अनिवार्य मतदान और ‘एक देश-एक चुनाव’ की संवैधानिक उलझनें
भारत में इस समय लगभग 95 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें 49 करोड़ पुरुष और 46 करोड़ महिला मतदाता हैं. कुल वोटरों में लगभग 1.92 करोड़ वरिष्ठ नागरिक हैं. नए कानूनी बदलाव के बाद अब साल में 4 बार मतदाता सूची में नाम शामिल कराने की अनुमति मिलने से लोकतंत्र में युवाओं की भागीदारी बढ़ेगी. संविधान में लोगों की समानता, स्वतंत्रता और न्याय के साथ कल्याणकारी राज्य के जिस सपने को देखा गया था, उसे सफल बनाने के लिए लोगों को अधिकारों के साथ अपने कर्तव्यों का पालन करना जरूरी है.

गणतंत्र दिवस के एक दिन पहले 25 जनवरी को चुनाव आयोग की स्थापना हुई थी. इस मौके को सन 2011 से राष्ट्रीय मतदाता दिवस के तौर पर मनाया जा रहा है. इस साल इस अवसर पर दो अच्छी बातों पर नई बहस शुरू हुई. पहला देश में मतदान यानी वोटिंग को बढ़ाना चाहिए या फिर वोटिंग को अनिवार्य कर देना चाहिए. दूसरा ‘एक देश एक चुनाव’ के साथ ‘एक देश एक मतदाता सूची’ को साकार करना चाहिए.
संविधान के अनुच्छेद 326 के तहत 18 साल से ऊपर की उम्र के सभी बालिग़ नागरिकों को भारत में मतदान का अधिकार है. 1952 के पहले आम चुनाव में लगभग 44.87 फीसदी लोगों ने ही वोट दिया था. दो चुनावों के बाद सन 1962 में इसमें 10 फीसदी बढोत्तरी हुई और लगभग 55.42 फीसदी लोगों ने वोट डाला.
15 साल बाद यानी 1967 के चुनावों में मतदान प्रतिशत 60 फीसदी के पार हो गया और लगभग 61.04 फीसदी मतदाताओं ने वोट डाला. पिछले 2019 के चुनावों में लगभग 67.40 लोगों ने वोट डाला जो पहले आम चुनावों से 50 फीसदी ज्यादा है.
संविधान में संशोधन के साथ अनिवार्य मतदान को लागू करना बड़ी चुनौती
भारत में इस समय लगभग 95 करोड़ मतदाता हैं, जिनमें 49 करोड़ पुरुष और 46 करोड़ महिला मतदाता हैं. कुल वोटरों में लगभग 1.92 करोड़ वरिष्ठ नागरिक हैं. नए कानूनी बदलाव के बाद अब साल में 4 बार मतदाता सूची में नाम शामिल कराने की अनुमति मिलने से लोकतंत्र में युवाओं की भागीदारी बढ़ेगी.
संविधान में नागरिकों के लिए मौलिक कर्तव्य
सन 1976 में आपातकाल के दौरान इंदिरा सरकार द्वारा सरदार स्वर्ण सिंह समिति की सिफारिशों के अनुरूप 42वें संशोधन के माध्यम से संविधान के अनुच्छेद 51-अ में 10 मौलिक कर्तव्य जोड़े गए थे. उसके बाद 86वें संशोधन के माध्यम से वर्ष 2002 में बच्चों की शिक्षा के बारे में 11वां कर्तव्य जोड़ा गया था.
मौलिक अधिकारों को लागू कराने के लिए लोग अनुच्छेद 32 और 226 के तहत सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में याचिका दायर कर सकते हैं. लेकिन मौलिक कर्तव्यों को लागू करने के लिए कोई संवैधानिक व्यवस्था नहीं बनी. कई कर्तव्यों जैसे सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा, तिरंगा और राष्ट्रगान का सम्मान, देश की एकता-अखंडता की रक्षा करने के बारे में संसद से नियम-क़ानून बने हैं.
सरकार बनने के बाद अगले 5 सालों तक जागरूक मतदाता राज्यों और केंद्र की सरकार से जवाबदेही की मांग करने लगें तो तो गवर्नेंस में बेहतरी के साथ विकास भी बढेगा.
‘एक देश एक वोटर लिस्ट’
संविधान के अनुसार देश में त्रिस्तरीय सरकारों का प्रावधान है. केंद्र में संसद, राज्यों में विधानसभा और स्थानीय स्तर पर जिला और ग्राम पंचायतों की व्यवस्था है. अभी सभी चुनावों के लिए अलग-अलग वोटर लिस्ट बनती है. पूरे देश में सभी चुनावों के लिए एक ही वोटर लिस्ट बने तो इससे चुनाव आयोग का काम आसान होने के साथ वोटरों का फर्जीवाड़ा भी रुकेगा.
इसके लिए, आधार से वोटर लिस्ट को जोड़ने का नया कानून बना है. लेकिन ‘एक देश एक वोटर लिस्ट’ को लागू करने के लिए राज्यों की सहमति के साथ कानून में भी अनेक बदलाव करने होंगे.
‘एक देश एक चुनाव’ को क्रमबद्ध तरकी से लागू किया जाए
राजनीतिक सहमति बनाने के साथ जनप्रतिनिधित्व क़ानून और संविधान में भी अनेक संशोधन करने पड़ेंगे.
राज्यों की सहमति और संविधान संशोधन
विधि आयोग ने इस बारे में संशोधनों के विवरण के साथ अप्रैल, 2018 में पब्लिक नोटिस जारी किया था. विधि आयोग के अनुसार इस प्रस्ताव से संविधान के अनुच्छेद 328 पर भी प्रभाव पड़ेगा, जिसके लिए अधिकतम राज्यों का अनुमोदन लेना पड़ सकता है.
संविधान के अनुच्छेद 368(2) के अनुसार, ऐसे संशोधन के लिए न्यूनतम 50 फीसदी राज्यों के अनुमोदन की जरूरत होती है. लेकिन ‘एक देश, एक चुनाव’ के तहत हर राज्य की विधानसभा के अधिकार और कार्यक्षेत्र प्रभावित हो सकते हैं.
इसलिए इस मामले में सभी राज्यों की विधानसभाओं से अनुमोदन लेने की ज़रूरत पड़ सकती है. चुनावों से जुड़े सुधार के इन मामलों पर संकीर्ण राजनीतिक हितों की बजाय राज्यों और सभी राजनीतिक दलों को व्यापक देशहित में सहमति बनाने की शुरुआत करनी चाहिए.
(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है)
विराग गुप्ताएडवोकेट, सुप्रीम कोर्ट
लेखक सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान तथा साइबर कानून के जानकार हैं. राष्ट्रीय समाचार पत्र और पत्रिकाओं में नियमित लेखन के साथ टीवी डिबेट्स का भी नियमित हिस्सा रहते हैं. कानून, साहित्य, इतिहास और बच्चों से संबंधित इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं. पिछले 4 वर्ष से लगातार विधि लेखन हेतु सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा संविधान दिवस पर सम्मानित हो चुके हैं. ट्विटर- @viraggupta.