यूक्रेन पर रूस के हमले ने पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को अस्त-व्यस्त कर दिया है. खाने के तेल के दाम की चुभन तो आप महसूस कर ही रहे होंगे क्योंकि सरसों तेल से लेकर रिफाइंड तक, सबके दाम एक बार फिर बढ़ रहे हैं. विधानसभा चुनाव के कारण पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर चार महीने से ब्रेक लगा था, अब वे कभी भी बढ़ सकती हैं. ये तो वे चीजें हैं जो उपभोक्ताओं को सीधे प्रभावित करती हैं. परोक्ष रूप से प्रभावित करने वाली कमोडिटी जैसे फर्टिलाइजर, केमिकल, मेटल वगैरह भी महंगे हो रहे हैं. इन सबके अलावा डॉलर के मुकाबले रुपया 77 को पार करता हुआ अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है. यह भी महंगाई को बढ़ाएगा. महंगाई बढ़ने पर आपकी-हमारी परचेजिंग पावर घटेगी. यहां हम देखेंगे कि रूस-यूक्रेन युद्ध का भारत पर क्या असर हो रहा है.
कच्चा तेल हर चीज के दाम बढ़ाएगा
सबसे पहले बात कच्चे तेल की करते हैं. भारत ब्रेंट क्रूड किस्म का तेल ज्यादा आयात करता है और सोमवार को अंतरराष्ट्रीय बाजार में इसकी कीमत 140 डॉलर प्रति बैरल के करीब पहुंच गई. यह जुलाई 2008 के बाद सबसे अधिक है. पेट्रोल-डीजल के दाम 4 नवंबर 2021 से स्थिर हैं. उस समय भारतीय बास्केट क्रूड की कीमत 81.5 डॉलर प्रति बैरल थी, जो अब 111 डॉलर पर पहुंच गई है. अगर सरकार एक्साइज ड्यूटी न घटाए तो कच्चे तेल के मौजूदा दाम के हिसाब से पेट्रोल-डीजल की कीमत 15 रुपए प्रति लीटर बढ़ाने की जरूरत पड़ेगी.
पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस सेल (पीपीएसी) के अनुसार अप्रैल 2021 से जनवरी 2022 तक 17.59 करोड़ टन कच्चे तेल का आयात किया गया. इसके लिए 94.26 अरब डॉलर (सात लाख करोड़ रुपए) का भुगतान हुआ. 2020-21 में पूरे साल में 19.64 करोड़ टन कच्चा तेल आयात करने के लिए 62.24 अरब डॉलर (4.6 लाख करोड़ रुपए) का भुगतान किया गया था. यानी दस महीने में ही पिछले पूरे साल की तुलना में डेढ़ गुना भुगतान किया जा चुका है. साल में अभी दो महीने बाकी हैं.
भारत जरूरत का 85 फीसदी कच्चा तेल और लगभग 50 फीसदी प्राकृतिक गैस आयात करता है. भारत रूस से भी कच्चा तेल, कोयला और गैस का आयात करता है, हालांकि इनके कुल आयात में रूस का हिस्सा एक फीसदी के आसपास ही है. आयात बिल बढ़ने पर विदेशी मुद्रा भंडार में कमी आएगी. सरकार पेट्रोल और डीजल पर ज्यादा एक्साइज ड्यूटी घटाएगी तो उसके पास खर्च करने के पैसे कम पड़ेंगे. यानी ग्रोथ प्रभावित होगी. दूसरी ओर, अगर वह ड्यूटी नहीं घटाती है तो दाम बढ़ेंगे जिससे दूसरी चीजें भी महंगी होंगी.
चालू खाते का घाटा तीन फीसदी जाने का अंदेशा
कच्चा तेल ऊपर जा रहा है और डॉलर की तुलना में रुपया गिर रहा है. सोमवार को एक डॉलर 77 रुपए को पार कर गया जो अब तक का रिकॉर्ड है. इससे चालू खाते का घाटा काफी बढ़ जाने का अंदेशा हो गया है. रेटिंग एजेंसी इक्रा का अनुमान है कि कच्चा तेल 130 डॉलर के आसपास बना रहा तो भारत का चालू खाते का घाटा एक दशक में पहली बार तीन फीसदी से ऊपर चला जाएगा. मोटा अनुमान है कि कच्चा तेल 10 डॉलर महंगा होने पर चालू खाते का घाटा 10 अरब डॉलर बढ़ जाता है. कोरोना महामारी से पहले सात साल तक यह जीडीपी का औसतन 1.1 फीसदी था. लेकिन तब कमोडिटी के दाम इतने ज्यादा नहीं थे.
खाने के तेल के फिर बढ़ने लगे हैं दाम
भारत अपनी जरूरत का करीब 60 फीसदी खाद्य तेल आयात करता है. यहां खाद्य तेलों में सबसे अधिक खपत पाम ऑयल की होती है और मौजूदा संकट के चलते मलेशिया में पाम ऑयल की कीमत रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई है. सबसे अधिक पाम का आयात मलेशिया से ही होता है. खपत के मामले में सूरजमुखी तेल चौथे नंबर पर है. यूक्रेन इसका सबसे बड़ा निर्यातक है और रूस दूसरे नंबर पर है. दोनों देशों से फिलहाल आयात न होने के चलते दूसरे तेलों की मांग बढ़ गई है और उनके दाम बढ़ रहे हैं. केंद्रीय उपभोक्ता मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली में महीने भर में सोया ऑयल 17 फीसदी और पाम ऑयल 22 फीसदी महंगे हो चुके हैं. यही नहीं, राजस्थान में सरसों की कीमत 5050 रुपए प्रति क्विंटल एमएसपी की तुलना में 6500 रुपए से ऊपर जा चुकी है.
रूस, यूक्रेन, बेलारूस से आने वाली कमोडिटी महंगी
भारत और भी अनेक कमोडिटी का आयात करता है और कुछ आयात तो सीधे रूस, यूक्रेन और बेलारूस से होता है. यूक्रेन पर हमले में बेलारूस, रूस का साथ दे रहा है. इसलिए अमेरिका और पश्चिमी देशों ने उस पर भी प्रतिबंध लगाया है. वैसे ग्लोबल मार्केट में कमोडिटी के दाम पहले से बढ़ रहे थे, लेकिन महीने भर पहले जब रूस और यूक्रेन के बीच तनाव बढ़ने लगा तो कीमतों में भी तेजी से इजाफा हुआ. महीने भर में कोयला लगभग 100 फीसदी, गेहूं 40 फीसदी, मक्का 20 फीसदी, सोयाबीन 10 फीसदी और स्किम्ड मिल्क पाउडर 10 फीसदी महंगे हो गए हैं.
उर्वरक महंगे होने के साथ इनकी कमी भी
भारत उर्वरकों का भी बड़े पैमाने पर आयात करता है. महीने भर में यूरिया 50 फीसदी, म्यूरेट ऑफ पोटाश 35 फीसदी और फॉस्फोरिक एसिड 15 फीसदी महंगे हो गए हैं. भारत म्यूरेट ऑफ पोटाश का सबसे अधिक आयात बेलारूस तथा रूस से ही करता है. बेलारूस म्यूरेट ऑफ पोटाश का दूसरा सबसे बड़ा और रूस तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. आगे खरीफ की बुवाई होनी है और वहां से सप्लाई रुकने पर भारत में उर्वरकों की कमी होने की आशंका है. पिछले सीजन में भी अनेक राज्यों में किसानों ने उर्वरकों की कमी की शिकायत की थी.
लेकिन गेहूं किसानों और कारोबारियों के लिए मौका
लेकिन भारत के गेहूं किसानों और कारोबारियों के लिए यह संकट मौका लेकर आया है. रूस और यूक्रेन दुनिया का 14 फीसदी गेहूं उत्पादन करते हैं और ग्लोबल गेहूं निर्यात में उनकी 29 फीसदी हिस्सेदारी है. रूस गेहूं का दूसरा और यूक्रेन चौथा सबसे बड़ा निर्यातक है. यूक्रेन तीसरा सबसे बड़ा मक्का निर्यातक भी है. अभी अंतरराष्ट्रीय बाजार में गेहूं के सौदे 400 डॉलर प्रति टन से अधिक कीमत पर हो रहे हैं. भारत में गेहूं का एमएसपी 2050 रुपए प्रति क्विंटल है जो 260 डॉलर प्रति टन से कुछ अधिक बैठता है. भारत के पास गेहूं का पर्याप्त भंडार है और रबी की नई फसल भी आने वाली है. इस तरह अगर भारत गेहूं निर्यात का प्रयास करे तो किसानों और कारोबारियों को अच्छी कीमत मिल सकती है.
लेखक का 30 वर्षों का पत्रकारिता का अनुभव है. दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण जैसे संस्थानों से जुड़े रहे हैं. बिजनेस और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.
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