सरकार करोड़ों, अरबों रुपया के योजना बनाथे, वनवासी मन बर, पचासो साल ले अइसन योजना बनथे, फेर धरातल मं जाके देखबे तब आदिवासी, किसान, गरीब अउ मजदूर के हालत जइसने के तइसने हे....
लालची मन के का गति होथे, ओला तो सब जानत हे। बटन दे नेवता ला झारा-झारा का फरक परत हे। फेर उमर हा तो अपन हिसाब चुकता कर लेथे। एक घौं के बात हे, इही शहर मं एक झन बने चाम सुंदर डोकरी रिहिसे।...
कहां होवथे धर्मांतरन, धरम परिवर्तन केान करत हे, काबर करत हे, काला करलेस हे ? कोनो ला दीखत हे धरम परिर्वतन करत ते अइसने कउंवा ले गे कान ला अउ ओकर पी छू अंधरा बने असन सब कांव कांव चिल्लावत हे ? कोनो कोनो के आद होथे, ककरो बनत काम ला नइ देख सके के, तब ओमन का करथे, उकसाथे उभराथे। ...
जेती देखव तेती पानीच पानी,सबो कोती हाहाकार मचे हे. अइसन तो कभू नइ बरसे रिहिस हे तेन हा एसो का ला कहिबे परलय मचा दे हें| बिलासपुर सरगुजा संभाग मं धुंआधार पानी के बरसे ले अरपा महानदी समेत कतको नदिया नरवा उफनत हे....
अभी के मुखिया कोदो, कुटकी अउ रागी के भात खाय हे, पेज पसइया पीये हे, रोटी खाय हे| ओ जानत हे ये फसल मन के सुवाद ला| अनाज के संगे-संग ये फसल मन दवई-दारु के घला काम आथे| बड़े-बड़े बिमारी मं अचूक दवा बताथे बइद मन...
सावन भादो के महिना माईलोगिन मन ला समर्पित हे, तब ले जब भादो लगथे बहिनी, बेटी, बहु, दाई, माई मन के सुध मइके कोती लोरमियाय ले धर लेथे| ...
तीन आगर एक कोरी निबंध जेमा एक ठन जीवन परिचय हे, जागेश्वर प्रसाद हा निबंध संग्रह छपवाय हबय, नांव हे ओकर “हीरा छत्तीसगढ़”| ओकर नजर मं इहां हीरेच-हीरा दीखथे| चाहे ओहर मनखे होवय, चाहे हीरा, पन्ना, सोना, चांदी, लोहा, कोयला, मेगनीज होवय चाहे कोरेंडम अउ यूरेनियम, जल जमीन अउ पहाड़ तो अनगिनत हे|...
छत्तीसगढ़ के मुखिया भूपेश बघेल गांव मं पले, ढले अउ बढ़े हे, खेले कूदे हे तब ओहर जानत हे, समझत हे के का-का उदिम होथे गांव मं? जइसे चोर बदमास मन ले जनता ला बचाय खातिर पुलिस अउ थाना के बेवसथा करे हें....
दुनिया (World) मं सबो दुष्ट, राक्षस, गररेता अउ बइमान नइ होवय. कोनो न कोनो विभीसन जइसे महात्मा घलो भेजे रहिथे भगवान हा जउन मुसीबत के बेरा मं नइया पार कर देथे, अइसने कस चेन्नई मं आटो चालक मन बर मसीहा कस अवतरे रिहिस हे नुगंमबाक्कम....
पांचों अंगुरी कभू, ककरो एक बरोबर नइ रहय? बिधाता चुन के, हिसाब लगा के संसार के रचना करे हे, फेर मनखे मन अइसे हे अपन ला छोड़ देथे, दुसर के मीन-मेख लगाय मं लगे रहिथें. ...
पानी गिरय तब लइकापन मं गीद गावन, नाचन कुदन-“नांगर बइला बोर दे, पानी दमोर दे”. फेर आज देखत हन, न पानी बादर के ठीक ठिकाना हे न नांगर बइला के. कहां गयै वो नांगर के जब पानी गिरतिस तब किसान नांगर ला खांध मं बोहे, तुतारी धरे अउ आघू-आघू बइला ला हांकत खेत कोती जाय अउ पाछु-पाछु मुड़ी मं धान बोहे ओकर गोसइन रेंगत जाय. ...
धरम-करम, दान-पुण्य, पूजा-पाठ, यज्ञ अउ हवन नइ होही तब समाज मं सुख शांति कइसे आही? जब जब अइसने धरम के हानि होही तब तब पाप बढ़थे, दुःख अशांति बढ़थे, महामारी बढ़थे अइसन लोगन मन कहिथे. समाज मं करलेस अउ हाहाकार मचथे....
ये काया माया, कउड़ी काम के नइहे. चार दिन के जिनगानी हे. इही पाके ए दिन जीना हे तब हंसी-खुशी जी लौ. का फालतू ककरो संग बैर करना. परेम से लहर गंगा मं डूबकी लगाय बरोबर चुभुक-चुभुक नहां धो लौ रे भाई....
छेरका महाजन पुछथे-कइसे करबे पहाटिया तेला तहीं बता, तोर अतेक साल के अनुभव हे, ओ समय कइसे करत रहे होबे...
जमीन ला तो ख़रीदे खातिर गाँव ला कोन काहय शहर ले चील कउआ असन दलाल मन गली-गली किंजरे ले धर लिस. बात मुँह ले निकलिस नहीं के जमीन ला झपटे खातिर घर मं ओकर मन के रेलम-पेल मचगे. ...
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