारिता का अनुभव है. दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण जैसे संस्थानों से जुड़े रहे हैं. बिजनेस और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.
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