इंसान, चूहों और देवी की एक पहेली, जिससे बरसों से हैरत में हैं लोग!
आधी हकीकत आधा फसाना. पहले भाग में उस धाम की यात्रा जो महजत्र एक एक मंदिर नहीं है, एक खास समुदाय के लिए यहां जीवन से लेकर मृत्यु और मृत्यु से लेकर पुनर्जन्म का पूरा चक्र चलता है, वह भी चूहों के ज़रिये!
- News18Hindi
- Last Updated: January 25, 2019, 7:34 PM IST
आधी हकीकत आधा फसाना. इस बार एक हम ऐसे धाम की यात्रा करेंगे जो महज एक एक मंदिर नहीं है, एक खास समुदाय के लिए यहां जीवन से लेकर मृत्यु और मृत्यु से लेकर पुनर्जन्म का एक पूरा चक्र चलता है, जिसके वाहक चूहे हैं. चूहे इस धाम की देवी के संतान माने जाते हैं. यही वजह है कि इस धाम से जुड़े लोग चूहों को अपना वंशज मानते हैं. वहां इंसान और चूहों के बीच एक दैवीय रिश्ता है. चूहों की भरमार रहने के बावजूद उस जगह कोई बीमारी नहीं फैलती. लोगों के मुताबिक वो चूहे हैं ही नहीं, वो इंसान हैं, जो अपने अगले जन्म का इंतजार कर रहे हैं और सबसे बड़ा दावा वो सफेद चूहे जो देवी के रुप माने जाते हैं.
क्या इंसान और चूहे के बीच कोई दैवीय रिश्ता हो सकता है. अगर नहीं, तो उस धाम की हकीकत क्या है? क्या ये दावा सही है कि हजारों की संख्या में होने के बावजूद एक भी चूहा उस धाम से बाहर नहीं निकलता. क्या उस धाम में एक चमत्कारी दुनिया बसती है जिसकी डोर देवी की मूर्ति से बंधी है.
अपने सवालों का जवाब पाने के लिए हम अपने नए सफर पर रवाना हो गए. हमारी मंजिल थी दिल्ली से 500 किलोमीटर राजस्थान के बीकानेर शहर का करणी माता मंदिर. चारों तरफ रेत के पहाड़ और आसमान में धूल का गुब्बार है. धूल भरी हवा इतनी तेज कि कुछ देर भी खड़े रहना मुश्किल. अंदाजा लग गया होगा कि हम राजस्थान के रेगिस्तान में हैं. जयपुर से सवा चार सौ किलोमीटर बीकानेर से कुछ आगे हम निकले एक ऐसे मंदिर की तलाश में जिसे चूहों वाली माता का मंदिर कहा जाता है. कहते हैं वहां चूहे इंसान के दुश्मन नहीं दोस्त हैं. बीकानेर पहुंच कर हम उस अद्भुत धाम के लिए रवाना हुए जहां इंसान, चूहा और देवी की एक पहेली बरसों से लोगों को हैरत में डाले हुए है.
इस चमत्कार की डोर जुड़ती है करणी माता से. आखिर ये करणी माता कौन हैं और इस देवी को चूहों से जोड़ कर क्यों देखा जाता है. धाम पहुंचने से पहले इस कहानी को जानना बेहद जरुरी था. राजस्थान में करणी माता की लोकआस्था को देखते हुए करणी माता मंदिर के पास ही राजस्थान सरकार ने कऱणी माता का पैनोरमा तैयार किया. पैनोरमा में करणी माता की जीवन यात्रा के साथ जीवनकाल में किए चमात्कारों की कहानी को भी चित्रो के जरिए दिखाया.इस जगह पर करणी माता के जीवन और उनके चमत्कार से जुड़ी कहानियों को लोगों के सामने रखा गया है जिसके मुताबिक करणी माता को मां जगदंबा का अवतार माना जाता है जिनका जन्म राजस्थान में चारण समुदाय के एक सामान्य परिवार में हुआ था. कहते हैं करणी माता कई चमत्कारी शक्तियों की स्वामी थीं जिससे लोग उनकी पूजा करने लगे थे.वो अपने बहन के बेटों को अपने पुत्र के समान प्यार करती थीं. एक बार एक बेटे की पानी में डूबने से मौत हो गई. मां करणी ने यमराज से उस पुत्र का जीवन वापस मांगा. यमराज ने विवश होकर उसे चूहे के रुप में जीवित किया था.
तो क्या इसी वजह से उस मंदिर में पाए जाने वाले चूहों को करणी माता का पुत्र माना जाता हैं ? क्या इसीलिए चारण समुदाय के लोग आज भी उन्हें अपना वंशज मानकर उनकी देखभाल करते हैं ? इन पहेलियों को सुलझाते हम उस चमत्कारी धाम तक कब पहुंच गए, पता ही नहीं चला.
राजस्थान की आन बान शान की तरह ही ये मंदिर भी बेहद भव्य था. बाहर से देखने में एक किले की तरह नजर आ रहा था. बाहर काफी तादाद में भक्त नजर आ रहे थे. लेकिन एक बात खटक रही थी, हमें बाहर में एक भी चूहा नजर नहीं आया जबकि दावा किया जाता है कि मंदिर के अंदर करीब 20 हजार चूहे हैं. लेकिन हम जैसे ही धाम के अंदर पहुंचे हमारा सारा शक दूर हो गया. अंदर कोई 100 या 200 नहीं, बल्कि हजारों की तादाद में चूहे थे. फर्श पर, छतों पर, सीढ़ियों के नीचे, मंदिर के कोने-कोने में चूहों की भरमार थी. एक-एक कदम संभल कर रखना पड़ रहा था. डर था कि कहीं कोई पैरों के नीचे न दब जाए.
क्या इंसान और चूहे के बीच कोई दैवीय रिश्ता हो सकता है. अगर नहीं, तो उस धाम की हकीकत क्या है? क्या ये दावा सही है कि हजारों की संख्या में होने के बावजूद एक भी चूहा उस धाम से बाहर नहीं निकलता. क्या उस धाम में एक चमत्कारी दुनिया बसती है जिसकी डोर देवी की मूर्ति से बंधी है.
अपने सवालों का जवाब पाने के लिए हम अपने नए सफर पर रवाना हो गए. हमारी मंजिल थी दिल्ली से 500 किलोमीटर राजस्थान के बीकानेर शहर का करणी माता मंदिर. चारों तरफ रेत के पहाड़ और आसमान में धूल का गुब्बार है. धूल भरी हवा इतनी तेज कि कुछ देर भी खड़े रहना मुश्किल. अंदाजा लग गया होगा कि हम राजस्थान के रेगिस्तान में हैं. जयपुर से सवा चार सौ किलोमीटर बीकानेर से कुछ आगे हम निकले एक ऐसे मंदिर की तलाश में जिसे चूहों वाली माता का मंदिर कहा जाता है. कहते हैं वहां चूहे इंसान के दुश्मन नहीं दोस्त हैं. बीकानेर पहुंच कर हम उस अद्भुत धाम के लिए रवाना हुए जहां इंसान, चूहा और देवी की एक पहेली बरसों से लोगों को हैरत में डाले हुए है.
तो क्या इसी वजह से उस मंदिर में पाए जाने वाले चूहों को करणी माता का पुत्र माना जाता हैं ? क्या इसीलिए चारण समुदाय के लोग आज भी उन्हें अपना वंशज मानकर उनकी देखभाल करते हैं ? इन पहेलियों को सुलझाते हम उस चमत्कारी धाम तक कब पहुंच गए, पता ही नहीं चला.
राजस्थान की आन बान शान की तरह ही ये मंदिर भी बेहद भव्य था. बाहर से देखने में एक किले की तरह नजर आ रहा था. बाहर काफी तादाद में भक्त नजर आ रहे थे. लेकिन एक बात खटक रही थी, हमें बाहर में एक भी चूहा नजर नहीं आया जबकि दावा किया जाता है कि मंदिर के अंदर करीब 20 हजार चूहे हैं. लेकिन हम जैसे ही धाम के अंदर पहुंचे हमारा सारा शक दूर हो गया. अंदर कोई 100 या 200 नहीं, बल्कि हजारों की तादाद में चूहे थे. फर्श पर, छतों पर, सीढ़ियों के नीचे, मंदिर के कोने-कोने में चूहों की भरमार थी. एक-एक कदम संभल कर रखना पड़ रहा था. डर था कि कहीं कोई पैरों के नीचे न दब जाए.