एक पुरानी कहावत है कि भाग्य उसी की मदद करता है जो खुद अपनी मदद करता है और क्रिकेट में अक्सर ऐसा देखा जाता है कि सिर्फ आपका भाग्य ही नहीं बल्कि कई मौकों पर आपके साथी खिलाड़ियों का दुर्भाग्य भी अंजाने में ही सही आपके लिए बड़ा मददगार साबित हो सकता है. ऋषभ पंत को अचानक ही साउथ अफ्रीका के खिलाफ 5 मैचों की टी20 सीरीज में कप्तानी मिलने का अवसर भी शायद कुछ ऐसा ही है. वरना ईमानदारी से अपने दिल पर हाथ रखकर आप बोलें कि 6 महीने पहले जब साउथ अफ्रीका में टीम इंडिया खेल रही थी और उसके कप्तान विराट कोहली थे तो किसने सोचा था कि अगली बार जब दिल्ली में उसी टीम के खिलाफ कोई इंटरनेशनल मैच होगा तो दिल्ली का ही एक स्थानीय खिलाड़ी कप्तान के तौर पर नजर आएगा? क्योंकि कोहली के उत्तराधिकारी के तौर पर रोहित शर्मा सफेद गेंदों की कप्तानी की जिम्मेदारी ले चुके थे और आपातकालीन व्यवस्था के लिए के एल राहुल को भविष्य के कप्तान के तौर पर तैयार किया जा रहा था.
और तो और ऋषभ पंत के लिए हालात तो और विपरीत हो रहे थे क्योंकि आईपीएल में लगातार दूसरे साल उनकी टीम ट्रॉफी जीतने में नाकाम हुई. बद से बदतर वाली बात ये रही कि बल्लेबाज़ के तौर पर भी पंत ने मायूस ही किया क्योंकि उनके बल्ले से पूरे सीज़न एक अर्धशतक तक भी नहीं निकला. वहीं दूसरे तरफ हार्दिक पंड्या जैसे आलराउंडर ने ना सिर्फ आईपीएल में हरफनमौला खेल दिखाया बल्कि कप्तान के ठोस विकल्प के तौर पर भी उभरे. अगर पंड्या पिछले 6-8 महीनों से भारतीय टीम से बाहर नहीं रहते तो शायद राहुल के अचानक चोटिल होकर बाहर होने के हालात में अंतरिम कप्तान की भूमिका में वो नज़र आते ना कि पंत. लेकिन, यही तो किस्मत है! शायद पंत की तकदीर में ये लिखा हुआ था कि वो एमएस धोनी और कोहली से भी कम उम्र में टीम इंडिया की कप्तानी करेंगे तो उन्होंने कर ली, भले ही ऐसा होने के लिए स्वाभाविक तौर पर उन्हें कभी भी प्रबल दावेदार नहीं माना गया.
बहरहाल, कहने का ये मतलब कतई नहीं है कि पंत ऐसी प्रोन्नति के हकदार नहीं थे या फिर उन्हें ज़बरदस्ती टीम इंडिया का कप्तान बना दिया गया. सच तो ये है कि पंत अंडर 19 वर्ल्ड कप यानि 2016 में ही टीम इंडिया की कप्तानी कर चुके होते और अगर उस समय के चयनकर्ताओं ने एक ख़ास समझौते वाले निर्णय के तहत ईशान किशन को कप्तानी देने का फैसला ना किया होता और पंत को सिर्फ बल्लेबाज़ के तौर पर उन्मुक्त तरीके से बल्लेबाज़ी में क़त्लेआम मचाने की छूट ना दी होती. इत्तेफाक़ से उस टीम के कोच भी राहुल द्रविड़ ही थे. बहरहाल, पंत उस टूर्नामेंट के बाद जैसे ही भारत लौटे उनके हाथों में दिल्ली डेयरडेविल्स का करार था और फिर कुछ ही महीनों बाद वो दिल्ली की वनडे टीम (लिस्ट ए) की कप्तानी कर रहे थे. इसके बाद उन्हें बहुत ज़्यादा इंतज़ार नहीं करना पड़ा क्योंकि उन्हें रणजी ट्रॉफी टीम का कप्तान भी बना दिया गया. लेकिन, तब तक पंत के सामने असली चुनौती खुद को टीम इंडिया में स्थापित करने की थी. उस वक्त धोनी की तूती बोल रही थी और चाहकर भी पंत टेस्ट या वनडे तो क्या टी20 टीम में भी एंट्री नहीं कर पा रहे थे. हालात से हताश और डीडीसीए की राजनीति से परेशान होने वाले पंत की बल्लेबाज़ी में गिरावट आने लगी और आलम ये रहा कि उन्मुक्त चंद जैसे खिलाड़ी को चयनकर्ताओं ने कप्तानी दे दी, वो भी पंत को ग़लत अंदाज़ में बाहर करके. ख़ैर, मज़बूत इरादे वाले पंत को इस रवैये से मायूसी तो हुई लेकिन वो परेशान नहीं हुए.
और यही वजह है कि आईपीएल 2022 में साधारण खेल दिखाने के बावजूद ऑस्ट्रेलिया के पूर्व दिग्गज कप्तान रिकी पोटिंग ने सार्वजिनक तौर पर पंत को बैक किया. पोटिंग दिल्ली कैपिटल्स के कोच हैं और उन्होंने 2 साल पहले श्रैय्यस अय्यर को बेहतरीन नतीजे देने के बावजूद पंत को नियमित कप्तान बनाये रखने की वकालत करने वालों में सबसे आगे रहे, तब भी जब कि अय्यर फिट होकर टीम में वापस आ गए.
‘मेरे मन में पंत की कप्तानी को लेकर कोई संदेह नहीं है. वो एक युवा खिलाड़ी हैं और कप्तानी की बारीकियों को समझ रहे हैं. ऐसा होने में वक्त लगता है.’ ऐसा पोटिंग ने कुछ महीने पहले ही कहा. भारतीय क्रिकेट के चाहने वालों को पोटिंग की इस बात को हमेशा ज़ेहन में रखने की जरूरत है जब वो पंत की कप्तानी के बारे में बहस करें.
ऐसा नहीं कि पंत की कप्तानी की आलोचना नहीं हो सकती है. इस साल जिस तरह से कुलदीप यादव या फिर ललित यादव और शार्दुल ठाकुर जैसे गेंदबाज़ों को अजीब तरीके से पंत ने इस्तेमाल किया तो जानकारों को हैरानी हुई. यही हाल पिछले साल पंत ने रविचंद्रन अश्विन जैसे सीनियर गेंदबाज़ के साथ किया था. पलक झपकते ही लोगों ने पंत की आलोचना ये कहकर करनी शुरु कर दी देखो भाई, धोनी ने तो कभी झारखंड की भी कप्तानी नहीं की थी लेकिन पहले ही मैच से वो कप्तान के तौर पर इतने स्वाभाविक दिखे कि सचिन तेंदुलकर जैसे दिग्गज ने उन्हें महानतम कप्तान मानने में देर नहीं लगाई. शायद पंत की कप्तानी के साथ हर किसी को थोड़ा संयम बनाये रखने की जरूरत है.
पंत के लिए तसल्ली की बात ये है कि आने वाले एक-दो साल तक उन्हें टीम इंडिया की नियमित कप्तानी मिलने के आसार कम ही हैं. पहले रोहित शर्मा वापस आ जाएंगे और उसके बाद राहुल तो हैं ही कतार में. अब पंड्या भी उस कतार में खड़े हो चुके हैं. अगर साउथ अफ्रीका के खिलाफ़ मौजूदा टीम को देखें तो दिनेश कार्तिक और भुवनेश्वर कुमार को छोड़ दिया जाए तो पूरी टीम ही भविष्य की टीम है जिसके लिए कप्तान रोहित शर्मा नहीं बल्कि राहुल-पंत-पंड्या में से कोई एक हो सकता है. पंड्या ने तो आईपीएल के पहले ही सीज़न में कप्तान के तौर पर छक्का जड़ दिया है. वहीं राहुल और पंत ने अब तक छाप नहीं छोड़ी है. अगर पंत दिल्ली के लिए आईपीएल ट्रॉफी जीतते हैं तो उनके लिए भविष्य के कप्तान की दावेदारी और ज़ोर पकड़ेगी. लेकिन, तब तक वो इन 5 मैचों को बस एक अचानक ही मिलने वाले तोहफे के तौर पर स्वीकार कर लें और जितना बेहतर खेल दिखा सकें, उतना अच्छा.
न्यूज़18 इंडिया के पूर्व स्पोर्ट्स एडिटर विमल कुमार करीब 2 दशक से खेल पत्रकारिता में हैं. Social media(Twitter,Facebook,Instagram) पर @Vimalwa के तौर पर सक्रिय रहने वाले विमल 4 क्रिकेट वर्ल्ड कप और रियो ओलंपिक्स भी कवर कर चुके हैं.
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