यूक्रेन के साथ रूस भी दशकों पीछे चला गया, विश्व अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरा

ये देश आर्थिक पाबंदी के जरिए ही पुतिन को रोकना चाहते हैं, क्योंकि यूक्रेन में इनके सीधे शामिल होने का मतलब तीसरा विश्व युद्ध हो सकता है. इसलिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि जी-7 के दूसरे सदस्य देशों और यूरोपियन यूनियन के साथ अमेरिका भी रूस का ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा खत्म करने पर विचार कर रहा है

Source: News18Hindi Last updated on: March 13, 2022, 1:09 pm IST
शेयर करें: Share this page on FacebookShare this page on TwitterShare this page on LinkedIn
यूक्रेन के साथ रूस भी दशकों पीछे चला गया, विश्व अर्थव्यवस्था के लिए भी खतरा
रूस ने यूक्रेन के कई शहरों पर हमला तेज कर दिया है. (फाइल फोटो)

कल्पना कीजिए. अचानक गूगल, नेटफ्लिक्स, फेसबुक और ट्विटर जैसे मीडिया का इस्तेमाल करने को न मिले, वीजा या मास्टरकार्ड के डेबिट या क्रेडिट कार्ड बेकार हो जाएं, जिस वर्ल्डवाइडवेब (www) के जरिए आप इंटरनेट पर जुड़ते हैं वह न मिले, घर से बाहर खाने के लिए मैकडोनाल्ड या ऐसा कोई ग्लोबल फूड प्वाइंट न हो, बेबी फूड और दवाइयों तक के लिए मारामारी करनी पड़े, तो आपका जीवन कैसा होगा? रूस के लोग कुछ ऐसा ही जीवन जीने को मजबूर होते जा रहे हैं.


रूस के हमले से यूक्रेन तो तबाह हो ही चुका है, उसके बाद अमेरिका और यूरोप की अनेक जानी-मानी कंपनियों और बड़े-बड़े बैंकों ने रूस में अपना बिजनेस बंद कर दिया है. नतीजा यह हुआ कि सोवियत संघ के विघटन के बाद बीते तीन दशकों में रूस में जो ग्लोबल कल्चर डेवलप हुआ था, वह अचानक ध्वस्त होता लग रहा है. यहां के मॉल्स में ग्लोबल ब्रांड के प्रोडक्ट लगभग खत्म हो गए हैं. रूसी उड़ानों पर पश्चिम में पाबंदी के चलते महत्वाकांक्षी युवा उन देशों में जा रहे हैं जहां विमान उतरने की अनुमति है. उन्हें लगता है कि आने वाले दिनों में बेरोजगारी बहुत बढ़ जाएगी और जीवन नर्क हो जाएगा.



रूस तरह-तरह की मशीनरी, गाड़ियां, केमिकल, बेबी फूड और खाने के अन्य सामान, दवा आदि का आयात करता है. लेकिन पश्चिमी देशों के प्रतिबंध के बाद वहां इन चीजों की किल्लत होना लाजिमी है. वैसे तो वह सबसे अधिक आयात चीन से करता है, लेकिन उसके कुल आयात में चीन का हिस्सा सिर्फ 20 फीसदी है. बाकी ज्यादातर आयात वह यूरोप और अमेरिका से ही करता रहा है.

लेकिन रूस पर पाबंदी अमेरिका और यूरोप समेत बाकी दुनिया को भी प्रभावित कर रही है. रूस तेल और गैस का बड़ा निर्यातक है. यूरोपियन यूनियन अपनी जरूरत का 40 फ़ीसदी प्राकृतिक गैस, 27 फ़ीसदी कच्चा तेल और 46 फ़ीसदी कोयला रूस से ही आयात करता है. यूरोपीय देश एकदम से रूस से तेल और गैस का आयात बंद करने की स्थिति में नहीं हैं. इसलिए 2022 के अंत तक रूस से तेल का आयात दो तिहाई कम करने और 2027 तक पूरी तरह बंद करने का रोडमैप बना रहे हैं.


2014 में जब रूस ने क्रीमिया को यूक्रेन से अलग किया था तब भी यूरोपियन यूनियन ने इस तरह की बात कही थी, लेकिन इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई. इसकी बड़ी वजह यह थी कि जर्मनी मॉस्को के साथ अपने संबंध नहीं बिगाड़ना चाहता था. रूस से सबसे अधिक प्राकृतिक गैस का आयात जर्मनी ही करता है. लेकिन इस बार यूक्रेन पर हमले के तत्काल बाद जर्मनी ने दूसरी पाइपलाइन का निर्माण कार्य रोक दिया. इसके बनने से यूरोप को रूस से गैस की सप्लाई काफी बढ़ जाती. हालांकि रूस ने भी धमकी दी है कि वह मौजूदा पाइपलाइन से जर्मनी को गैस की सप्लाई रोक सकता है.


अमेरिका रूस से ज्यादा तेल आयात तो नहीं करता लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में बढ़ते दामों का असर उसे भी झेलना पड़ रहा है. वहां ईंधन के दाम रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गए हैं. गोल्डमैन सैक्स का अनुमान है कि मौजूदा तिमाही में अमेरिका की ग्रोथ रेट शून्य रह सकती है और अगले साल मंदी की आशंका है. यूरोप के भी फिर मंदी में चले जाने का खतरा है. महंगाई के कारण लोगों को खाने-पीने की चीजों की अधिक कीमत चुकानी पड़ेगी तो बाकी चीजों पर उनका खर्च अपने आप घट जाएगा.

ये देश आर्थिक पाबंदी के जरिए ही पुतिन को रोकना चाहते हैं, क्योंकि यूक्रेन में इनके सीधे शामिल होने का मतलब तीसरा विश्व युद्ध हो सकता है. इसलिए अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा है कि जी-7 के दूसरे सदस्य देशों और यूरोपियन यूनियन के साथ अमेरिका भी रूस का ‘मोस्ट फेवर्ड नेशन’ का दर्जा खत्म करने पर विचार कर रहा है. अमेरिका की निचली संसद, प्रतिनिधि सभा रूस से तेल, प्राकृतिक गैस और कोयला आयात पर प्रतिबंध लगाने वाला बिल पास कर चुकी है. अब वहां ऐसा बिल लाया गया है जिससे रूस अपने 130 अरब डॉलर के सोने के रिजर्व का इस्तेमाल अपनी मुद्रा रूबल को बचाने में नहीं कर सकेगा, जो पहले ही काफी गिर चुका है. इस बिल के पारित होने के बाद कोई भी अमेरिकी कंपनी रूस के केंद्रीय बैंक से सोना नहीं ले सकेगी. अमेरिका और यूरोप रूस से होने वाले आयात पर सीमा शुल्क भी बढ़ा सकते हैं. उसके लिए आईएमएफ और विश्व बैंक से कर्ज लेना मुश्किल कर सकते हैं.



बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटेलमेंट्स (बीआईएस) के अनुसार रूस पर अंतरराष्ट्रीय बैंकों का 121 अरब डॉलर का कर्ज है. इन बैंकों ने रूस में अपना बिजनेस बंद करने का फैसला किया है. उन्हें अब यह रकम वापस मिलने की उम्मीद भी नहीं है, खासकर पुतिन की इस घोषणा के बाद कि जो पश्चिमी कंपनियां रूस छोड़कर जाएंगी उनके एसेट जब्त कर लिए जाएंगे.

हालांकि पुतिन के करीबी बड़े अमीर इसके खिलाफ हैं. रूस के सबसे बड़े बिजनेसमैन व्लादिमीर पोतनिन ने पुतिन प्रशासन से पश्चिमी कंपनियों के एसेट जब्त ना करने का आग्रह किया है. उनका कहना है कि इससे रूस के दरवाजे पश्चिमी कंपनियों और निवेशकों के लिए हमेशा के लिए बंद हो जाएंगे और रूस 100 साल पीछे चला जाएगा. उनका कहना है कि अभी पश्चिमी देशों की कंपनियों ने लोगों के दबाव में कदम उठाया है. हालात सुधरने पर वे फिर रूस में बिजनेस करना चाहेंगी. पोतनिन की कंपनी नॉर्लिस्क निकल पैलेडियम और हाई ग्रेड निकल की दुनिया की सबसे बड़ी प्रोड्यूसर है. यह प्लैटिनम और कॉपर की भी प्रमुख प्रोड्यूसर है. रूस कच्चा तेल और गैस के अलावा उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले मेटल और कृषि उत्पादों का भी बड़ा निर्यातक है.


चिप बनाने में इस्तेमाल होने वाली सेमीकंडक्टर ग्रेड की नियॉन गैस का लगभग 50 फीसदी उत्पादन यूक्रेन की दो कंपनियां इनगैस और क्रायोइन करती हैं. रूस के हमले के बाद दोनों कंपनियों ने उत्पादन बंद कर दिया है. इनगैस कंपनी मारिउपोल में है जिस पर रूसी सैनिकों का कब्जा हो गया है, क्रायोइन ओडेसा में है और वहां भी रूसी सैनिकों का नियंत्रण है. सेलफोन, लैपटॉप, कार और दूसरे इलेक्ट्रॉनिक्स सामान बनाने वाली दुनियाभर की कंपनियां दो साल से चिप की कमी का सामना कर रही हैं. पिछले साल कार कंपनियां मांग के बावजूद चिप की कमी के कारण ज्यादा कार नहीं बना पाई थीं. सेलफोन कंपनियों को भी चिप की कमी का सामना करना पड़ा. अब यूक्रेन की कंपनियों के बंद होने से चिप की और बड़ी किल्लत होने वाली है.


यूक्रेनी कंपनियां ताइवान, कोरिया, चीन, अमेरिका और जर्मनी को जो नियॉन गैस की सप्लाई करती थीं, उसका 75 फ़ीसदी इस्तेमाल चिप इंडस्ट्री में ही होता था. आंखों की लेजर सर्जरी में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है. चीन भी इसका उत्पादन करता है. यूक्रेन से सप्लाई बंद होने के कारण इसकी बढ़ी हुई कीमत का फायदा चीन को हो रहा है. चीन ने कहा भी है कि रूस के साथ उसके संबंधों की कोई सीमा नहीं है. वह यूक्रेन पर रूस के हमले को जायज भी ठहराता है.फिलहाल ना तो यूक्रेन पर रूस का कहर थमता दिख रहा है और ना ही रूस के खिलाफ पश्चिमी देशों की कार्रवाई. अब देखना है कि पुतिन की जिद दुनिया को कहां ले जाती है.


(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्लॉगर के बारे में
सुनील सिंह

सुनील सिंहवरिष्ठ पत्रकार

लेखक का 30 वर्षों का पत्रकारिता का अनुभव है. दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण जैसे संस्थानों से जुड़े रहे हैं. बिजनेस और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.

और भी पढ़ें
First published: March 13, 2022, 1:09 pm IST