एम्स में हुई हैंकिंग को साइबर आतंकवाद की घटना माना जा रहा है. इसके अलावा देश की राजधानी दिल्ली में वित्तीय अपराध और धोखाधड़ी से जुड़े अनेक मामले होते हैं. अनेक राज्यों में ऑपरेट कर रहे तस्कर, भू-माफिया, मादक-पदार्थों के कारोबारी, यौन-अपराध, फर्जी दस्तावेज बनाने वाले सफेदपोश अपराधियों के तार भी राजधानी से जुड़े होते हैं. ऐसे अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई के लिए आईपीसी, सीआरपीसी और आईटी एक्ट आदि में आवश्यक प्रावधान हैं. लेकिन साइबर युग के सफेदपोश अपराधियों पर नकेल के लिए दिल्ली पुलिस को व्यापक अधिकार और प्रभावी कानून की दरकार थी. इसके लिए केन्द्र शासित प्रदेश अधिनियम 1950 की धारा-2 के तहत केन्द्रीय गृह मंत्रालय को अधिकार हासिल हैं. दिल्ली पुलिस ने जून 2022 में मंजूरी के लिए उपराज्यपाल को प्रस्ताव भेजा था. इसके लिए उपराज्यपाल वी के सक्सेना ने दिल्ली में तेलंगाना के कानून को लागू करने के लिए प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है. LG की मंजूरी के बाद केन्द्रीय गृह मंत्रालय की नोटिफिकेशन से दिल्ली में यह कानून लागू हो जायेगा.
तेलंगाना के 1986 के कानून में चार साल पहले हुए कई बदलाव- खतरनाक गतिविधियों की रोकथाम के लिए आंध्र प्रदेश राज्य ने 1986 में कानून बनाया था. विभाजन के बाद तेलंगाना सरकार ने इसमें अनेक संशोधन किये हैं. राज्य सरकार ने पांच साल पहले 2017 में संशोधन करके इस कानून का बडे़ पैमाने पर विस्तार कर दिया. तेलंगाना के राज्यपाल ने नवम्बर 2017 में इसे केन्द्र सरकार के पास भेजा. राष्ट्रपति की अगस्त 2018 में मंजूरी के बाद संशोधित कानून को पूरे राज्य में लागू कर दिया गया. इसके बाद ऐसे अनेक फील्ड के अपराधी, नए क़ानून के दायरे में आ गए हैं-
• जहरीले और मिलावटी बीज के कारोबारी
• कीटनाशकों के खतरनाक व्यापारी
• खाद में मिलावट और कालाबाजारी करने वाले
• खाने में मिलावट करने वाले
• दस्तावेजों में हेर-फेर और फर्जीवाड़ा करने वाले
• आवश्यक वस्तु अधिनियम के तहत कमोडिटी में अपराध करने वाले
• जंगल विभाग की भूमि और कानून के अपराधी
• गेमिंग के कारोबारी
• एक्सप्लोजिव और बारुद के अपराधी
• अवैध हथियारों के कारोबारी
• यौन अपराधी
• साइबर अपराधी
• सफेदपोश अपराधी
• भू-माफिया
अपराधियों की प्रिवेंटिव हिरासत- भारत के संविधान में जनता की आजादी का बेहद महत्व है. संविधान के अनुच्छेद-22 के अनुसार किसी भी व्यक्ति को मजिस्ट्रेट की अनुमति के बगैर 48 घंटे से ज्यादा हिरासत में नहीं रखा जा सकता. लेकिन समाज को अपराधियों से बचाने के लिए केन्द्र और राज्यों में समय-समय पर प्रिवेन्टिव हिरासत के लिए कानून बनाये गये हैं. इमरजेंसी के समय लागू मीसा कानून के दुरुपयोग की बहुत चर्चा हुई है. लेकिन मकोका, रासुका और टाडा जैसे कई कानूनों की वजह से आतंकी ताकतों पर लगाम भी लगी है. दिल्ली में तेलंगाना का कानून लागू होने के बाद अपराधियों को एहतियात के तौर पर हिरासत में लिया जा सकेगा. हिरासत की अवधि पहली बार में तीन महीने से अधिक नहीं होगी. अधिकतम 12 महीने यानि एक साल की हिरासत हो सकेगी. हिरासत में लेने के तीन हफ्ते के भीतर मामले को सलाहकार बोर्ड के समक्ष रखना होगा जिसमें हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज या समकक्ष सदस्य होंगे.
सुप्रीम कोर्ट में तेलंगाना के कानून की आलोचना- प्रिवेंटिव डिटेंशन के लिए सलाहकार बोर्ड का गठन सरकार द्वारा होता है. ऐसे अनेक मामलों में आरोपी व्यक्ति हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में रिलीफ के लिए याचिका दायर कर सकते हैं. तेलंगाना से जुड़े ऐसे ही एक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने प्रिविन्टिव डिटेंशन के आदेश को जुलाई 2021 में रद्द कर दिया था. उस आदेश में तीन जजों की पीठ की अध्यक्षता कर रहे सुप्रीम कोर्ट के जज नरीमन ने तेलंगाना के कानून की आलोचना भी की थी. लेकिन इस तरह के सख्त कानून तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश जैसे अनेक दक्षिणी राज्यों में है. पश्चिम बंगाल और महाराष्ट्र के कानून भी बहुत सख्त हैं. छिटपुट मामलों और राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ यदि इस कानून का दुरुपयोग हुआ तो फिर इसे अदालत में भी चुनौती मिल सकती है. इसलिए नये कानून को संगठित और बड़े अपराधियों के साथ राष्ट्रविरोधी ताकतों के खिलाफ इस्तेमाल करने की जरूरत है.
साइबर अपराधों पर प्रभावी रोकथाम लग सकेगी- श्रद्धा जैसे मामलों में डेटिंग एप्स के माध्यम से अपराधों का नया तंत्र सामने आ रहा है. साइबर के माध्यम से वित्तीय जालसाजी और अपराध बढ़ रहे हैं. दिल्ली के एम्स में हैकिंग के मामलों के पीछे चीन जैसी विदेशी ताकतों का हाथ सामने आ रहा है. ऑनलाइन गेमिंग और क्रिप्टो से जुड़े अपराध भी बढ़ रहे हैं. साइबर से जुड़े अधिकांश अपराधी अलग-अलग राज्यों में सक्रिय हैं. इनमें से कई अपराधियों का विदेशों में ठिकाना है. लेकिन ऐसे अपराधियों के निशाने में दिल्ली और मुम्बई जैसे शहर, बैंकिंग और वहाँ के नागरिक होते हैं. दिल्ली जैसे महानगरों में बड़े पैमाने पर भू-माफिया भी सक्रिय होते हैं. ऐसे अपराधियों के खिलाफ तेलंगाना के सख्त कानून के प्रावधानों को लागू किया जाये तो दिल्ली पुलिस की साख बढ़ने के साथ कानून के प्रति लोगों का भरोसा भी बढ़ेगा.
केन्द्रीय स्तर पर एक समान कानून की जरुरत- संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार कानून और व्यवस्था राज्यों का विषय है. लेकिन भारतीय दण्ड संहिता (IPC) और सीआरपीसी जैसे केन्द्रीय कानून संसद से पारित हुए हैं. तेलंगाना सरकार ने इस कानून को पारित करने के लिए अनेक कानूनों में बदलाव किये हैं-
• आईपीसी, 1860
• आवश्यक वस्तु अधिनियम-1955
• खाद्य सुरक्षा एवं स्टैण्डर्ड अधिनियम-2006
• खाद्य मिलावट अधिनियम-1954
• वाइल्ड लाइफ प्रोटेक्शन एक्ट-1972
• आर्म्स एक्ट-1959
• पॉक्सो कानून-2012
• एक्सप्लोसिव सब्सटेंट अधिनियम-1908
• इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी एक्ट-2000
CBI के लिए दिल्ली स्पेशल पुलिस इस्टैब्लिशमेंट एक्ट 1946 के तहत कानूनी व्यवस्था बनी है. इस एडहॉक सिस्टम पर सुप्रीम कोर्ट ने कई बार तल्ख टिप्पणी की है. इसलिए देश की राजधानी में तेलंगाना या अन्य राज्यों के कानून को लागू करने की बजाए, पूरे देश के लिए एक समान (यूनिफॉर्म) कानूनी व्यवस्था बनाना जरूरी है.
लेखक सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान तथा साइबर कानून के जानकार हैं. राष्ट्रीय समाचार पत्र और पत्रिकाओं में नियमित लेखन के साथ टीवी डिबेट्स का भी नियमित हिस्सा रहते हैं. कानून, साहित्य, इतिहास और बच्चों से संबंधित इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं. पिछले 6 वर्ष से लगातार विधि लेखन हेतु सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा संविधान दिवस पर सम्मानित हो चुके हैं. ट्विटर- @viraggupta.
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