ये डॉक्टर मन ला का बिच्छी काट दे हे का ओकर मन के पेट मं पीरा होथे के जतका मरीज मन ओकर मन करा इलाज कराय बर जाथे तेन मन ला टिंवा भरके बात पूछ लेही तेकर बाद कहिथे- बासी खाय बर तत्काल बंद कर दौ, जुड़ चीज कांही मत खाव-पीयौ, भाजी पाला घला पालक, लाल भाजी अउ चवलाई भाजी ला छोड़ के कांही झन खाव....
जइसे ही शहर के बुढ़वा तरिया ल पाटके उहां माल, बेवसायिक परिसर, अउ खेलकूद के मैदान बनाय खातिर "मेयर इन काउन्सिल" के बइठक मं निरनय ले गिस तइसने दूसर दिन ओ खबर हा अखबार मन मं छपिस, कोकड़ा (बगुला) हा ये खबर ला अपन मितान टेंगना मछरी करा जाके बताथे तब ओहर हड़बड़ा जथे अउ ओला कहिथे- नहीं मितान, तैं लबारी मारत हस, अइसे नइ हो सकय....
जइसे धान के कटोरा के नांव लेके देश भर ला कोन काहय पूरा संसार भर मं ओहर विख्यात हे तइसने पताल 'टमाटर' के पैदावार अतेक होथे ते ओला किसान सकेले बटोरे नइ सकय. जब अइसन हालत हो जथे तब ओकर बाजार मं दाम घला गिर जथे. जब पानी के मोल बिके ले धर लेथे तब खवइया मन घला इतराय ले धर लेथे. ...
जुन्ना चांउर, अउ जुन्ना शराब (पुरानी शराब) बने सुहाथे, मिठाथे. अब ओकर मरम ला उही मन जानही जउन एकर सुवाद लेथे. वइसने जतका जुन्ना कलाकृति, साहित्य, भाखा इहां तक जतका जुन्ना मनखे (वयोवृद्ध) होथे तेन मन बहुत काम के होथे. जेन पारखी होथे तउने ओकर कीमत ला जान सकत हे. अड़ानी (अज्ञानी) मन का समझही ओला. ओकर मन बर तो हीरा घला हा पथरा बरोबर हे. ...
गांव के माटी, कांटा-खूंटी अउ जंगल-झाड़ी के बीच रहिके बढ़ेन, पढ़ेन, लिखेन, जवान होयेन. ओकर बाद इहां आगेन, गांव ल छोड़के शहर आगेन, मोला सुरता हे जउन दिन गांव ला छोड़ेव ओ दिन ओहर चार आंसू बहाय रहिसे, फेर मैं गरकट्टा, दोगला अउ नमक हराम, ओ आंसू के कदरे नइ करेंव अउ अइसे अंधरा बनके आगेंव जइसे कुछू जानौ नहीं....
गुस्सा कब, काबर अउ कइसे होथे, एला कोनो जाने अउ बताय तो नइ सकय, फेर जब होथे तब पहाड़ मं, पानी मं, जंगल मं, घर अउ राजमहल मन मं अचानक आगी लग जथे, जलके सब राख हो जथे. गुस्सा, मनखे भर मं नइ होवय, पशु-पक्षी अउ जीव-जन्तु मं घलो होवत देखे गे हे. इही ओ गुस्सा हे जउन कहूं मइन्ता बाढ़ जथे तब बड़े-बड़े युद्ध अउ महाभारत जइसे भयानक घटना घला हो हे. धन, जन के अगिनत नुकसान हो जथे. इतिहास भरे परे हे, लड़ई-झगरा के बात ले, जेकर कारन सिरिफ गुस्सा हे....
अजब-गजब हे बस्तर के किस्सा कहिनी. अतेक परम्परा, पर्व, रीति-रिवाज अउ तिहार हे के ओला सुन के अकबकासी लागथे. कभू-कभू तो भरोसा नइ होवय के अइसनो होवत होही, फेर मउका मं जाके देखबे तब ओ सबो अंधविश्वास चकनाचूर हो जथे....
झांपी का हे, काला कहिथे, कोन काम आथे एला छत्तीसगिढय़ा मन ले छोड़ के जउन आन कोती ले, बाहिर के देश-परदेस ले आय हें तउन मन का जानहीं, का समझहीं? भले ओमन ला आय इहां, कतको साल ले ऊपर होवत हे, फेर ये (झांपी) तो छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक धरोहर हे. ...
छत्तीसगढ़ ला धान के कटोरा केहे गे रिहिसे तउन अइसने लइका मन ला झुनझुना देखाके ज इसे भुलवारे जाथे त इसने बात न इ रिहिसे. छत्तीसगढ़ के छत्तीसो कोना मं आजो हीरा उगलत हे अउ ओ हीरा हे छत्तीसगढिय़ा मन के मिहनत अउ पछीना. ...
'जन्नत गजब सुग्घर शब्द हे. जउन कोनो ये शब्द ला गढिऩ हो ही, बहुत सोच-समझ के गढ़े हे. छत्तीसगढ़ी मं एला सरग अउ हिन्दी में स्वर्ग के हे जाथे. अब ये शब्द के जिकर इहां काबर करे जाथे तउन कोनो साधारन बात बर नोहे. ...
खारुन अउ शिवनाथ नदी के संगम करा सोमनाथ के एक ठन जघा हे जिहां माघी पूरनिमा के दिन मेला भराथे. गजब दूरिहा-दूरिहा के मनखे उहां जुरियाथे. पहिली उहां जाय के साधन गाड़ी बइला, भइसा गाड़ा अउ सिरिफ बाइसिकल भर राहय. ...
अब्बड़ दिन पहिली के बात हे. गरमी के दिन रिहिसे. लीम चंवरा करा बबा हा खटिया गांथत रिहिसे. फुरसदा के समे रिहिसे, ओ समे गांव मं जादा काम बुता नइ राहय. आज तो आय, मनखे मन उपर काम झपागे हे, एक पल कोनो ला फुरसद नइ राहय....
नानपन के बात हे, गली-खोर मं अइसने खेल-खेल मं जब कभू बदरी आ जाय, कभू घाम उजय (उगना) तब बादर कोती मुंह करके हाथ ल लमावत काहन- घाम (धूप) उजा, घाम उजा कोलिहा के बिहाव हो जा, काहत हो-हो, हा-हा चिल्लावन. ...
देखत हस एकर चाल ला, कइसे अजलइत करत हे तौन ला, अइसने कोनो करही, नाक-कान ला कटा डरे हे, थोरको लाज शरम नइ लागय, बानी बात नइ लागय? जादा के अति हा घला नइ सहे जाय? कोनो ला होय अपन हद मं रहना चाही, तभे बने लागथे, बात हा फभथे? फगनी ह कोन जनि का बात होगे हे ते बड़े फजर जब ले मालिक के घर ले काम मं जाय बर निकले रिहिस हे, टिंवा भर वइसने अपने अपन बड़बड़ावत जात रिहिस हे....
एक ओ जमाना रिहिस हे जब अकबर सवाल करय अउ बीरबल जवाब देवय. सब समय-समय के बात हे. आज ओ समय नइहे. समय बदलत रहिथे, एक बराबर कभू नइ होवय. आज बड़े-बड़े अकबर होगे हे, अउ बीरबल तो अनगिनत हे. काम-कला बदलगे हे, शान-शौकत घला. ...
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