इंडोनेशिया दुनियाभर में टूरिज्म के लिए जाना जाता है. जो भी यहां घूमने आते हैं वो अंग्रेजी भाषा सीख कर आते हैं, ताकि उनकी बातें यहां के लोकल समझ पाएं. हालांकि, कई लोगों को लोकल भाषा भी आती है. लेकिन आज हम इंडोनेशिया के बाली में स्थित एक ऐसे गांव के बारे में बताने जा रहे हैं, जहां पैदा होने वाले ज्यादातर लोग गूंगे बहरे होते हैं. ये लोग एक ही भाषा का इस्तेमाल करते हैं जिसे काटा कोलोक कहते हैं. इसे बोला नहीं जा सकता. ये साइन लैंग्वेज है.
इंडोनेशिया में मौजूद इस गांव का नाम है बेंगकला. यहां रहने वाले हर शख्स को इशारों में बात करना आता है. इसकी वजह है कि ज्यादातर परिवारों में कोई ना कोई शख्स बोलने और सुनने में असमर्थ है. ऐसे में लोग इशारों में बात करना सीख जाते हैं. इस गांव को डेफ विलेज के नाम से भी जाना जाता है. यानी एक ऐसा गांव, जहां लोग सुन नहीं सकते. इस गांव में लोग ही नहीं, बल्कि सरकारी ऑफिस में भी सांकेतिक भाषा काटा कोलोक का इस्तेमाल किया जाता है.
काफी पुरानी है भाषा
काटा कोलोक आज की नहीं, सदियों पुरानी भाषा है. इस सांकेतिक भाषा को सिर्फ गांव के लोग ही समझ पाते हैं. चूंकि, यहां कोई सुन नहीं पाता, इस वजह से बाहरी लोग यहां आने से कतराते हैं. यहां जन्म लेने वाले ज्यादातर बच्चे सुनने और बोलने में असमर्थ होते हैं. ऐसे में मज़बूरी कहें या जरुरत, हर कोई इस भाषा को सीख लेता है. सरकारी कामकाज के लिए भी इसी भाषा का इस्तेमाल किया जाता है. इस गांव में करीब तीन हजार लोग रहते हैं. यहां बहरेपन की वजह है इलाके में DFNB3 नाम के जीन की मौजूदगी. यहां ये जीन पैदा होने वालों में सात पुश्तों से चली आ रही है. इसकी वजह से ही लोग बहरे पैदा होते हैं.
कहीं ये श्राप तो नहीं
गांव के कई लोगों को लगता है कि ये बहरापन उन्हें श्राप की वजह से मिला है. लोकल कहानी के मुताबिक, यहां रहने वाले दो काला जादू करने वालों के बीच लड़ाई हुई थी. इसी लड़ाई के दौरान उन्होंने एक-दूसरे को बहरा हो जाने का श्राप दिया था. गांव वालों का मानना है कि गांव के सभी लोग इन दो हैं. श्राप पीछे सात पुश्तों से अभी तक फ़ैल रहा है.
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