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चार राज्यों की सरकार एक साथ हुई बर्खास्त
दिल्ली यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस के एसोसिएट प्रोफ़ेसर सुबोध कुमार के मुताबिक़, “बाबरी विध्वंस के बाद पूरे देश में तीखी प्रतिक्रिया हुई. विरोध में प्रदर्शन हुए. दंगे शुरू हो गए. इसे देखते हुए नरसिम्हा राव सरकार ने क़ानून व्यवस्था के मुद्दे पर यूपी की कल्याण सिंह सरकार, हिमाचल प्रदेश की शांता कुमार, राजस्थान की भैरों सिंह शेखावत और एमपी की सुंदर लाल पटवा सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू करवा दिया.”
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दंगों का सिलसिला
राम मंदिर आंदोलन ने कई बड़े दंगों की नीव रखी. हिंदू-मुस्लिमों में टेंशन 30 अक्टूबर 1990 को ही शुरू हो गई थी जब कारसेवकों ने मस्जिद पर चढ़कर गुंबद तोड़ा और वहां भगवा फहराया. इसकी प्रतिक्रिया में कई शहरों में दंगे हुए. इसके बाद 6 दिसंबर 1992 की घटना ने तो दोनों समुदायों के बीच नफरत और बढ़ा दी. जिससे दंगे हुए और हज़ारों लोग मारे गए.
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1990 में दंगे
हैदराबाद में 134 लोगों की मौत हो गई. अलीगढ़ में 11, गोंडा में 42, बिजनौर में 40 और कानपुर में 20 की मौत हुई.
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1992 और उसके बाद दंगे
सूरत में 150 लोगों की मौत हुई. कर्नाटक में 73, जयपुर में 28, कोलकाता में 35 और भोपाल में 142 लोग दंगों में मारे गए. 12 मार्च 1993 को देश की आर्थिक राजधानी मुंबई एक के बाद एक 13 बम धमाके हुए. जिसमें 257 लोगों की मौत हुई और करीब डेढ़ हजार लोग घायल हुए. बंगलुरु में 1994 में दंगा हुआ जिसमें 30 लोग मारे गए.
साल 2002 में कारसेवक साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन से अयोध्या से गुजरात लौट रहे थे. इसी बीच गोधरा में कुछ असामाजिक तत्वों ने इस ट्रेन की कई बोगियों को जला दिया. इस घटना में 59 कारसेवकों की मौत हो गई. बाद में प्रतिकार के रूप में यह घटना एक बड़े दंगे के रूप में बदल गई. जिसमें करीब 2000 लोगों की जानें गईं और लाखों लोगों को बेघर होना पड़ा.
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पत्रकारों की भूमिका
आशीष नंदी, शिखा त्रिवेदी, शैल मायाराम और अच्युत याग्निक ने ‘राष्ट्रवाद का अयोध्या कांड’ में पत्रकारों की भूमिका पर गंभीर सवाल उठाए हैं. किताब के मुताबिक “स्थानीय पत्रकारों ने 30 अक्टूबर का दिन 'महान विजय' के दिन के रूप में मनाया. वे सड़कों पर प्रसाद बांटते देखे गए. बाद में आंदोलन के नेताओं द्वारा महान विजय के दिन की तुलना विजयादशमी से की जाने लगी...”
“30 अक्टूबर से पहले ही हिंदी के दो प्रमुख अख़बार.. अपनी कारसेवा शुरू कर चुके थे.. 30 अक्टूबर से पहले अखबार या तो सुरक्षाबलों पर कारसेवकों को सताने का इल्ज़ाम लगा रहे थे या उनके आत्मविश्वास को कमज़ोर करने के लिए उन्हें क़ानून और व्यवस्था का एजेंट बताने में लगे हुए थे. मसलन यह प्रचार किया जा रहा था कि जो भी व्यक्ति आते-जाते राम का नाम भी लेता है यानी राम-राम या जै सियाराम कहता है और यहां तक कि अर्थी ले जाते समय राम नाम सत्य है कहता है तो पुलिस उसे तंग करती है. एक अखबार...ने पुलिस पर इल्ज़ाम लगाया कि वह कारसेवकों को राम के बजाय मुलायम का नाम लेने पर मजबूर कर रही है."
"एक के बाद एक ख़बरें छापी जा रही थीं कि आंदोलन को मुसलमानों का कितना समर्थन मिल रहा है. लखनऊ के एक अखबार...ने पहले पन्ने पर प्रकाशित किया था कि लालकृष्ण आडवाणी का रथ ड्राइव करने वाला मुसलमान ड्राइवर किस प्रकार अन्य मुसलमानों को कारसेवा करने के लिए प्रोत्साहित कर रहा है." प्रेस काउंसिल ऑफ़ इंडिया ने इनमें से कई अख़बारों को सांप्रदायिक हिंसा भड़काने का जिम्मेदार ठहराया.
वरिष्ठ पत्रकार आलोक भदौरिया के मुताबिक़ “आडवाणी की रथयात्रा के साथ ही पत्रकारों में विचारधारा को लेकर धड़ेबाजी शुरू हो गई थी. पत्रकारों का एक तबक़ा खास विचारधारा से प्रभावित हो गया था.”
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अयोध्या के जैन-बौद्ध दावेदार
विवादित स्थल पर सुप्रीम कोर्ट में बौद्धों ने भी दावा जताया है. अयोध्या के याचिकाकर्ता विनीत कुमार मौर्य आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (एएसआई) की खुदाई में मिले गोलाकार स्तूप, दीवार और खंभों को बौद्ध विहार से जुड़ा बताते हैं. उनका कहना है कि ये विशिष्टताएं न मंदिर की हैं और न मस्जिद की. चीनी यात्रियों (फाह्यान, ह्वेनसांग) के यात्रा वृतांत, त्रिपिटक साहित्य भी अयोध्या की विवादित भूमि को बौद्धस्थल बताते हैं.
‘अयोध्या का इतिहास’ में अवधवासी लाला सीताराम ने लिखा है “अयोध्या जैन धर्मावलंबियों का ऐसा ही तीर्थस्थल है जैसा हिंदुओं का.” इतिहासकार रामशरण शर्मा लिखते हैं “अयोध्या को परंपरागत रूप से कई जैन तीर्थंकरों या धार्मिक उपदेशकों की जन्मस्थली भी माना जाता है. जैन इसे तीर्थ मानते हैं. जैन परंपरा में इसे कोसल राज्य की राजधानी बताया गया है, पर यह ठीक कहां स्थित है यह नहीं दर्शाया गया.”
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विवादित स्थल के नीचे क्या है?
विवादित स्थल के नीचे क्या है इसका पता किया गया, ताकि विवाद खत्म हो जाए. जनवरी 2003 में रेडियो तरंगों के जरिए ये पता लगाने की कोशिश की गई कि क्या विवादित राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद परिसर के नीचे किसी प्राचीन इमारत के अवशेष दबे हैं? इसके बाद 12 मार्च से 7 अगस्त 2003 के बीच 82 स्थानों पर खुदाई की गई. इलाहाबाद हाइकोर्ट के निर्देश पर आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया इस काम को अंजाम दिया.
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अदालत में अयोध्या
पहला मुक़दमा: विश्व हिंदू परिषद की वेबसाइट के मुताबिक, पहला मुक़दमा (नियमित वाद क्रमांक 2/1950) एक दर्शनार्थी भक्त गोपाल सिंह विशारद ने 16 जनवरी, 1950 ई. को सिविल जज, फ़ैज़ाबाद की अदालत में दायर किया था. वे उत्तर प्रदेश के तत्कालीन ज़िला गोंडा, वर्तमान ज़िला बलरामपुर के निवासी और हिंदू महासभा, गोंडा के ज़िलाध्यक्ष थे. गोपाल सिंह विशारद 14 जनवरी, 1950 को जब भगवान के दर्शन करने श्रीराम जन्मभूमि जा रहे थे, तब पुलिस ने उनको रोका. पुलिस अन्य दर्शनार्थियों को भी रोक रही थी.
गोपाल सिंह विशारद ने ज़िला अदालत से प्रार्थना की कि-‘‘प्रतिवादीगणों के विरुद्ध स्थायी व सतत निषेधात्मक आदेश जारी किया जाए ताकि प्रतिवादी स्थान जन्मभूमि से भगवान रामचन्द्र आदि की विराजमान मूर्तियों को उस स्थान से जहां वे हैं, कभी न हटावें तथा उसके प्रवेशद्वार व अन्य आने-जाने के मार्ग बंद न करें और पूजा-दर्शन में किसी प्रकार की विघ्न-बाधा न डालें.’’
वेबसाइट पर लिखी जानकारी के मुताबिक़ अदालत ने सभी प्रतिवादियों को नोटिस देने के आदेश दिए. तब तक के लिए 16 जनवरी, 1950 को ही गोपाल सिंह विशारद के पक्ष में अंतरिम आदेश जारी कर दिया. भक्तों के लिए पूजा-अर्चना चालू हो गई. सिविल जज ने ही 3 मार्च, 1951 को अपने अंतरिम आदेश की पुष्टि कर दी.
मुस्लिम समाज के कुछ लोग इस आदेश के विरुद्ध इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चले गए. मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मूथम व न्यायमूर्ति रघुवर दयाल की पीठ ने 26 अप्रैल, 1955 को अपने आदेश के द्वारा सिविल जज के आदेश को पुष्ट कर दिया. ढांचे के अंदर निर्बाध पूजा-अर्चना का अधिकार सुरक्षित हो गया. इसी आदेश के आधार पर आज तक रामलला की पूजा-अर्चना हो रही है.
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घटना के बाद कुल 49 मामले
केस नंबर 197: बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद शाम सवा पांच बजे थाना राम जन्मभूमि, अयोध्या में अज्ञात कार सेवकों के खिलाफ बाबरी मस्जिद गिराने का षड्यंत्र, मारपीट और अन्य मामलों में केस दर्ज किया गया.
केस नंबर 198: इसके कुछ ही देर बाद 198 नंबर केस दर्ज हुआ. इसमें नामजद हुए अशोक सिंघल, गिरिराज किशोर, लाल कृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विष्णु हरि डालमिया, विनय कटियार, उमा भारती और साध्वी ऋतंभरा. आठ लोगों के खिलाफ राम कथा कुंज सभा मंच से मुस्लिम समुदाय के खिलाफ धार्मिक उन्माद भडकाने वाला भाषण देकर बाबरी मस्जिद गिरवाने का मुकदमा दर्ज हुआ. जबकि, अलग से 47 केस पत्रकारों और फोटोग्राफरों ने मारपीट, कैमरा तोड़ने और छीनने आदि के अलग से दर्ज करवाए.
मुकदमे के ट्रायल के लिए ललितपुर में विशेष अदालत स्थापित की गई. बाद में यह रायबरेली स्थानांतरित कर दी गई. सरकार ने बाद में सभी केस सीबीआई को जांच के लिए दे दिए. उत्तर प्रदेश सरकार ने 9 सितंबर 1993 को 48 मुकदमों के ट्रायल के लिए लखनऊ में स्पेशल कोर्ट के गठन की अधिसूचना जारी की. लेकिन इस अधिसूचना में केस नंबर 198 शामिल नहीं था, जिसका ट्रायल रायबरेली की स्पेशल कोर्ट में चल रहा था. फिर सीबीआई ने सभी 49 मामलों में चालीस अभियुक्तों के खिलाफ संयुक्त चार्जशीट फाइल की.