मोदी सरकार का लगातार 9वां बजट 1 फरवरी 2023 को पेश किया जाना निर्धारित है. लोकसभा चुनाव 2024 से पहले मोदी सरकार का यह अंतिम पूर्ण बजट होता. ऐसे में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण से आम टैक्सपेयर्स को काफी उम्मीदें हैं. पिछले 9 साल से टैक्स स्लैब में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है. हालांकि दूसरे तरीकों से टैक्स छूट में बढ़ोतरी की गई है. इस बार यह देखना अहम होगा कि सरकार कहां पैसा बरसाएगी और कहां से उगाही के रास्ते तलाशेगी.
बजट ग्लॉसरी
चालू खाता किसी देश का विदेशों से व्यापार के लिए होने वाला लेनदेन है. जब किसी देश का आयात पर किया खर्च निर्यात के रूप में हुई आमदनी से ज्यादा होता है तो उसे चालू खाते का घाटा कहते हैं. यह आंकड़ा दोनों के बीच का अंतर होता है. मान लीजिए किसी देश में 200 अरब डॉलर की वस्तुओं और सेवाओं का आयात किया जबकि निर्यात सिर्फ 150 अरब डॉलर का रहा तो उसका चालू खाते का घाटा 50 अरब डॉलर होगा.
वह टैक्स है जो सरकार सीधे वसूलती है, जिसमें किसी व्यक्ति या कंपनी की आमदनी पर जो कर लगता है, वह डायरेक्ट टैक्स कहलाता है. इसमें इनकम टैक्स और कॉर्पोरेट टैक्स शामिल है. वहीं, किसी वस्तु या सेवा की कीमत पर लगाया जाने वाला कर इनडायरेक्ट टैक्स कहलाता है. इसे विभिन्न उत्पादों और सेवाओं की कीमत पर लगाया जाता है. इसमें कस्टम ड्यूटी, एक्साइज ड्यूटी तक आते हैं. जीएसटी भी एक तरह का इनडायरेक्ट टैक्स ही है.
बजट एस्टिमेट में सरकार अगले वित्त वर्ष में अपनी कमाई और खर्चों का अनुमान पेश करती है, इसे बजट अनुमान कहा जाता है. रिवाइज्ड एस्टिमेट में सरकार ने पिछले फाइनेंशियल ईयर में आय और खर्चों का जो अनुमान लगाया था, उसे फिर से संशोधित कर जब पेश करती है, तो उसे संशोधित अनुमान कहते हैं.
सेस (Cess) विशिष्ट उद्देश्यों के लिए लगाया गया अतिरिक्त टैक्स है. सेस को भारत के कंसॉलिडेट फंड में रखा जाता है और टैक्स से जुटाई गई राशि को केंद्र सरकार रखती है. हमारे देश में सेस कई तरह का होता है जैसे एजुकेशन सेस, सेकेंडरी एंड हायर एजुकेशन सेस, कृषि कल्याण सेस, स्वच्छ भारत सेस. सेस से प्राप्त राशि को उसी मद में खर्च किया जाता है.
यह बैंक के साथ एक निर्धारित राशि से अधिक कैश ट्रांजेक्शन पर लगने वाला डायरेक्ट टैक्स है. इसे ब्लैक मनी को कंट्रोल करने के लिए लगाया जाता है ताकि इस तरह के ट्रांजेक्शन को इलेक्ट्रॉनिक मोड में स्विच किया जा सके और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को टैक्स के दायरे में लाया जा सके.
यह एक रिसीट है, जिसके परिणामस्वरूप सरकार की एसेट्स में या तो कमी आती है या लायबिलिटी बढ़ जाती है. इसमें विभिन्न सरकारी विभागों के मार्केट लोन, स्माल सेविंग्स, प्रोविडेंड फंड, डेप्रिसिएशन और रिज़र्व फंड शामिल हैं. कैपिटल एक्सपेंडिचर वह खर्च है, जो सरकारी एसेट्स को बढ़ाता है या लायबिलिटी कम करता है. इसमें लोन पेमेंट, लोन डिस्बर्सल और इन्फ्रास्ट्रक्चर व अन्य विकास कार्य में होने वाले खर्च शामिल हैं.
देश का दुनिया के साथ उत्पाद, संपत्ति और सेवाओं से जुड़ा सभी तरह का ट्रांजेक्शन रिकॉर्ड बैलेंस ऑफ पेमेंट कहलाता है. यह एक खास समय के आंकड़े समेटे होता है, जो अमूमन किसी एक वित्तवर्ष का होता है. एक तरह यह देश के डेबिट और क्रेडिट ट्रांजेक्शन की बैलेंस शीट होती है. इसमें सरकारी और निजी सेक्टर के सभी ट्रेड और ऑर्डर का बही खाता भी शामिल रहता है.
चालू खाता किसी देश का विदेशों से व्यापार के लिए होने वाला लेनदेन है. जब किसी देश का आयात पर किया खर्च निर्यात के रूप में हुई आमदनी से ज्यादा होता है तो उसे चालू खाते का घाटा कहते हैं. यह आंकड़ा दोनों के बीच का अंतर होता है. मान लीजिए किसी देश में 200 अरब डॉलर की वस्तुओं और सेवाओं का आयात किया जबकि निर्यात सिर्फ 150 अरब डॉलर का रहा तो उसका चालू खाते का घाटा 50 अरब डॉलर होगा.
वह टैक्स है जो सरकार सीधे वसूलती है, जिसमें किसी व्यक्ति या कंपनी की आमदनी पर जो कर लगता है, वह डायरेक्ट टैक्स कहलाता है. इसमें इनकम टैक्स और कॉर्पोरेट टैक्स शामिल है. वहीं, किसी वस्तु या सेवा की कीमत पर लगाया जाने वाला कर इनडायरेक्ट टैक्स कहलाता है. इसे विभिन्न उत्पादों और सेवाओं की कीमत पर लगाया जाता है. इसमें कस्टम ड्यूटी, एक्साइज ड्यूटी तक आते हैं. जीएसटी भी एक तरह का इनडायरेक्ट टैक्स ही है.
बजट एस्टिमेट में सरकार अगले वित्त वर्ष में अपनी कमाई और खर्चों का अनुमान पेश करती है, इसे बजट अनुमान कहा जाता है. रिवाइज्ड एस्टिमेट में सरकार ने पिछले फाइनेंशियल ईयर में आय और खर्चों का जो अनुमान लगाया था, उसे फिर से संशोधित कर जब पेश करती है, तो उसे संशोधित अनुमान कहते हैं.
सेस (Cess) विशिष्ट उद्देश्यों के लिए लगाया गया अतिरिक्त टैक्स है. सेस को भारत के कंसॉलिडेट फंड में रखा जाता है और टैक्स से जुटाई गई राशि को केंद्र सरकार रखती है. हमारे देश में सेस कई तरह का होता है जैसे एजुकेशन सेस, सेकेंडरी एंड हायर एजुकेशन सेस, कृषि कल्याण सेस, स्वच्छ भारत सेस. सेस से प्राप्त राशि को उसी मद में खर्च किया जाता है.
यह बैंक के साथ एक निर्धारित राशि से अधिक कैश ट्रांजेक्शन पर लगने वाला डायरेक्ट टैक्स है. इसे ब्लैक मनी को कंट्रोल करने के लिए लगाया जाता है ताकि इस तरह के ट्रांजेक्शन को इलेक्ट्रॉनिक मोड में स्विच किया जा सके और ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को टैक्स के दायरे में लाया जा सके.
यह एक रिसीट है, जिसके परिणामस्वरूप सरकार की एसेट्स में या तो कमी आती है या लायबिलिटी बढ़ जाती है. इसमें विभिन्न सरकारी विभागों के मार्केट लोन, स्माल सेविंग्स, प्रोविडेंड फंड, डेप्रिसिएशन और रिज़र्व फंड शामिल हैं. कैपिटल एक्सपेंडिचर वह खर्च है, जो सरकारी एसेट्स को बढ़ाता है या लायबिलिटी कम करता है. इसमें लोन पेमेंट, लोन डिस्बर्सल और इन्फ्रास्ट्रक्चर व अन्य विकास कार्य में होने वाले खर्च शामिल हैं.
देश का दुनिया के साथ उत्पाद, संपत्ति और सेवाओं से जुड़ा सभी तरह का ट्रांजेक्शन रिकॉर्ड बैलेंस ऑफ पेमेंट कहलाता है. यह एक खास समय के आंकड़े समेटे होता है, जो अमूमन किसी एक वित्तवर्ष का होता है. एक तरह यह देश के डेबिट और क्रेडिट ट्रांजेक्शन की बैलेंस शीट होती है. इसमें सरकारी और निजी सेक्टर के सभी ट्रेड और ऑर्डर का बही खाता भी शामिल रहता है.
चालू खाता किसी देश का विदेशों से व्यापार के लिए होने वाला लेनदेन है. जब किसी देश का आयात पर किया खर्च निर्यात के रूप में हुई आमदनी से ज्यादा होता है तो उसे चालू खाते का घाटा कहते हैं. यह आंकड़ा दोनों के बीच का अंतर होता है. मान लीजिए किसी देश में 200 अरब डॉलर की वस्तुओं और सेवाओं का आयात किया जबकि निर्यात सिर्फ 150 अरब डॉलर का रहा तो उसका चालू खाते का घाटा 50 अरब डॉलर होगा.