सत्ता की चाहत जो न करवाए. 1 अप्रैल को नंदीग्राम समेत पश्चिम बंगाल की 30 और असम की 39 विधानसभा सीटों पर मतदान शुरू होने से ठीक पहले देश की वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने लघु बचत योजनाओं पर ब्याज दरें घटाने का फैसला वापस लेने का ट्वीट किया. उसमें उन्होंने वजह ‘ओवरसाइट’ बताई. डिक्शनरी में इस शब्द के हिंदी अर्थ हैं- भूल-चूक, जिम्मेदारी, चौकसी, निगरानी आदि। अप्रैल फूल दिवस की सुबह वित्त मंत्री की बताई वजह का अर्थ आप खुद समझ सकते हैं यह भूल-चूक है या पार्टी के प्रति उनकी जिम्मेदारी. उनके इस ट्वीट से चंद घंटे पहले उन्हीं के मंत्रालय ने लघु बचत योजनाओं पर अप्रैल से जून 2021 के लिए ब्याज दरें 0.4% से लेकर 1.1% तक घटाने की घोषणा की थी.
नेशनल सेविंग इंस्टीट्यूट के आंकड़ों पर गौर करें तो सरकार के इस तरह आनन-फानन में रोलबैक की वजह साफ समझ आती है. पुदुचेरी समेत देश के पांच राज्यों में चुनाव चल रहे हैं और सबसे अधिक चर्चा पश्चिम बंगाल की है, जहां दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी अपना फूल खिलाना चाहती है. लघु बचत योजनाओं में जो रकम जमा होती है उसमें सबसे बड़ा हिस्सा पश्चिम बंगाल का होता है. 2017-18 में प्रदेश वासियों ने इन योजनाओं में 89 हजार 992 करोड़ रुपए का निवेश किया था. यह किसी एक साल की बात नहीं, वर्षों से पश्चिम बंगाल लघु बचत योजनाओं में निवेश में आगे रहा है. इन योजनाओं में 31 मार्च 2020 को 8,23,204 करोड़ रुपए जमा थे. इसमें 14.7% यानी 1,20,831 करोड़ पश्चिम बंगाल के खाताधारकों के थे.
आधा रह गया है एफडी पर ब्याज
हाल के दिनों में बैंक एफडी पर ब्याज दरें काफी घट गई हैं. देश का सबसे बड़े बैंक एसबीआई (वेबसाइट पर दी जानकारी के अनुसार) एफडी पर 2.9% से लेकर 5.4% तक ब्याज देता है. जितने ज्यादा समय की एफडी उतना ज्यादा ब्याज. 2008 में कुछ अवधि के लिए एफडी पर ब्याज की दर 10% से भी अधिक थी. 2013 में भी अधिकतम ब्याज दर 9% थी जो अब सिर्फ 5.4% रह गई है. लघु बचत योजनाओं पर ब्याज की दर अमूमन बैंक एफडी से ज्यादा रही है. इसलिए जो लोग शेयर बाजार और म्यूचुअल फंड का खेल नहीं समझते वे अधिक ब्याज के लिए इन योजनाओं में ही पैसा लगाते हैं.
अनेक बुजुर्ग हैं जिन्होंने रिटायरमेंट फंड का बड़ा हिस्सा इन योजनाओं में लगा रखा है. इन पर मिलने वाले ब्याज से ही उनका खर्च चलता है. उनके लिए जीवन के आखिरी पड़ाव में यह पेंशन की तरह है. अचानक पेंशन में कटौती की खबर उनके वोट डालने के फैसले को प्रभावित कर सकती थी. हम पहले भी कई बार देख चुके हैं कि मतदान के समय पेट्रोल-डीजल के दाम बढ़ने बंद हो जाते हैं।
वैसे तार्किक रूप से देखा जाए तो ब्याज दरें घटाने का फैसला गलत नहीं. लघु बचत योजनाओं की ब्याज दरें सरकारी बॉन्ड की ब्याज दरों से तय होती हैं. हाल के दिनों में बांड पर यील्ड बढ़ी है. 5 साल और 10 साल के बांड पर यील्ड बढ़कर पिछले साल के बराबर पहुंची है, लेकिन 1 साल और 2 साल के बांड पर यील्ड में गिरावट है. वैसे भी जब होम लोन पर ब्याज की दर 7% से कम हो गई हो तब एफडी पर 8% ब्याज की उम्मीद नहीं की जानी चाहिए. अब भले ही कुछ लोग यह आरोप लगाएं कि सरकार जमा पर ब्याज दर घटाकर कर्ज सस्ता करना चाहती है ताकि इंडस्ट्री को कम ब्याज पर कर्ज मिल सके. यह बात और है कि बैंकों ने जमा पर ब्याज जितना घटाया है उतना कर्ज पर नहीं.
चुनाव से जुड़ा है रोलबैक का फैसला
राजनीतिक ही नहीं आर्थिक विशेषज्ञ भी सरकार के इस सबसे तेज रोलबैक को विधानसभा चुनावों से जोड़कर देख रहे हैं. खासकर पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव जहां जीतने के लिए पार्टियां हर तरीका आजमा रही हैं. नंदीग्राम में गुरुवार को मतदान से पहले की रात तृणमूल कार्यकर्ता की हत्या कर दी गई तो मतदान वाले दिन भाजपा कार्यकर्ता की मौत हो गई. धारा 144 लागू होने के बावजूद जगह-जगह हिंसा होती रही.
ममता की मौजूदगी में एक बूथ पर तृणमूल और भाजपा के सैकड़ों कार्यकर्ता लाठियां, छड़ें और ईंट-पत्थर लेकर एक दूसरे के सामने आ गए. मुख्यमंत्री ने एक ही दिन में चुनाव आयोग को 60 से ज्यादा शिकायतें भेजीं, राज्यपाल को फोन किया, तो तृणमूल से भाजपा में गए शुभेंदु अधिकारी ने शांतिपूर्वक और निष्पक्ष चुनाव करवाने के लिए चुनाव आयोग और केंद्रीय सुरक्षा बलों को धन्यवाद दिया.
प्रदेश के माहौल का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि आम तौर पर मतदान के दिन अपने घर या ऑफिस से निगरानी रखने वाली ममता पहली बार व्हीलचेयर पर कई बूथ पर गईं और मतदान का जायजा लिया. ममता के मंत्रिगण भी अपने-अपने इलाकों में चुनाव प्रचार ना कर नंदीग्राम पर ही नजर रखे हुए थे.
पहली बार धर्म के आधार पर चुनाव
पश्चिम बंगाल में पहली बार चुनाव में धर्म का खुल्लम-खुल्ला इस्तेमाल किया जा रहा है. लेफ्ट के शासन काल में यहां वर्ग संघर्ष था जिसमें सभी धर्मों के लोग साथ मिलकर अपनी लड़ाई लड़ते थे. चंद हफ्ते पहले तक भी प्रदेश के नामी-गिरामी लोग यह मानने को तैयार नहीं थे कि पश्चिम बंगाल में धर्म के आधार पर भी चुनाव हो सकता है. ममता पर अल्पसंख्यकों को केंद्र में रखकर योजनाएं बनाने के आरोप लगे तो जवाब में भाजपा के संभावित मुख्यमंत्री उम्मीदवार शुभेंदु अधिकारी ने साफ-साफ 70-30 का फॉर्मूला दे डाला. यानी 30% अल्पसंख्यक आबादी की बजाय 70% बहुसंख्यक आबादी पर फोकस करना चाहिए.
विधानसभा चुनावों को देखते हुए सरकार ने फिलहाल तो ब्याज दर घटाने का फैसला वापस ले लिया है, लेकिन चुनाव खत्म होने के बाद इस पर अमल किया ही जा सकता है. वैसे भी लघु बचत योजनाओं के लिए हर तिमाही ब्याज दर तय की जाती है. इस हिसाब से तो अगला संशोधन जुलाई से होना चाहिए. लेकिन सरकार है, उसके पास कभी भी कुछ भी करने का अधिकार तो है ही. वह बैक डेट से भी फैसला लागू कर सकती है. बेहतर होगा कि ब्याज दर लागू होने के एक दिन पहले नई दरों की घोषणा करने के बजाय सरकार ब्याज तय करने का फॉर्मूला पारदर्शी रखे, ताकि निवेशक समझ सकें कि उन्हें आगे क्या करना चाहिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
लेखक का 30 वर्षों का पत्रकारिता का अनुभव है. दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण जैसे संस्थानों से जुड़े रहे हैं. बिजनेस और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.
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