हिन्दी-भोजपुरी के नामचीन कथाकार, कवि, समालोचक एवं लोकसाहित्य व बालसाहित्य के गंभीर अध्येता. हिन्दी-भोजपुरी की दो दर्जन कृतियाँ तथा बालसाहित्य की शताधिक पुस्तकें प्रकाशित एवं विभिन्न पाठ्यक्रमों में शामिल.
भारतेन्दु जुग,द्विवेदी जुग आ ओकरा बाद अइसन इनल-गिनल रचनाकार भइलन, जे उम्दा साहित्य-साधना का संगहीं साहित्यिक पत्रकारिता के मानदंड स्थापित कइले होखे. आचार्य शिवपूजन सहाय अइसने साहित्य-साधकन में एगो मिसाल कायम कइनीं आ 'सरस्वती' के संपादक आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी के परिपाटी के आगा बढ़ावत हिन्दी के साहित्यिक पत्रकारिता के व्याकरणिक-भाषाई परिष्कार दिहनीं....
आजकाल्ह दसवीं, बारहवीं आ दीगर इम्तिहान के नतीजा अइला पर कई किसिम के अनहोनी देखे-सुने के मिलि रहल बा. केहू बस एगो परीक्षा में फेल हो गइला प खुदखुशी कऽके अपना अनमोल जिनिगी से हाथ धो बइठत बा,त केहू बाप-महतारी के उमेदि के मुताबिक नंबर ना अइला प आपन जान गंवा देत बा. ...
का पहिलहीं मांगलिक काम प रोक लागि जाला. अइसन कहल जाला कि सनातन धरम में आसाढ़ के अंजोरिया के एकादशी का दिने सउंसे सृष्टि के चलावेवाला पालनहार बिसुन भगवान क्षीरसागर में शयन करे चलि जालन आ ऊ शयन चार महीना ले चलेला-आसाढ़ एकादशी से लेके कातिक अंजोरिया के एकादशी ले....
किछु दशक पहिले एगो गाना धूम मचवले रहे-'कतनो देखाईं हरियरी, बोकवा बोलते नइखे!' जरूर ऊ बोकवा 'बोका' रहल होई, तबे नू हरियरी देखिओ के ऊ अनदेखा कऽ देले होई. बताईं भला, इहो कवनो बात भइल!हरियरी देखते केकर मन हरियर ना हो जाला! बाकिर ऊ बोका या त जिनिगी से निराश हो गइल होई भा ओकर पेट अतना भरल होई कि किछु खाए का,ओने ताकहूं के दियानत ना होत होई. नाहीं त, हरियरी अइसन चीझु हऽ कि ओने नजर परते केकर मन ना हरियरा जाला!...
बरसाती महीना के गंवई जिनिगी. झमाझम बरखा के झड़ी. माटी के खपड़पोस मकान आ फूस के पलानी के छाजन से टप-टप टपकत पानी. खटिया-बिछौना भींजत बा. नवकी दुलहिन के रोआं-रोआं असह वेदना आ दरद से बेयाकुल हो उठत बा. पिया गवना कराके नैहर से ससुरा में बइठा दिहले आ खुद परदेस के रोटी कमाए निकलले, त आजु ले उन्हुकर कवनो अता-पता नइखे....
भोजपुरी के गौरव-स्तंभ आचार्य पाण्डेय कपिल. भाषा-साहित्य के बढ़ंती खातिर आपन हाड़-मांस गलावेवाला पाण्डेय कपिल. भोजपुरी के भगीरथ पाण्डेय कपिल. पाण्डेय कपिल-माने,अपना भोजपुरी माई बदे हरेक मोरचा प 'वन मैन आर्मी' नियर जूझेवाला एगो दीढ़ इच्छाशक्ति से लबालब भरल सिपाही. ...
सात मार्च, 2019 के डेढ़ बजे दुपहरिया में कुदरत के सुकुमार आ मूर्धन्य कवि अनिरुद्ध जी के दैहिक अवसान बिहार के मुजफ्फरपुर में अपना बेटा के आवास पर हो गइल रहे. अनिरुद्ध जी,जेकरा के भोजपुरी के वर्ड्सवर्थ आउर सुमित्रानंदन पंत कहल जात रहे....
सन् 1950 में जब आचार्य शिवपूजन सहाय के संचालन में बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् के स्थापना भइल,त उहां से प्रकाशन खातिर किताबन के पाण्डुलिपि आमंत्रित कइल गइली स आ ओह घरी जवन ग्रंथ छपल,ऊ हिन्दी आउर लोकभाषा के हलका में इतिहास रचलन स. ओही में से एगो अमर ग्रंथ रहे 'भोजपुरी के कवि और काव्य',जवना के प्रकाशन 1958 में भइल रहे....
आजु जब देश में आजादी के अमृत महोत्सव मनावल जा रहल बा,त किछु अइसन अंगरेज अफसर सुरता प चढ़त बाड़न,जे अपना काम का अलावा भारतीय लोकसंस्कृति के कुशल पारखी रहलन आ भाषाविज्ञान का हलका में इतिहास रचिके अमर हो गइलन. सन् 1784 में एगो शोध संस्थान के स्थापना कोलकाता में भइल रहे, जवना के नांव रहे 'एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बंगाल' आ ओह ऐतिहासिक संस्था के संस्थापक रहलन सर विलियम जोन्स....
"साहित्य खाली भाषा के चमत्कार आ शैली के रंगारंग चूनर ना ह. इंसान जब दर्द का साथे अपना भणिति में पइठी,तब कहीं ऊ भणिति काव्य कहाए जोग होई,साहित्य कहाई. 'सुगना बसे पहाड़ पर, हम जमुना के तीर'! दूर के बासी 'सुगना' आ जमुना तीर के बासी 'सुगनी' के मन जब मीत बनिके,एक होके रमी,तब जाके साहित्य बनी....
महल के कंगूरा त अनसोहातो सभकरा के लोभावेला,बाकिर नेंव में दबल ईंटा के ना त केहू कीमत बूझेला,ना ओने निगाहे धउरावे के जरूरत महसूस करेला.इहां ले कि कंगूरो के एह तथ के एहसास ना होला जे नेंव के एकएगो ईंटे के बदउलत ओकर माथ गरब से उठल बा. देश के आजादी के लड़ाई में जे आपन तन-मन-धन, सउंसे जिनिगी हंसते-हंसत निछावर कऽ दिहल आ आखिरी दम ले गोरन के दमनचक्र का खिलाफ जमिके लोहा लिहल, ओकरा के आजु हमनीं के कतना जानेलीं जा! हालांकि ओह लोगन के ई मनसो ना रहे कि लोग इयादि राखो,बाकिर हमनिओं के त किछु फरज बने के चाहीं....
एह कातिक महीना में गंगा-नहान के बड़हन महातम मानल गइल बा.भोरे-भोरे गंगा-स्नान आ तुलसी के पूजा. इहे सोचत अबहिंए एगो जलसा से लवटल रहलीं. जलसा गंगा पर रहे-नमामि गंगे! ओही गंगा पर,जे आस्था के नदी हई. इन्हिकर कल-कल छल-छल बहाव भारतीय संस्कृति के बहाव हऽ. इन्हिकर महातम वेदो-पुरान में ओतने बा,जतना लोककंठन में....
भोजपुरी के पहिल उपन्यासकार पुन्नश्लोक रामनाथ पाण्डेय के नांव एगो इतिहास-पुरुष का रूप में जगमगात बा.ओइसे त बेयासी बरिस के उमिर पूरा कऽके सोरह जून,2006 का दिने उहांके एह लोक से हरदम-हरदम खातिर जुदा हो गइल रहनीं, बाकिर भोजपुरी उपन्यास आ कहानी के हलका में मिशनरी भाव से अइसन इतिहास रचि गइल रहनीं,जवना के कबो भुलाइल ना जा सके....
जब कबो देववाणी संस्कृत भाषा आ संस्कृति के चरचा आवेला,त कवनो-ना-कवनो रूप में आचार्य रघुनाथ शर्मा के जिकिर जरूर होला.एक ओरि संस्कृत भाषा-साहित्य आ वेदांत दर्शन के धाकड़ विद्वान, दोसरा ओरि लोकसंस्कृति में जिनिगी....
ओइसे त 'विप्र' तखल्लुस आम तौर पर ब्राह्मण खातिर इस्तेमाल होला,बाकिर सही माने में ई अद्भुत पांडित्य आ विलक्षण प्रतिभा के बोध करावेला,जवन पुन्नश्लोक कमला प्रसाद मिश्र 'विप्र' प सटीक बइठेला. बहुआयामी शख्सियत के धनी डॉ 'विप्र' जी भोजपुरी के शुरुआतिए दौर में गद्य-पद्य विधन के विकास-बढ़न्ती में ऐतिहासिक योगदान कइनीं,उहंवें भारतीय संस्कृति के संपोषण-संरक्षण का दिसाईं रेघरिआवे जोग अगहर भूमिको निभवनीं....
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