सिंधु जल समझौते मुद्दों के समाधान के लिए मध्यस्थता और तटस्थ विशेषज्ञ नियुक्त करने संबंधी दो अलग प्रक्रियाएं शुरू करने के लिए विश्व बैंक के निर्णय पर भारत सरकार ने सवाल उठाया है. 2016 में उरी में आतंकी हमले के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी पर पानी के बंटवारे पर कई तरह के कानूनी विवाद बढ़ गए हैं. सन 1960 की Indus Treaty से जुड़े कानूनी पहलुओं को इन 5 प्वाइंट्स में समझा जा सकता है :
विश्व बैंक के माध्यम से हुई संधि
सिंधु घाटी सभ्यता का भारतीय उपमहाद्वीप में ऐतिहासिक महत्व है. सिंधु की 5 सहायक नदियों के नाम पर पंजाब का नामकरण हुआ. सिंधु के पूरब में रहने वाले लोगों को हिन्दू और हिन्दुस्तान कहा जाता है. विभाजन के बाद भारत और पाकिस्तान दोनों ने सिंचाई प्रोजेक्ट्स के लिए 1951 में World Bank की फंडिंग हेतु आवेदन किया था. रावी नदी पर माधोपुर प्रोजेक्ट और सतलज नदी पर फिरोजपुर सिंचाई प्रोजेक्ट बनाने पर पाकिस्तानी आपत्तियों के बाद नदी जल के बंटवारे पर विवाद शुरू हो गया. विश्व बैंक की मध्यस्थता के बाद सिंधु जल समझौते से दोनों देशों के बीच इस मामले पर विवाद कम हो गए.
भारत की तरफ से प्रधानमंत्री नेहरू और पाकिस्तान की तरफ से राष्ट्रपति अयूब खान ने करांची में 19 सितम्बर 1960 को समझौते पर हस्ताक्षर किए. पिछले कई सालों से पाकिस्तान में आर्थिक बदहाली के साथ राजनीतिक संकट बढ़ रहा है. दूसरी तरफ अनुच्छेद-370 की समाप्ति के बाद जम्मू-कश्मीर में निवेश और विकास के नए युग का आरम्भ हो रहा है. कृषि, उद्योग, उर्जा और सिंचाई के प्रोजेक्ट्स के लिहाज से महत्वपूर्ण सिंधु नदी पर पाकिस्तान की अडंगेबाजी से जल समझौते पर विवाद होना दुखद है.
सिंधु नदी और संधि का ढांचा
इस संधि में प्रस्तावना, 12 अनुच्छेद और 8 अनुसूची हैं. इसमें सिंधु नदी के अलावा 5 अन्य नदियां शामिल हैं. सतलज, व्यास और रावी तीन पूर्वी क्षेत्र की नदियां संधि में शामिल हैं. पाकिस्तान में जाने से पहले इन नदियों में सालाना 11 क्यूबिक किमी जल का बहाव होता है जिस पर भारत का पूरा अधिकार है. भारत के इस्तेमाल के बाद बचे हुए जल को पाकिस्तान इस्तेमाल कर सकता है. पश्चिमी क्षेत्र की नदियों में सिंधु, झेलम और चिनाब नदियां शामिल हैं. इन नदियों में पूर्वी नदियों से बहुत ज्यादा पानी का बहाव होता है. सालाना 232.5 क्यूबिक किमी जल बहाव में से भारत के हिस्से में 62.2 क्यूबिक किमी और पाकिस्तान के हिस्से में 170.3 क्यूबिक किमी पानी का हिस्सा आता है.
संधि के अनुसार दोनों देशों के बीच बातचीत के लिए कमिश्नर की नियुक्ति होती है. पाकिस्तानी अडंगेबाजी से परेशान होकर संधि के अनुच्छेद-12 (3) के तहत भारत ने 25 जनवरी को नोटिस जारी करके पाकिस्तान को 90 दिन के भीतर संधि में बदलाव के लिए कहा है. भारत में अस्थिरता और आतंकवाद फैलाने वाला पाकिस्तान शायद ही ऐसे किसी संशोधन के लिए तैयार होगा. सिंधु नदी पर पाकिस्तान सरकार अगर बातचीत के लिए तैयार भी हो जाए तो वहां के कट्टरपंथी समूह इसका विरोध करेंगे.
उरी हमले के बाद विवाद की शुरुआत
पाकिस्तान ने उरी हमले में आतंकी शक्तियों को प्रायोजित किया था. उसके दो महीने पहले ही पाकिस्तान के रक्षा एवं जल मंत्री ख्वाजा मोहम्मद आसीफ ने भारत पर सिंधु जल संधि के उल्लंघन का आरोप लगा दिया था. पाकिस्तान ने भारत की रातले और किशन गंगा पनबिजली परियोजनाओं पर आपत्ति व्यक्त करते हुए अंर्तराष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग की थी. उद्गम स्त्रोत होने के नाते इन नदियों पर भारत का विशेष अधिकार है. इसलिए पाकिस्तान की वादा खिलाफी के मद्देनजर भारत में इस समझौते को खत्म करने की मांग होने लगी. सुप्रीम कोर्ट में भी इस मामले में एक PIL दायर हुई थी. उसके बाद से यह विवाद लगातार बढ़ रहा है.
संसदीय समिति की रिपोर्ट और समझौते पर पुर्नविचार की अनुशंसा
जल मंत्रालय से सम्बद्ध संसदीय समिति की रिपोर्ट 5 अगस्त 2021 को संसद में पेश की गई. समिति के अनुसार सन् 1960 में समझौते के समय सिंचाई, बांध और हाइड्रोप्रोजेक्ट्स का सीमित दायरा था. इसलिए क्लाइमेट चेंज, ग्लोबल वार्मिंग जैसे नए खतरों के मद्देनजर सिंधु जल समझौते पर नए तरीके से पुर्नविचार की जरूरत है. संधि के अनुसार भारत पश्चिमी तीन नदियों में 3.6 मिलियन एकड़ फीट (MAF) पानी के भंडारण का ढांचा बना सकता है. इन्हें नहीं बनाने से उत्तर भारत के राज्यों के किसानों को बहुत नुकसान होने पर समिति ने चिंता जाहिर की. समिति ने चीन, पाकिस्तान और भूटान के साथ हुई संधियों के तहत 20 हजार मेगावाट के पावर प्रोजेक्ट्स की सम्भावनाओं का आकलन करते हुए पाया भारत ने सिर्फ 3482 मेगावाट प्रोजेक्ट्स का निर्माण किया है.
संधि के तहत भारत लगभग 13.43 एकड़ सिंचित भूमि का विकास कर सकता है. लेकिन पश्चिम की तीन नदियों से सिर्फ 7.59 लाख एकड़ भूमि ही सिंचित हो पाई है. पूर्व की तीन नदियों में जल के उपयोग के पूरे अधिकार का भारत द्वारा इस्तेमाल नहीं करने पर भी समिति ने चिंता व्यक्त की थी. इन नदियों से पंजाब और राजस्थान की नहरों के माध्यम से किसानों के खेतों में पानी जाता है. नहरों की बदहाल स्थिति पर भी संसदीय समिति ने रोष व्यक्त किया था.
राज्यों से परामर्श के बगैर हुई संधि
भारतीय संविधान के अनुसार पानी राज्यों का विषय है. भारत सरकार द्वारा यह संधि करने से जम्मू-कश्मीर राज्य के हितों को भारी चोट पहुंची थी. नेहरू सरकार द्वारा संसद से सिंधु-संधि की औपचारिक स्वीकृति नहीं लेने पर तत्कालीन सांसद अशोक मेहता ने विरोध दर्ज कराया था. लेकिन इसे लोकसभा अध्यक्ष ने 14 नवम्बर, 1960 को अस्वीकार कर दिया. कई दशक बाद 2003 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में सिंधु-संधि को रद्द करने का प्रस्ताव पारित किया गया.
भारत नदियों का केवल 20 फीसदी पानी ही इस्तेमाल कर पाता है. अगर भारत पानी को रोक दे तो पाकिस्तान में सूखे और भुखमरी की स्थिति हो जाएगी. समझौते के अनुसार भारत को पानी के इस्तेमाल की इजाजत है, लेकिन नदियों के रुख को नहीं मोड़ा जा सकता है. इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय कानून के अनुसार सिंधु-संधि को एकतरफा तरीके से बदलना या रद्द करना भी मुश्किल है.
लेखक सुप्रीम कोर्ट के वकील और संविधान तथा साइबर कानून के जानकार हैं. राष्ट्रीय समाचार पत्र और पत्रिकाओं में नियमित लेखन के साथ टीवी डिबेट्स का भी नियमित हिस्सा रहते हैं. कानून, साहित्य, इतिहास और बच्चों से संबंधित इनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं. पिछले 7 वर्ष से लगातार विधि लेखन हेतु सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस द्वारा संविधान दिवस पर सम्मानित हो चुके हैं. ट्विटर- @viraggupta.
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