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7 किलो के बच्चे का जन्म, 2 फीट की लंबाई देख डॉक्टर्स भी हैरान, पैदा होते ही बना दिया गजब का रिकॉर्ड

7 Kilo Ka Baccha: महिला ने 7 किलोग्राम के बच्चे को जन्म दिया.

7 Kilo Ka Baccha: महिला ने 7 किलोग्राम के बच्चे को जन्म दिया.

7 Kilo Ka Baccha: ब्राजील में एक महिला ने 7.3 किलोग्राम वजन वाले बच्चे का जन्म दिया है. इस बच्चे की लंबाई दो फुट बताया ...अधिक पढ़ें

7 Kilo Ka Baccha: ब्राजील में एक महिला ने 7.3 किलोग्राम वजन वाले बच्चे का जन्म दिया है. इस बच्चे की लंबाई दो फुट बताया जा रहा है, जिसे देखकर डॉक्टर भी हैरान हो गए हैं. इस नवजात बच्चे का वजन नॉर्मल बच्चे से कहीं अधिक माना जा रहा है. पैदा होते ही इस बच्चे ने सबसे भारी बच्चे होने का रिकॉर्ड भी बना लिया है. आमतौर पर नवजात बच्चे का वजन 3.3 किग्रा से 3.2 किग्रा के बीच होता है. इस खबर ने सोशल मीडिया पर तहलका मचा दिया है.

बच्चे का नाम एंगर्सन सैंटोस रखा गया है, जो सिजेरियन के माध्यम से पैदा हुआ है. एंगरसन ने सबसे भारी बच्चे होने का रिकॉर्ड बनाया है. इससे पहले वर्ष 2016 में 6.8 किग्रा की बच्ची पैदा हुई थी और 1955 में इटली में 10.2 किग्रा के वजन वाले बच्चे ने जन्म लिया था. आमतौर पर नवजात लड़कों का वजन 3.3 किग्रा और लड़कियों का 3.2 किग्रा होता है.

इस तरह के बच्चे को मैक्रोसोमिया (ग्रीक शब्द) कहा जाता है. इसमें गर्भधारण की अवधि कुछ भी हो, लेकिन बच्चे का वजन 4 किलोग्राम से अधिक होता है. मैक्रोसोमिया वाले बच्चे लगभग 12 प्रतिशत जन्म लेते हैं. गर्भकालीन मधुमेह (गर्भावस्था के दौरान उत्पन्न होने वाली उच्च रक्त शर्करा) वाली माताओं में, यह जन्म के 15 प्रतिशत से 45 प्रतिशत के बीच बढ़ जाता है.

मां के शरीर का वजन अधिक होने से भी इस तरह के बच्चे का जन्म होने का खतरा रहता है. मोटापे से ग्रस्त माताओं में मैक्रोसोमिया के साथ नवजात शिशु होने की संभावना दोगुनी होती है. और गर्भावस्था के दौरान अत्यधिक वजन बढ़ने से भी मैक्रोसोमिया का खतरा बढ़ जाता है. गर्भकालीन मधुमेह एक जोखिम कारक है.

लड़का होने से मैक्रोसोमिया होने की संभावना बढ़ जाती है. लड़कियों की तुलना में लड़कों के मैक्रोसोमिक पैदा होने की संभावना तीन गुना अधिक होती है. मैक्रोसोमिया वाले शिशुओं को उनके बड़े आकार के कारण जन्म द्वार के माध्यम से आगे बढ़ने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है. इसके साथ ही बच्चे का कंधा मां की जघन की हड्डी के पीछे फंसने का खतरा भी रहता है. इसे मेडिकल शब्द में “शोल्डर डिस्टोसिया” भी कहते हैं.

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