मंगलवार, 6 अप्रैल को केरल, तमिलनाडु, असम और पुदुचेरी में विधानसभा चुनाव संपन्न हो गए. इनमें से किसी भी राज्य में चुनाव के किसी भी चरण में हिंसा की खबर नहीं आई. लेकिन पश्चिम बंगाल में जैसे-जैसे मतदान के चरण आगे बढ़ रहे हैं, हिंसा बढ़ती जा रही है. हिंसा भी सिर्फ तोड़फोड़ या हंगामे तक सीमित नहीं, बल्कि जानलेवा हो रही है.
बंगाल में अभी तक मतदान के तीन चरण पूरे हुए हैं. हर चरण में कम से कम एक भाजपा और एक तृणमूल कार्यकर्ता की मौत की सूचना आई. मंगलवार को भी सुबह एक भाजपा कार्यकर्ता के मारे जाने की खबर आई तो दिन बीतते-बीतते एक तृणमूल समर्थक की जान चली गई. दूसरे चरण में तो सिर्फ नंदीग्राम में तनाव का माहौल दिखा था, लेकिन तीसरे चरण में तनाव प्रदेश के कई इलाकों में नजर आया. कई जगह तो जैसे युद्ध क्षेत्र बन गए थे. कहीं रातभर बमबाजी होती रही ताकि सुबह विरोधी वोट देने घरों से न निकलें, कहीं किसी पार्टी के प्रत्याशी को दौड़ा-दौड़ा कर पीटा जा रहा था, तो कहीं वोट डालने जा रहे मतदाताओं के साथ मारपीट की जा रही थी. यहां तक कि महिलाएं भी लाठी-डंडा लेकर निकल आईं. ऐसा नजारा दशकों से चुनावी हिंसा का गवाह रहे पश्चिम बंगाल में भी पहले नहीं दिखा था.
हिंसा बढ़ने का मतलब भाजपा-तृणमूल के बीच कड़ा मुकाबला
हिंसा के आरोप भाजपा और तृणमूल कांग्रेस दोनों पर लग रहे हैं. इक्का-दुक्का जगहों पर संयुक्त मोर्चा पर भी आरोप लगे हैं. भले ही भाजपा 200 से अधिक सीटें जीतने का दावा कर रही हो और जवाब में तृणमूल प्रमुख ममता बनर्जी कह रही हों कि भाजपा को बंगाल में रसगुल्ला (यानी शून्य) मिलेगा, लेकिन जिस तरह चरण-दर-चरण हिंसा बढ़ रही है, उससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि भाजपा और तृणमूल के बीच मुकाबला कड़ा होता जा रहा है.
तीन चरणों में अभी तक 91 सीटों पर मतदान हुए हैं और बाकी पांच चरणों में 203 सीटों पर मतदान होने हैं. आने वाले दिनों में अगर हिंसा और बढ़ती है तो आश्चर्य नहीं होना चाहिए. एकमात्र उम्मीद यही है कि अन्य चार राज्यों में चुनाव खत्म होने के बाद चुनाव आयोग वहां से केंद्रीय सुरक्षा बलों की अतिरिक्त कंपनियां पश्चिम बंगाल में तैनात करे और हिंसा में कमी आए. हालांकि केंद्रीय सुरक्षा कर्मियों पर भी तृणमूल ने आरोप लगाए हैं. ममता ने सुबह एक वीडियो जारी करते हुए कहा कि सुरक्षाकर्मी मतदाताओं को भाजपा के पक्ष में वोट डालने के लिए कह रहे हैं. उन्होंने चुनाव आयोग पर भी निष्क्रिय होने का आरोप लगाया.
अब तृणमूल के दबदबा वाले इलाकों में चुनाव
पहले दो चरणों में जिन सीटों पर मतदान हुए थे वहां 2016 के विधानसभा चुनाव में तो तृणमूल का ही दबदबा था, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में उन इलाकों में भाजपा आगे थी. अब जिन क्षेत्रों में मतदान होने हैं वे तृणमूल का गढ़ माने जाते हैं. उदाहरण के लिए मंगलवार को दक्षिण 24 परगना, हावड़ा और हुगली की जिन 31 सीटों पर मतदान हुआ उनमें से 29 सीटें तृणमूल ने 2016 में जीती थीं. एक सीट कांग्रेस को और एक माकपा को मिली थी.
यही नहीं, जब 2019 में प्रदेश में भाजपा ने बेहतरीन प्रदर्शन करते हुए 18 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की थी, तब भी इन 31 विधानसभा क्षेत्रों में से 29 पर तृणमूल ही आगे रही थी और सिर्फ दो पर भाजपा. इसलिए तृणमूल नेता भी मान रहे हैं कि उनके लिए असली लड़ाई अब शुरू हुई है. यहां 2019 में तृणमूल का वोट शेयर 51% और भाजपा का 37% था.
इन 31 विधानसभा क्षेत्रों में अल्पसंख्यक आबादी 40% तक है. यहां के खासकर हुगली जिले में भाजपा ने अपनी मजबूत पैठ बना ली है. वही हुगली जहां के फुरफुरा शरीफ के अब्बास सिद्धीकी नई पार्टी बनाकर चुनाव लड़ रहे हैं. अभी तक अल्पसंख्यकों का वोट तृणमूल को मिलता रहा, जिसके इस बार तृणमूल और सिद्दीकी के आईएसएफ में बंटने के आसार हैं क्योंकि इस इलाके में सिद्दीकी की मजबूत पैठ मानी जाती है. ऐसा हुआ तो इसका नुकसान तृणमूल को ही होगा. इसलिए ममता बनर्जी ने अल्पसंख्यकों से अपील की कि वे अपने वोट को बंटने ना दें. उनके इस बयान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनुमान लगाया कि अल्पसंख्यक वोट ममता के हाथ से फिसल रहे हैं.
तृणमूल को एक और जगह भाजपा से कड़ी टक्कर मिल रही है. पिछले चुनाव में ग्रामीण इलाकों में भी तृणमूल का दबदबा था. लेकिन 5 वर्षों के दौरान ग्रामीण इलाके में भाजपा ने अच्छी पैठ बना ली है. विश्लेषक ज्यादा हिंसा होने की एक वजह इसे भी मान रहे हैं. उनका कहना है कि पहले तृणमूल का विरोध करने वाला कोई नहीं था, लेकिन अब उसे भाजपा से बराबरी की टक्कर मिल रही है.
अभी बंगाल में मतदान के पांच चरण बाकी हैं. माहौल देखते हुए माना जा रहा है कि आने वाले दिनों में चुनाव प्रचार और तीखा होगा. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अभी तक यहां 11 रैलियां कर चुके हैं, उनकी कुल 20 चुनावी सभाएं हो सकती हैं. यहां एक बात गौर करने वाली है. शुरुआती चरणों में चुनाव उन सीटों पर हुए जहां भाजपा का दबदबा था. उस दौरान पार्टी के नेताओं को दूसरे राज्यों में भी प्रचार के लिए जाना पड़ रहा था. अब जब बंगाल में कड़े मुकाबले की बारी है तो पार्टी के नेता दूसरे राज्यों से फारिग हो चुके हैं और उनका पूरा जोर बंगाल पर ही रहेगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
लेखक का 30 वर्षों का पत्रकारिता का अनुभव है. दैनिक भास्कर, अमर उजाला, दैनिक जागरण जैसे संस्थानों से जुड़े रहे हैं. बिजनेस और राजनीतिक विषयों पर लिखते हैं.
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