उत्तराखंड बनने के16 साल बाद भी उसके भू- भाग पर उत्तर प्रदेश का हुक्म धड़ल्ले से चल रहा है. अब तक विभिन्न विभागों की करीब 10 हजार करोड़ की परिसम्पत्तियों का बंटवारा नहीं हो पाया है ....
कांग्रेस हाईकमान ने उत्तराखंडी जनमानस में प्रीत जगाने के लिए प्रीतम सिंह पर दांव लगाया है. बतौर अध्यक्ष उनके सामने पहाड़ और मैदान में पार्टी को नए सिरे से खड़ा करने की बड़ी चुनौती है. पार्टी की टॉप लीडरशिप के बीजेपी में जाने से हुई शून्यता को भरना प्रीतम की अग्निपरीक्षा होगी....
केदारनाथ यात्रा शुरू होने के बाद उत्तराखंड का उड्डयन महकमा हैली सर्विस शुरू करने के लिए हरकत में आया है. एनजीटी के दिशानिर्देशों पर खरा न उतर पाने के चलते प्राइवेट चॉपर उड़ान नहीं भर पाए हैं. जिसके मद्देनजर मुख्य सचिव ने आपरेटरों के साथ मीटिंग करने के बाद खुद दिल्ली में डीजीसीए से मिलने का फैसला लिया है. ...
आज राष्ट्रीय पंचायत राज दिवस है. देश के कईं हिस्सों में पंचायती राजव्यवस्था के तहत ग्राम स्वराज की भावना जमीन पर पूरी तरह ना उतर पाई हो, लेकिन उत्तराखंड में ग्राम प्रधान, ब्लाक प्रमुख और जिला पंचायत की राजनीति से आज की टाप लीडरशिप तैयार हुई है. ...
उत्तराखंड के वजूद में आने के 16 साल बाद 45 हजार करोड़ का कर्जदार हो गया है. वित्त मंत्री प्रकाश पंत सीमित संसाधनों वाले राज्य में कर्ज के मौजूदा हालात पर चिंता जाहिर कर रहे हैं ....
उत्तराखंड सरकार के सामने पहले ही अपने स्तर पर आर्थिक संसाधन जुटाकर राजस्व बढ़ाने की बड़ी चुनौती है. खनन पर नैनीताल हाईकोर्ट की रोक के बाद निर्माण कार्यों पर तो असर पड़ेगा ही साथ ही आर्थिक नुकसान भी होगा. मुख्यमंत्री का कहना है कि इस पूरे मामले का परीक्षण कर जल्दी ही आगे की कार्रवाई की जाएगी. उधर खनन सचिव का कहना है कि इससे सरकार को करीब 350 करोड़ की चपत लगेगी, जिससे प्लान खर्च गड़बडाएगा....
उत्तराखंड बनने के बाद से अभी तक 9 बार मुख्यमंत्रियों का शपथ ग्रहण हो चुका है. लेकिन राज्य गठन के 16 साल बाद भी उत्तराखंड की सरजमीं पर उत्तरप्रदेश का हुक्म बदस्तूर चल रहा है. दरअसल आधा दर्जन विभागों की सूबे में मौजूद 10 हजार करोड़ की परिसम्पत्तियों का बंटवारा आज तक नहीं हो पाया है. अब जब उत्तराखंड के साथ ही यूपी में भी भाजपा सरकार है तो क्या अब उत्तराखंड को अपना हक मिल सकेगा और देवभूमि में चल रहे यूपी राज से मुक्ति मिलेगी....
त्रिवेंद्र सिंह रावत ने प्रचंड बहुमत के साथ उत्तराखंड की बागड़ोर संभाल ली है. उन्हें जनता की कसौटी पर खरा उतरने के लिए आर्थिक, सामाजिक और पार्टी की अंदरूनी चुनौतियों से गुजरना होगा. सवाल ये भी है कि क्या नए निजाम में बेलगाम अफसरशाही पर अंकुश लग पाएगा? ...
उत्तराखंड में मौजूदा प्रंचड बहुमत वाली बीजेपी सरकार के शपथ ग्रहण की उल्टी गिनती शुरू हो गई है. सवाल ये है कि क्या समग्र रूप से उत्तराखंड को मंत्रिमंडल में उचित प्रतिनिधित्व मिल पाएगा. क्या गढ़वाल के साथ-साथ कुमाऊं और मैदान को मंत्रिमंडल में उचित भागीदारी मिलेगी. सरकार चाहे कांग्रेस की रही या फिर बीजेपी की देहरादून, नैनीताल और पौड़ी का ही दबदबा ज्यादा रहा है. ...
उत्तराखंड के जनमानस ने अपना भविष्य संवारने की जिम्मेदारी भारतीय जनता पार्टी को सौंपी है. उनके चुनावी वादों को पूरा करके जनता की कसौटी पर खरा उतरने की जिम्मेदारी नए मुखिया पर होगी. लिहाजा प्रचंड बहुमत के बाद नए तारणहार का चुनाव बेहद अहम है. उत्तराखंड की चौथी विधानसभा की तस्वीर साफ हो गई और अब सबको नई सरकार के गठन का इंतजार है. ...
उत्तराखंड में मतगणना की उल्टी गिनती शुरू होने के साथ ही सियासी दल और उम्मीदवारों में बेचैनी शुरू हो गई है. देवभूमि की 70 विधानसभा सीटों पर दांव लगा रहे 637 उम्मीदवारों की धड़कने बढ़ने लगी हैं. 11 मार्च को नई सरकार, वंशवाद, बागियों और दागियों पर मतदाताओं के मन की बात के साथ ईवीएम से बाहर आ जाएगी....
चमोली जिले की कर्णप्रयाग विधानसभा सीट पर कल मतदान होगा. इस सीट पर बसपा प्रत्याशी की मौत के बाद चुनाव स्थगित करना पड़ा था. प्रदेश में यह दूसरा मौका है जब किसी प्रत्याशी की मौत के बाद चुनाव स्थगित करना पड़ा है. उत्तराखंड बनने के बाद यह दूसरा मौका है जब विधानसभा चुनाव के दौरान प्रत्याशी की मौत के बाद मतदान स्थगित करना पड़ा है. ...
कर्णप्रयाग विधानसभा सीट पर चुनाव से पहले भाजपा ने गैरसैंण को स्थाई राजधानी का मुद्दा एक बार फिर गरमा दिया है. भाजपा अध्यक्ष ने कहा है कि सरकार बनते ही गैरसैंण को राजधानी घोषित कर दिया जाएगा. इसके पहले मौजूदा कांग्रेस सरकार ने वहां ट्रांजिट एसेंबली बनाने का ऐतिहासिक निर्णय तो ले लिया, लेकिन राजधानी बनाने पर कदम पीछे खींच लिए....
वैसे तो अभी तक उत्तराखंड में हुए हर विधानसभा चुनाव में तीन-तीन निर्दलीय प्रत्याशी ही विधायक बन पाए हैं. लेकिन पिछले चुनाव इस बात के गवाह हैं, 7 अन्य सीटों पर उन्हें जीत छूकर निकल गई थी. निर्दलीयों ने 20 से ज्यादा सीटों पर 5 से 15 हजार के बीच वोट हासिल करके कांग्रेस बीजेपी के स्पष्ट बहुमत पर ब्रेक लगा दिया था. इस बार फिर हालात पहले से जुदा नहीं हैं....
वैसे तो सियासत से जुडे हर शख्स के लिए सत्ता अहमियत रखती है, लेकिन कुछेक नेताओं का इत्तेफाकन या फिर कहें कि बदकिस्मती से सत्ता से बैर रहा है. दरअसल ये महानुभाव जब विधानसभा चुनाव जीते तो उनकी पार्टी को सत्ता नसीब नहीं हुई और जब उनकी पार्टी ने सरकार बनाई तो वे चुनाव हार गए. ...
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