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₹50 लाख की Fortuner बेचने पर कंपनी कमाती है सिर्फ ₹50 हजार, आखिर कहां जाता है बाकी पैसा?

फॉर्च्यूनर की कीमत ₹32.59 लाख से लेकर ₹50.34 लाख के बीच है. (Toyota)

फॉर्च्यूनर की कीमत ₹32.59 लाख से लेकर ₹50.34 लाख के बीच है. (Toyota)

आपको लगता होगा कि कंपनी महंगी कार इसलिए बनाती हैं, जिससे वे इस पर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा सकें, लेकिन देखा जाए तो ऐ ...अधिक पढ़ें

हाइलाइट्स

कंपनी एक एसयूवी बेचने पर सिर्फ करीब ₹50,000 कमाती है.
डीलरों को एक एसयूवी बेचने पर लगभग ₹1 लाख मिलते हैं.
सरकार को एसयूवी के लिए लगभग 18 लाख रुपये मिलते हैं.    

नई दिल्ली. टोयोटा फॉर्च्यूनर प्रीमियम टच के साथ भारत में सबसे ज्यादा बिकने वाली एसयूवी में से एक है. इसकी ₹32.59 लाख से लेकर ₹50.34 लाख के बीच है. आपको इसकी कीमत देखकर ऐसा लगता होगा कि कंपनी महंगी कार इसलिए बनाती हैं, जिससे वे इस पर ज्यादा से ज्यादा मुनाफा कमा सकें, लेकिन देखा जाए तो ऐसा नहीं है. कंपनियों को किसी कार पर इतना मुनाफा नहीं मिलता, जितना आमतौर पर माना जाता है. यहां आज आपको इसकी पूरी सच्चाई बता रहे हैं.

टोयोटा फॉर्च्यूनर का दावा है कि कंपनी एक एसयूवी बेचने पर सिर्फ करीब ₹50,000 कमाती है, जबकि डीलरों को एक एसयूवी बेचने पर लगभग ₹1 लाख मिलते हैं. दूसरी ओर कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया गया है कि सरकार को देश में बिकने वाली प्रत्येक टोयोटा फॉर्च्यूनर एसयूवी के लिए लगभग 18 लाख रुपये मिलते हैं.

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सबसे कम पैसा कमाती है कंपनी
बता दें कि कार के उत्पादन से लेकर बिक्री तक की प्रक्रिया को तीन अलग-अलग स्तरों जैसे मैन्युफैक्चरर, डीलर और सरकार का मुनाफा जुड़ा रहता है.  इन तीन हितधारकों में से निर्माता कार बेचकर सबसे कम कमाता है और सरकार सबसे बड़ा हिस्सा लेती है. एक डीलरशिप, जो निर्माता को उपभोक्ता से जोड़कर एक अभिन्न भूमिका निभाती है, प्रत्येक कार की कीमत पर लगभग 2.5-5 प्रतिशत कमीशन कमाती है.

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इस तरह सरकार कमाती है ज्यादा रुपये
कार पर लगने वाले कई तरह के टैक्स से आय का ज्यादातर हिस्सा राज्य और केंद्रीय दोनों स्तरों पर सरकार के पास जाता है. उदाहरण के लिए, जीएसटी दायरे के तहत एक वाहन पर दो अलग-अलग कॉम्पोनेंट्स के साथ टैक्स लगाया जाता है. टैक्स भार में 28 प्रतिशत जीएसटी और 22 प्रतिशत जीएसटी मुआवजा उपकर शामिल है. टोयोटा फॉर्च्यूनर के लिए यह राशि क्रमशः 5 लाख और 7 लाख रुपये से अधिक है. कार की ऑन-रोड कीमत में रजिस्ट्रेशन, रोड टैक्स, डीजल मॉडल के लिए ग्रीन सेस और फास्ट टैग जैसे घटक शामिल होते हैं. यह सारा पैसा सरकारी खजाने में जाता है.

लग्जरी कारों पर ज्यादा लगता है टैक्स
निर्माता का मार्जिन, डीलर का कमीशन और वाहनों पर सरकारी टैक्स वाहन के स्टिकर मूल्य और उसके सेगमेंट पर निर्भर करता है. इसके कारण लग्जरी कारों की बिक्री से कंपनियों के लिए अधिक मार्जिन और डीलरों के लिए अधिक कमीशन होता है, जबकि लग्जरी वाहनों पर टैक्स का भार भी काफी अधिक होता है.

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