खतरनाक साइंस: डॉक्टर ने किया ऐसा प्रयोग, जिंदगीभर के लिए अनाथ बच्चों की ऐसी हो गई हालत!

'मॉन्स्टर स्टडी'
आज खतरनाक साइंस की सीरीज़ में पढ़ें कैसे इस प्रयोग ने करीब 22 से भी ज्यादा बच्चों को जिंदगी भर के लिए विकंलाग बना दिया.
- News18Hindi
- Last Updated: April 8, 2019, 2:46 AM IST
साल 1939 में स्कॉट के लोवा राज्य में बच्चों पर एक खास तरह का प्रयोग किया गया था, जिसे बाद में 'मॉन्स्टर स्टडी' का नाम दिया गया. इस प्रयोग की वजह से करीब 22 बच्चों की जिंदगी भर के लिए आवाज़ खराब हो गई. इस एक्सपेरिमेंट का संचालन करने वाले वेंडेल जॉनसन कई सालों से 'हकलाहट' जैसे स्पीच डिसॉर्डर पर रिसर्च कर रहे थे. अपने इस प्रयोग के लिए उन्होंने 22 अनाथ बच्चों का इस्तेमाल किया था. आज खतरनाक साइंस की सीरीज़ में पढ़ें कैसे इस प्रयोग ने करीब 22 से भी ज्यादा बच्चों को 'हकला' बना दिया.
बचपन से ही डॉ. वेंडेल जॉनसन हकलाने की समस्या से ग्रसित थे. इस वजह से उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा था. 16 साल की उम्र में उनकी बिगड़ती हालत को देखकर उन्हें 'स्पीच' स्कूल भेजा गया, लेकिन वह ठीक नहीं हुएं. इसके बाद उनकी जिंदगी में इस 'बिमारी' ने एक खास जगह ले ली. उन्होंने इस समस्या से निजात पाने के लिए इसे ही अपना करियर बना लिया.
जॉनसन का ये मानना था कि 'हकलाना' कोई बिमारी नहीं होती और न ही यह किसी तरह का अनुवांशिक रोग है. यह एक मानसिक रोग है जिसका मुख्य कारण आत्मविश्वास की कमी होना है. अपनी इसी तर्क को सही साबित करने के लिए उन्होंने एक प्रयोग किया, जिसका नाम था 'मॉन्स्टर स्टडी'.
क्या था ये 'मॉन्स्टर स्टडी':
डॉ. जॉनसन ने इस प्रयोग के लिए अनाथ आश्रम में रहने वाले 22 बच्चों का इस्तेमाल किया. ये सभी बच्चे सिविल वॉर में मारे गए जवानों के थे. उस अनाथ आश्रम में करीब 600 से भी ज्यादा बच्चे रहते थे, जिसमें से जॉनसन ने 22 बच्चों को इस प्रयोग के लिए चुना था. इस प्रयोग की पूरी जिम्मेदारी जॉनसन ने अपनी असिसटेंट मैरी टूडोर को दे रखी थी.
इस प्रयोग के लिए उन सभी 22 बच्चों को ग्रुप में बांटा गया. जो बच्चे हकलाते थे उन्हें अलग रखा गया. हकलाने वाले बच्चों में से कुछ बच्चे ऐसे थे जिनके दिमाग में ये बात जबरदस्ती डाली गई थी कि उन्हें हकलाने की समस्या है. जो बच्चे बच गए थे, उन्हें किसी भी तरह की भी समस्या नहीं थी. इन सभी बच्चों को ग्रुप में बांटने के बाद करीब 45 मिनट तक उनसे बातचीत की जाती थी. जिसमें उनके दिमाग में जबरदस्ती ये बात डाली जाती थी कि उन्हें किसी तरह का 'स्पीच डिसॉर्डर' है. इसका असर ये हुआ कि जो बच्चे बिलकुल ठीक-ठाक थे वे सभी इस प्रयोग के बाद जिंदगीभर के लिए हकलाने लगे.

साल 1965 में डॉ. वेंडेल जॉनसन की हॉर्ट अटैक की वजह से मौत हो गई. उस वक्त वो स्पीच डिसॉ़र्डर पर एक किताब लिख रहे थे, जो पूरी नहीं हो पाई. उनकी मौत के बाद साल 2001 में लोवा की मीडिया ने खुलासा किया और यूनिवर्सिटी के खिलाफ केस दर्ज किया गया.
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बचपन से ही डॉ. वेंडेल जॉनसन हकलाने की समस्या से ग्रसित थे. इस वजह से उन्हें कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ा था. 16 साल की उम्र में उनकी बिगड़ती हालत को देखकर उन्हें 'स्पीच' स्कूल भेजा गया, लेकिन वह ठीक नहीं हुएं. इसके बाद उनकी जिंदगी में इस 'बिमारी' ने एक खास जगह ले ली. उन्होंने इस समस्या से निजात पाने के लिए इसे ही अपना करियर बना लिया.
जॉनसन का ये मानना था कि 'हकलाना' कोई बिमारी नहीं होती और न ही यह किसी तरह का अनुवांशिक रोग है. यह एक मानसिक रोग है जिसका मुख्य कारण आत्मविश्वास की कमी होना है. अपनी इसी तर्क को सही साबित करने के लिए उन्होंने एक प्रयोग किया, जिसका नाम था 'मॉन्स्टर स्टडी'.

मॉन्स्टर स्टडी
डॉ. जॉनसन ने इस प्रयोग के लिए अनाथ आश्रम में रहने वाले 22 बच्चों का इस्तेमाल किया. ये सभी बच्चे सिविल वॉर में मारे गए जवानों के थे. उस अनाथ आश्रम में करीब 600 से भी ज्यादा बच्चे रहते थे, जिसमें से जॉनसन ने 22 बच्चों को इस प्रयोग के लिए चुना था. इस प्रयोग की पूरी जिम्मेदारी जॉनसन ने अपनी असिसटेंट मैरी टूडोर को दे रखी थी.
इस प्रयोग के लिए उन सभी 22 बच्चों को ग्रुप में बांटा गया. जो बच्चे हकलाते थे उन्हें अलग रखा गया. हकलाने वाले बच्चों में से कुछ बच्चे ऐसे थे जिनके दिमाग में ये बात जबरदस्ती डाली गई थी कि उन्हें हकलाने की समस्या है. जो बच्चे बच गए थे, उन्हें किसी भी तरह की भी समस्या नहीं थी. इन सभी बच्चों को ग्रुप में बांटने के बाद करीब 45 मिनट तक उनसे बातचीत की जाती थी. जिसमें उनके दिमाग में जबरदस्ती ये बात डाली जाती थी कि उन्हें किसी तरह का 'स्पीच डिसॉर्डर' है. इसका असर ये हुआ कि जो बच्चे बिलकुल ठीक-ठाक थे वे सभी इस प्रयोग के बाद जिंदगीभर के लिए हकलाने लगे.

डॉ. वेंडेल जॉनसन
साल 1965 में डॉ. वेंडेल जॉनसन की हॉर्ट अटैक की वजह से मौत हो गई. उस वक्त वो स्पीच डिसॉ़र्डर पर एक किताब लिख रहे थे, जो पूरी नहीं हो पाई. उनकी मौत के बाद साल 2001 में लोवा की मीडिया ने खुलासा किया और यूनिवर्सिटी के खिलाफ केस दर्ज किया गया.
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