West Bengal: टीएमसी अपने नेताओं की गिरफ्तारी से बेचैन, भाजपा भी भीतर से परेशान

West Bengal: कुछ भाजपा नेताओं की दलील है कि पार्टी के कार्यकर्ताओं और नवनिर्वाचित विधायकों को तृणमूल से बचाने के लिए उसके नेताओं के खिलाफ कार्रवाई जरूरी थी. ऐसा ना होने पर तृणमूल कांग्रेस भाजपा विधायकों पर पार्टी छोड़ने के लिए दबाव बना सकती है.

Source: News18Hindi Last updated on: May 24, 2021, 8:50 pm IST
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West Bengal: टीएमसी अपने नेताओं की गिरफ्तारी से बेचैन, भाजपा भी भीतर से परेशान
ममता बनर्जी

पश्चिम बंगाल में अपने दो मंत्रियों और एक विधायक की सीबीआई गिरफ्तारी से तृणमूल कांग्रेस थोड़ी मुश्किल में आ गई है. पहले तृणमूल और फिर भाजपा से इस्तीफा देने वाले कोलकाता के पूर्व मेयर शोभन चटर्जी भी गिरफ्तार हैं. इससे टीएमसी की बेचैनी स्वाभाविक है. लेकिन यह मामला प्रदेश भाजपा के लिए भी परेशानी की वजह बनता जा रहा है. स्थानीय नेताओं का मानना है कि विधानसभा चुनाव में पहले ही तृणमूल के पक्ष में हवा चली, ऐसे कदमों से लोग भाजपा से और दूर हो जाएंगे.


कुछ भाजपा नेताओं की दलील है कि पार्टी के कार्यकर्ताओं और नवनिर्वाचित विधायकों को तृणमूल से बचाने के लिए यह कदम जरूरी था, क्योंकि तृणमूल कांग्रेस भाजपा विधायकों पर पार्टी छोड़ने के लिए दबाव बना सकती है. दूसरी ओर कुछ लोगों का कहना है कि भाजपा राज्य में शासन करना चाहती थी, जबकि लोगों ने तृणमूल को चुना. इसलिए भाजपा एक तरह से प्रदेश के लोगों से खफा है. स्थानीय भाजपा नेताओं का मानना है कि सीबीआई प्रकरण से उन्हें जमीनी स्तर पर नुकसान हो सकता है और इसका असर 2024 के लोकसभा चुनाव में दिख सकता है.


राज्य नेतृत्व की अनदेखी से असंतोष

पार्टी की एक और परेशानी तृणमूल से भाजपा में आए नेताओं की घर वापसी भी है. हालांकि, इसकी उम्मीद पहले से थी. सातगाछिया की पूर्व विधायक और कभी ममता बनर्जी की करीबी रहीं सोनाली गुहा को तृणमूल ने टिकट नहीं दिया था तो वे सीधे भाजपा नेता मुकुल राय के पास चली गई थीं. भाजपा ने भी उनकी ख्वाहिश पूरी नहीं की. अब उन्होंने ट्वीट किया है, “जिस तरह मछली पानी के बिना नहीं रह सकती, उसी तरह मैं ममता दीदी के बिना नहीं रह सकती.” बसीरहाट दक्षिण के पूर्व तृणमूल विधायक दीपेंदु विश्वास भी भाजपा छोड़ चुके हैं. कूचबिहार के कई नेताओं ने सीबीआई प्रकरण का विरोध करते हुए भाजपा से इस्तीफा दे दिया है. ये सब चुनाव से पहले तृणमूल से भाजपा में आए थे.


प्रदेश पार्टी अध्यक्ष दिलीप घोष का कहना है कि अनेक नेता अलग उद्देश्य लेकर भाजपा में आए थे. अब उन्हें लग रहा है कि उनका उद्देश्य पूरा नहीं होगा तो वे वापस जा रहे हैं. तृणमूल से आए नेताओं की वापसी पर घोष भले ही ज्यादा कुछ कहने से बच रहे हों, लेकिन दूसरे नेता खफा हैं. उनका कहना है कि राज्य नेतृत्व को साथ लिए बिना तृणमूल नेताओं को भाजपा में शामिल किया गया. तृणमूल से भाजपा में आए जिन नेताओं को टिकट मिला और हार गए, वे अब घर से बाहर नहीं निकल रहे हैं, ना ही फोन उठा रहे हैं. स्थानीय नेताओं की नाराजगी उनके बयान से समझी जा सकती है. एक ने कहा, ‘इन सवालों का जवाब जिन्हें देना चाहिए, वे बंगाल में नहीं हैं. अपने अपने राज्य लौट चुके हैं.’


चुनाव से पहले दूसरे दलों के नेताओं को लाने की रणनीति के पक्ष में प्रदेश भाजपा प्रभारी कैलाश विजयवर्गीय भी थे. संघ ने भी चुनाव से पहले दूसरे दलों के नेताओं को तोड़ने की रणनीति की आलोचना की है. अब विजयवर्गीय को जल्दी ही प्रभारी पद से हटाए जाने की चर्चा है. उनकी जगह भूपेंद्र यादव को यह जिम्मेदारी दी जा सकती है.


तृणमूल से आए और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हराने वाले शुभेंदु अधिकारी का भी विरोध शुरू हो गया है. पश्चिम बंगाल भारतीय युवा मोर्चा के अध्यक्ष सौमित्र ने अधिकारी को विपक्ष का नेता चुने जाने के फैसले के खिलाफ पार्टी पद से इस्तीफा देने की बात कही है. उनका कहना है कि अधिकारी के कारण ही विधानसभा चुनाव में भाजपा को हार का सामना करना पड़ा. 2019 के लोकसभा चुनाव में जंगलमहल इलाके (पश्चिम मिदनापुर, झारग्राम, पुरुलिया और बांकुड़ा जिला) से भाजपा को काफी वोट मिले थे, लेकिन आरोप है कि अधिकारी के कारण वहां के लोगों ने भाजपा को वोट नहीं दिया.


राज्यपाल धनखड़ पर आक्रामक टीएमसी

इस बीच, सीबीआई प्रकरण के कारण प्रदेश में राज्यपाल जगदीप धनखड़ का विरोध तेज हो गया है. तृणमूल सांसद कल्याण बनर्जी ने पार्टी कार्यकर्ताओं से राज्यपाल के खिलाफ अलग-अलग थानों में शिकायत दर्ज कराने के लिए कहा है, जिन्हें बाद में एफआईआर में बदला जाएगा. बनर्जी का कहना है कि उन्होंने हिंसा और धार्मिक मतभेद को बढ़ावा दिया है. अभी वे राज्यपाल हैं, इसलिए उनके खिलाफ कोई आपराधिक कार्रवाई नहीं की जाएगी. लेकिन जिस दिन धनखड़ राज्यपाल नहीं रहेंगे, तब उनके खिलाफ पुलिस कार्रवाई की जा सकती है. राज्यपाल धनखड़ ने इस बयान पर आश्चर्य जताया है.


वैसे, पश्चिम बंगाल में राज्यपाल और राज्य सरकार के बीच टकराव कोई नई घटना नहीं है. लेकिन खास बात है कि पहले की घटनाओं में आखिरकार राज्यपाल को जाना पड़ा. साल 1969 में प्रदेश में जब अजय कुमार मुखर्जी के नेतृत्व में संयुक्त मोर्चा की सरकार थी तब राज्यपाल धर्मवीर पर सरकार गिराने की कोशिश करने के आरोप लगे था. विरोध के बाद धर्मवीर को 1 अप्रैल 1969 को हटा दिया गया. लेफ्ट की सरकार के समय मुख्यमंत्री ज्योति बसु ने राज्यपाल भैरव दत्त पांडे को ‘बांग्ला दमन पांडे’ नाम दे दिया था. राज्य सरकार के साथ विवाद बढ़ने पर 10 अक्टूबर 1983 को राज्यपाल पांडे को भी हटाया गया. उसके एक साल के भीतर ही अगले राज्यपाल अनंत प्रसाद शर्मा को भी जाना पड़ा था. (डिस्क्लेमर: यह लेखक के निजी विचार हैं.)

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)
ब्लॉगर के बारे में
सुनील सिंह

सुनील सिंहवरिष्ठ पत्रकार

लेखक का 30 वर्षों का पत्रकारिता का अनुभव है. दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण जैसे संस्थानों से जुड़े रहे हैं. बिजनेस और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.

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First published: May 24, 2021, 8:50 pm IST

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