आपने भी पढ़ा या सुना होगा कि प्रेम और जंग में सब कुछ जायज होता है. अब इसमें एक और बात जुड़ गई है- चुनाव. चुनाव में भी सबकुछ जायज होता है. धार्मिक ध्रुवीकरण करना या धर्म के आधार पर वोट मांगना, हत्या करना-करवाना, आम लोगों की जान जोखिम में डालना या फिर मुख्यमंत्री का फोन टैप करना, चुनाव जीतने के लिए कुछ भी नाजायज नहीं रह गया है. पश्चिम बंगाल का विधानसभा चुनाव शायद देश का पहला चुनाव है, जहां इतने रंग देखने को मिल रहे हैं. अब जब प्रदेश में कोरोना पॉजिटिव मामले तेजी से बढ़ रहे हैं, महामारी की वजह से दो प्रत्याशियों और एक मौजूदा विधायक की मौत हो चुकी है, तब भी चुनाव आयोग ने बाकी तीन चरणों के मतदान पहले से तय तारीखों पर ही करवाने का फैसला किया है तो आने वाले दिनों में कुछ और रंग भी देखने को मिल सकते हैं.
हिंसा बढ़ने के साथ मतदान में कमी
प्रदेश में पहले तीन चरणों के मतदान में छह लोगों की जान गई थी, लेकिन चौथे चरण में पांच लोगों की मौत हो गई. इनमें से चार लोगों की जान सीआईएसएफ की फायरिंग में गई. हिंसा बढ़ने का असर शायद मतदान पर भी हो रहा है. पहले तीन चरणों में 85% के आसपास वोटिंग हुई थी. चौथे चरण में 79.9% वोटिंग हुई तो पांचवें चरण में 78.3% वोट पड़े.
कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी ने सभी चुनावी सभाएं रद्द कर दी हैं. तृणमूल कांग्रेस की चीफ और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कहा है कि वे कोलकाता में कोई भी बड़ी सभा नहीं करेंगी. देर से सही, आखिरकार भाजपा ने भी कहा कि उसकी सभाओं में 500 से ज्यादा लोग नहीं आएंगे. यह बात प्रदेश में अब तक 18 चुनावी सभाएं कर चुके प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यक्रमों पर भी लागू होगी. पार्टी की इस घोषणा से कुछ ही देर पहले केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने राहुल गांधी पर तंज कसते हुए कहा था कि ‘कैप्टन को अपना जहाज डूबता दिख रहा है’ और ‘चुनाव प्रक्रिया संवैधानिक दायित्व है.’
सीटों की दावेदारी और ऑडियो क्लिप का मुद्दा
वोटिंग के बीच वोटरों को मानसिक रूप से प्रभावित करने की भी कोशिशें जारी हैं. केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का दावा है कि अभी तक 180 सीटों पर हुए मतदान में से 122 सीटों पर भाजपा को जीत मिलेगी. हालांकि इसके बाद खड़दह में ममता ने फिर कहा कि भाजपा को इस चुनाव में कुछ भी हासिल नहीं होगा. एक तृणमूल नेता ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर कहा कि इन 180 सीटों में से पार्टी को कम से कम 110 सीटों पर जीत मिलेगी. बाकी बचे तीन चरणों में भी पार्टी कम से कम 80 सीटें जीतेगी.
भाजपा की तरफ से तो प्रधानमंत्री भी अपने भाषण में इसका जिक्र कर चुके हैं. तृणमूल नेता भी अपनी सभाओं में इसका जिक्र कर रहे हैं। पार्टी ने चुनाव आयोग से शिकायत की है कि भाजपा ने अवैध तरीके से ममता के फोन की रिकॉर्डिंग की और यह निजता के अधिकार का उल्लंघन है. पार्टी ने इंडियन टेलीग्राफ एक्ट आईटी एक्ट और आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत कार्रवाई की मांग की है. गौरतलब है कि भाजपा आईटी सेल के प्रमुख अमित मालवीय ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह ऑडियो क्लिप जारी किया था.
पहली बार ध्रुवीकरण का खुल कर इस्तेमाल
पश्चिम बंगाल पहली बार खुल कर ध्रुवीकरण का गवाह बन रहा है. प्रधानमंत्री ने 17 अप्रैल को आसनसोल में एक चुनावी सभा में वहां तीन साल पहले हुए दंगों की याद ताजा करने की कोशिश की. उस दंगे में मौलाना रशीद के बेटे समेत तीन लोगों की मौत हो गई थी. तब मौलाना ने लोगों से हिंसा बंद करने की अपील करते हुए कहा था कि वे अपने बेटे की मौत का बदला नहीं चाहते हैं. अब प्रधानमंत्री की टिप्पणी पर उन्होंने कहा है कि वे किसी एक समुदाय के नहीं बल्कि पूरे देश के प्रधानमंत्री हैं. उन्हें हमारे घाव भरने में मदद करनी चाहिए, राजनीतिक लाभ के लिए पुराने घाव कुरेदने नहीं चाहिए.
वैसे ध्रुवीकरण के आरोप भले भाजपा पर लग रहे हों, इसमें कोई दो राय नहीं कि पार्टी को यह अवसर ममता बनर्जी ने ही दिया है. उन पर सरकारी नीतियों में अल्पसंख्यकों को ज्यादा लाभ देने के आरोप लगते रहे हैं. पिछले दिनों उन्होंने अल्पसंख्यकों से कहा था कि वे अपना वोट बंटने न दें, जिस पर चुनाव आयोग ने कार्रवाई भी की.
नए अंदाज में दिख रही है माकपा
इन चुनावों में लेफ्ट की दावेदारी भले बहुत कमजोर हो, लेकिन प्रचार में नयापन लाने में वह आगे है. टुंपा सोना, लुंगी डांस और उड़ी बाबा गानों के बाद अब उसने मिर्जापुर वेब सीरीज का इस्तेमाल किया है. माकपा इस वेब सीरीज के कालीन भैया, बबलू, गुड्डू, मुन्ना जैसे चरित्रों के नाम का प्रयोग कर रही है. पार्टी ने बड़ी चुनावी सभाएं रद्द करने के बाद रेडियो, टीवी और इंटरनेट पर प्रचार तेज कर दिया है.
दरअसल बुजुर्गों की पार्टी कही जाने वाली माकपा ने इस बार बड़ी संख्या में युवा उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है. युवा वोटरों को आकर्षित करने के लिए वह हर उस चीज का इस्तेमाल कर रही है जो युवाओं में लोकप्रिय है. वामदलों के प्रचार में मीनाक्षी मुखर्जी की काफी डिमांड है. उन्हें दूसरी जगहों के लेफ्ट प्रत्याशी भी प्रचार के लिए बुला रहे हैं. मीनाक्षी नंदीग्राम से चुनाव लड़ रही हैं जहां ममता बनर्जी और तृणमूल से भाजपा में गए शुभेंदु अधिकारी के बीच कड़ा मुकाबला है. (यह लेखक के निजी विचार हैं.)
लेखक का 30 वर्षों का पत्रकारिता का अनुभव है. दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण जैसे संस्थानों से जुड़े रहे हैं. बिजनेस और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.
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