बजट 2023हाइलाइट्स
7 लाख रुपये सालाना इनकम वाले लोगों को नहीं भरना होगा टैक्स
चुनिंदा सिगेरट पर ड्यूटी बढ़ाकर 16% की गई.
TV के कम्पोनेन्ट पर कस्टम ड्यूटी 2.5% तक घटी.
मोबाइल पुर्जों, कैमरा लैंसों पर आयात से छूट
लिथियम आयन बैटरी पर कस्टम ड्यूटी में राहत.
किचन चिमनी पर कस्टम ड्यूटी 15% तक बढ़ी.
आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस को बढ़ावा
वन टाइन न्यू स्मॉल सेविंग स्कीम लॉन्च.
पुराने सरकारी वाहनों को हटाया जाएगा.
राज्यों के लिए 1 और साल के लिए बिना ब्याज के लोन देने का ऐलान
नए टैक्स रेजीम में 9 लाख रुपये तक की आय पर सिर्फ 5% टैक्स देना होगा
पुराने टैक्स रेजीम में टैक्स स्लैब में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
डिजिलॉकर को मिलेगा बढ़ावा
पीएम आवास योजना के लिए आवंटन
देश में बनेंगे 157 नए नर्सिंग कॉलेज
20 लाख करोड़ हुआ एग्रीकल्चर क्रेडिट टार्गेट
बजट 2023-24 की 7 प्रमुख प्राथमिकताएं
ग्रोथ और नौकरी पर सरकार का फोकस
मिलेट्स के लिए भारत को वैश्विक हब बनाने पर जोर
उज्ज्वल भविष्य की ओर बढ़ रही है भारतीय अर्थव्यवस्था
5वीं सबसे बड़ी इकॉनमी बनें
बजट 2023-24 को मिली मंजूरी
'मैं तोला दस घौं केहेंव ददा, ओमन मरखंडा हे गाली गुफ्तार करथे, मारपीट करत रहिथें, बात अइसे करथें जइसे करेजा मं छुरी चलावत हैं. अब अइसन घर जाके का मैं परान ल दे दौं?'...
सही बात हे, आज जिनगी के ककरो कांही ठिकाना नइहे? कब, कतका बेर, कहां, का हो जही, कोनो सही-सही नइ जान सकय, न बता सकय? भले बड़े-बड़े गियानी विज्ञानी, रिसि-मुनि, जोतिसी अउ भविष्य बंचइया वाला होय हे फेर उकरो मन के गनित फेल खागे हे, सही-सही नइ उतर पावत हे....
'देख दुकलहीन मैं मरहूं ना, तहां ले मोर लइका मन ल दुख झन देबे, बाढ़ जहीं तहां ले ओकर मन के बने सुग्घर घर मं बिहाव करबे, बने पुतरी असन बहू लाबे अउ मोर ओ बेटी मन ल बने खाता-पीता घर मं देबे, नंगरा के हाथ झन धरा देबे नइ ते बिन मारे के मारे मर जाही बपूरी मन....
जा रे रोगहा, बेक्खया नइतो, घिलर-घिलर के मरबे तैंहर, अतेक धांगड़-मोसर अउ गोल्लर असन दीखत हस तौंन एक दिन अइसे आही के तोर ये शरीर टुकना भर के पुरती हो जही. मोर इज्जत लुटे रे किरहा, पाछू कोती ले आके पटका मं मुंह ला बांधके पटक देस. ...
आज बड़े फजर एनसीसी के दू झन अधिकारी रेलगाड़ी ले उतरिन. आउटर मं उतरे रिहिन हें तेकर सेती ओमेर ऑाटो, टैक्सी अउ रिक्शा ओकर करा नइ रिहिस हे. सुनसान जघा, दू-चार अउ मुसाफिर उतरे रिहिन हे, तेला लेगे खातिर ओकर घर वाले मन आय रिहिन हे तेकर मन संग ओमन चल दीन. ...
नानपन के बाते. गांव मं रेहेन तब खेत-खार, ढोड़गी नरवा, नदिया के बस खाली किंजरई राहय. झट कोनो पेड़ मं चिरई-चुरगुन दीख जाय ते बस बेंदरा असन ये डारा ले ओ डारा मं फलांग मारे के सिवा अउ कांही नइ करेन. एक घौं एक ठीन ढोड़गा मं मेचका पकड़त-पकड़त एक ठन सांप दीखगे. ओला मारे ले डंडा उठायेन ते ओहर अइसन दउड़ाइस नहीं ते बस भागते-भागत घर आगेन....
कोनो-कोनो रात-दिन एक-दूसर के तीन-पांच मं बुड़े रहिथे, लाई-लिगरी करत रहिथे. अतका नइ करहीं तब ओकर मन के पेट के पानी नइ पचय. एकर ले कोनो ला का मिलथे, कांही नहीं, फेर का करबे अपन-अपन सुभाव अउ संस्कार बना डरे रहिथे. कभू ओमन ल सुग्घर बात करत नइ पावस. जब देखबे तब एक-दूसरे के टांगे खींचत रहिथे. आखिर का मिलथे एकर से, हाथ ककरो भला कांही आवय नहीं, अउ उलटाके आफत खड़ा हो जथे....
का होगे कउंवा मन आजकल कांव-कांव नइ करत हे, बिलई मन मियाउं-मियाउं नइ करत हे, कुकुर मन भुके बर भुलागे हे, कोलिहा मन हुंआ-हुंआ नइ करत हे, सुआ अउ पड़की-परेवना मन के घला बोलती बंद होगे हे. खबर तो ये घला मिलत हे के जंगल के शेर, भालू मन के दहड़ई घला सटकगे हे. गजराज मन घला चिंघाड़े ले छोड़ देहे, कइसे का होगे हे ते ओकरो मन के कांही आरो नइ मिलत हे?...
एक दिन के बात हे, गुरु जी इस्कूल मं पढ़हइया लइका मन ला जब क्लास लेवत रिहिस हे तब पूछथे- अच्छा ये बतावव- साड़ही अउ करउनी कोन-कोन मन खाय हौ? बात शहर के हे, गांव के होतीस तब कतको झन बता देतीन, फेर बात तो शहर के हे, अब कोन बतावय? लइका मन धंधमंधागे, सोच मं परगे के आखिर ये साड़ही अउ करउनी का बला हे? कोन चिरई के नांव होथे? सब एक दुसर के मुंह ला देखे ले लगीन. ककरो दिमाग मं गुरूजी सवाल के उत्तर नइ बइठत रिहिस....
छत्तीसगढ़ी मं वइसे तो साहित्य के सबो विधा मौजूद हे, जइसे गीत, गजल, कहिनी, नाटक, उपन्यास अउ कविता फेर वरिष्ठ पत्रकार परमानंद वर्मा हा एकालाप के जरिये अपन कोनो अनचिनहार मसीहा संग अंतरंग गोठ-बात करे हे| तव छत्तीसगढ़ी मं पढ़व आखिर कोन हे ओ मसीहा......
आनंद, खुशी, सुख, शांति, परेम, संतोष अउ सहकार के नांव हे दीयारी याने दीवाली.ये परब, तिहार ला तो सबो भारतवासी बहुत उछाह से मनाथे फेर बस्तर के दंतेवाड़ा जिला के समलूर गांव के आदिवासी जउन तरीका ले मनाथे त उन हा सबले हटके अलग अउ निराला हे.गांव वाले सब मिलके तपेश्वरी देवी के मंदिर मं दीया धर के जाथे.मंदिर जंगल मं परथे.हर घर ले एक-एक दीया जलाना अनिवार्य हे, अइसे विधान हे....
छत्तीसगढ़ी के कला, संस्कृति, भाखा, बोली, साहित्य, पर्व-तिहार लगथे धीरे-धीरे नंदावत जात हे. लगथे कोनो समे ये नइ रइही. एकर जघा रइही सिरिफ अप संस्कृति, जेकर जकना फइलत जात हे अउ उही मं सब अइसे मातत जात हे जइसे गांजा-भांग पी-खा के भकवा जथे. ओमन ला ये सुरता नइ राहय के कहां जाथन, का करथन, अउ का करना चाही....
कहां हे, गरीबदास, कहां जाके लुकागे हे नंजतिया हर? सब आरो करत हे, खोज-खबर लेवत हे, ओकर फेर मिले के नामे नइ लेवत हे? देश के महामहिम राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री अउ जतेक छोटे-बड़े मंत्री अउ नेता हें जिहां देखव तिहां बस गरीब दास के फिकर मं मिसरी असन घुरे जात हे, इकरे चिंता फिकर मं रात-दिन बूड़े रहिथे।...
पुरदा नांव के गांव हे, जेकर आजकल गजब शोर उड़त हे. दुर्ग जिले के धमधा तहसील मं ये गांव आथे, जिहां सिरिफ अउ सिरिफ दस ले बारह साल के नोनी (बेटी) मन रामलीला करत हे. एमा एको झन पुरुष पात्र नइहे. राम से लेके रावण तक सबो उहिच मन बनथे....
चुनाव के मौसम अभी आय तो नइहे फेर दिन लकठियावत जात हे, तब सबो पारटी वाले मन मुद्दा के खोज मं निकल परे हे. कोनो जोतिसी मन कहि दीन- राम के सरन मं जाव, कोनो कहि दीन धरमांतरन के मुद्दा उछालौ, तब कोनो किहिन महंगाई, किसान, मजदूर अउ आदिवासी-हरिजन के सरन मं जाके ''रघुपति राघव राजा राम, पतित पावन सीताराम के भजन गावत फिरौ. जरूर लाभ होही. ...
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