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ये BS6.2 क्या है जिसकी वजह से कंपनियां कारों पर बंपर डिस्काउंट दे रहीं? खरीदने से पहले ये पढ़ लें

BS6 फेज़ 2 में एमिशन के नियम और सख्त होंगे.

BS6 फेज़ 2 में एमिशन के नियम और सख्त होंगे.

1 अप्रैल से BS6 गाड़ियों की बिक्री बंद हो जाएगी. BS6 फेज़ 2 कम्लायंट गाड़ियां ही बिकेंगी. नए नॉर्म में सबसे बड़ा बदलाव ...अधिक पढ़ें

हाइलाइट्स

1 अप्रैल के बाद BS6 गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन बंद हो जाएगा,केवल BS6 फेज़ 2 गाड़ियों का रजिस्ट्रेशन होगा.
कार कंपनियां भारी डिस्काउंट देकर BS6 गाड़ियों को निकालने की कोशिश में लगी हैं.
नए नियमों में गाड़ियों के धुएं की लैब के साथ-साथ सड़क पर भी जांच होगी.

नई दिल्ली. कार खरीदना चाहते हैं तो ये एक अच्छा समय है. इस तरह की हेडलाइंस आपने पिछले कुछ दिनों में ज़रूर पढ़ी होगी. कंपनियां अपनी कारों पर भारी डिस्काउंट दे रही हैं. ये डिस्काउंट 10 हाज़ार से शुरू होकर 90 हज़ार तक जा रहे हैं. ये इतनी छूट मिल रही है क्योंकि 1 अप्रैल से भारत में केवल BS6 फेज़ 2 गाड़ियां ही बिक सकेंगी. अब तक भारत में BS6 एमिशन नॉर्म्स को फॉलो करने वाली गाड़ियां बिक रही थीं. 1 अप्रैल, 2020 को भारत में BS6 पूरी तरह लागू हुआ था. तीन साल बाद यानी 1 अप्रैल, 2023 को भारत में BS6 फेज़ 2. इन दोनों में फर्क क्या है? और नए नॉर्म्स लागू होने का कार इंडस्ट्री पर क्या फर्क पड़ेगा. इस आर्टिकल में हम यही समझेंगे.

ये BS4, BS6, BS6 फेज़ 2 पर असल में हैं क्या?
जब कोई गाड़ी चलती है तो उसमें तेल जलता है. तेल जलता है तो गाड़ी के साइलेंसर यानी टेल पाइप से धुआं निकलता है. इस धुएं में कार्बन के साथ-साथ पर्यावरण को नुकसान पहुंचाने वाले पार्टिकल्स होते हैं. ये धुआं वायु प्रदूषण के बड़े कारणों में से एक है. इस वजह से सड़कों पर चलने वाली गाड़ियों के धुएं को मॉनिटर करना ज़रूरी है. इसी मॉनिटरिंग के लिए बनते हैं नॉर्म्स माने नियम कानून.

भारत में एमिशन को लेकर पहली बार साल 2000 में नॉर्म्स लागू हुए. ये नॉर्म्स कहलाए इंडिया 2000. इसके बाद 2005 में बीएस 2 यानी भारत स्टेज 2 नॉर्म्स लागू हुए. 2010 में BS3 और फिर 2017 में BS4 नॉर्म्स लागू हुए. इसके तीन साल बाद BS6 नॉर्म्स का फेज़ 1 जिसे आमतौर पर BS6 ही कहा जाता है. अब BS6 फेज़ 2 नॉर्म्स लागू होने जा रहे हैं, जो कि BS6 नॉर्म्स में ही अपडेट हैं. तो बीएस6 फेज़ 2 को समझने के लिए BS6 को जानना ज़रूरी होगा.

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BS6 नॉर्म्स के तहत, गाड़ियों से निकलने वाले धुएं में प्रदूषण फैलाने वाले कारकों की अधिकतम सीमा तय कर दी गई है. पॉल्यूटेंट्स यानी कार्बन मोनो ऑक्साइड, हाइड्रोकार्बन, नाइट्रोजन ऑक्साइड, PM10 और PM2.5. अगर गाड़ी के धुएं में ये कारक तय सीमा से ज्यादा पाए जाते हैं तो गाड़ी अनफिट मानी जाएगी. BS4 की तुलना में पॉल्यूटेंट्स एमिशन की अधिकतम सीमा BS6 में बहुत कम है. उदाहरण के लिए डीज़ल वाली गाड़ियों में नाइट्रोजन ऑक्साइड की लिमिट BS6 में BS4 की तुलना में 70 प्रतिशत तक कम है.

BS6

BS6 फेज़ 2 में गाड़ियों के पास रियल ड्राइविंग एमिशन सर्टिफिकेट होना ज़रूरी है.

BS6 फेज़ 2 में क्या है?
BS6 फेज़ 2 में रियल ड्राइविंग एमिशन नॉर्म लागू किया गया है.जब एक इंजन तैयार होता है तो पहले लैब में टेस्ट किया जाता है कि वो एमिशन से स्टैंडर्ड पर खरा उतरता है या नहीं. ये अब तक होता आया है. पर लैब की कंडीशंस आइडियल होती हैं. रियल लाइफ कंडीशन में कई और फैक्टर्स इनवॉल्व हो जाते हैं. BS6 फेज़ 2 में रियल ड्राइविंग एमिशन यानी RDE लागू होगा. माने गाड़ियों को सड़क पर चलते हुए, रियल लाइफ कंडीशन में भी एमिशन के कायदों पर खरा उतरना होगा.

गाड़ियों की RDE टेस्टिंग सड़कों पर होगी. इस टेस्ट में देखा जाएगा कि गाड़ी के धुएं में पॉल्यूटेंट्स तय सीमा से ज्यादा तो नहीं निकल रहे. नई गाड़ियों को सड़क पर उतरने के लिए RDE सर्टिफिकेशन लेना ज़रूरी होगा. इसके साथ ही गाड़ियों को पोर्टेबल एमिशन मेजरमेंट सिस्टम से लैस किया जाएगा, ताकि गाड़ियों से निकलने वाले धुएं की जांच रियल टाइम में होती रहे.

एमिशन के नियम बदलने पर क्या कीमतें भी बदलती हैं?
BS4 से BS6 में शिफ्ट होने के लिए कार निर्माता कंपनियों को अपने इंजन और गाड़ियों के बेसिक फीचर्स में कुछ ज़रूरी बदलाव करने पड़े थे. गाड़ियों में एडवांस्ड इंजन टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया गया. इसके साथ ही गाड़ियों के एग्जॉस्ट सिस्टम में ऐसे फीचर्स डाले गए जिसमें एग्जॉस्ट पाइप से निकलने से पहले ही धुआं फिल्टरिंग के एक प्रोसेस से गुज़रता है. ताकि कम से कम पॉल्यूटेंट पर्यावरण में जाएं. इसके साथ ही कंपनियों को फ्यूल एफिशिएंट इंजन बनाने पड़े यानी ऐसे इंजन जिनमें तेल कम जलें और कम पॉल्यूटेंट बाहर निकलें.

पर RDE टेस्टिंग में खरा उतरने के लिए गाड़ी निर्माताओं के लिए ज़रूरी है कि गाड़ियों के इंजन ज्यादा एडवांस्ड बनें. RDE टेस्टिंग लैब टेस्टिंग की तुलना में ज्यादा पेचीदा और महंगा प्रोसेस है. इसके लिए निर्माताओं को महंगी तकनीक का इस्तेमाल करना होगा, अपने इंजनों को रीडिज़ाइन करना होगा.

BS6

बीएस 6 फेज़ 2 कम्प्लायंट गाड़ियां BS6 की तुलना में महंगी होंगी.

जब भी एक पहले से चल रहे सिस्टम में अपग्रेड, रीडिज़ाइन और बदलाव की बात आती है, तो उसमें मेहनत और इनोवेशन के साथ पैसा भी लगता है. कंपनियां रिसर्च एंड डेवलपमेंट में जितना खर्चा करती हैं, उतना ही ग्राहकों से वसूलती हैं. यानी कीमतों का बदलना तय है. Carwale डॉट कॉम की एक रिपोर्ट के मुताबिक, BS6.2 के लागू होने के बाद हो सकता है कि कई कंपनियां अपने पोर्ट फोलियो से पुराने मॉडल्स को बाहर कर दें. रिपोर्ट के मुताबिक, कारों की कीमतों में 10 हज़ार से 50 हज़ार रुपये तक की बढ़ोतरी हो सकती है.

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जिनके पास BS6, BS4 गाड़ियां हैं उनका क्या?
अब एक ज़रूरी सवाल खड़ा होता है कि जिन लोगों के पास पुराने नियमों के तहत बनी गाड़ियां हैं उनका क्या होगा? क्या उनकी गाड़ियां डिसकंटीन्यू हो जाएंगी? या फिर क्या उन गाड़ियों को दोबारा बेचा नहीं जा सकेगा? एक-एक करके जवाब देखते हैं. सरकार और पॉलिसी मेकर्स समझते हैं कि एक बड़े तबके के लिए गाड़ियां बड़ा इनवेस्टमेंट होती हैं. फिर चाहे वो स्कूटर हों या हाई एंड कार. ऐसे में एक नियम के आते ही पुरानी गाड़ियों को स्क्रैप नहीं किया जा सकता है. सरकार ने पेट्रोल से चलने वाली गाड़ियों की उम्र 15 साल और डीज़ल से चलने वाली गाड़ियों की उम्र 10 साल तय की है. इसके बाद आपको अपनी गाड़ी को दोबारा रजिस्टर कराना होगा, ये रजिसक्ट्रेशन 5 साल के लिए वैलिड होगा. इसके बाद गाड़ियों को हर पांच साल में फिटनेस टेस्ट से गुज़रना होगा. टेस्ट में फेल होने पर गाड़ी को कबाड़ा घोषित कर दिया जाएगा, और पास होने पर आप उसे चलाते रह सकते हैं. हालांकि, दिल्ली के लिए नियम थोड़े अलग हैं. यहां तय उम्र के बाद गाड़ियों को सीधे स्क्रैप कर दिया जाएगा. सड़कों पर तय उम्र से ज्यादा की गाड़ियां दिखने पर ड्राइवर पर 10 हज़ार तक का जुर्माना लगाया जा सकता है.

गाड़ियों की उम्र के हिसाब से देखा जाए तो अभी सड़कों पर कई ऐसी गाड़ियां भी चल रही हैं जो BS3 कम्लायंट हैं. बस आपको हर साल अपनी गाड़ी का पॉल्यूशन टेस्ट कराना पड़ता है, इसका सर्टिफिकेट आपको दिया जाता है. ताकि ये सुनिश्चित किया जा सके कि आपकी गाड़ी तय लिमिट से ज्यादा प्रदूषण नहीं फैला रही है.

दूसरा सवाल है गाड़ियों की रीसेल का.एक गाड़ी जितनी पुरानी होती जाती है और जितनी ज्यादा चलती जाती है, उसकी रीसेल वैल्यू उतनी कम होती जाती है. इसके साथ ही नए नॉर्म्स के आने के बाद पुराने नॉर्म्स के हिसाब से चलने वाली गाड़ियों की रीसेल वैल्यू थोड़ी कम हो जाती है. पर इतनी कम नहीं होती कि बेचा ही न जा सके.

एमिशन के नॉर्म्स इसीलिए लागू किए जाते हैं कि गाड़ियों से निकलने वाले धुएं के प्रदूषण को कम किया जा सके. ताकि हवा की क्वालिटी में सुधार आए और ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेट चेंज के खतरों से बचा जा सके. इन खतरों से निपटने के लिए तमाम देश अपने कार्बन एमिशन को नेट 0 करने की दिशा में काम कर रहे हैं. यूनाइटेड नेशंस का लक्ष्य है कि कार्बन एमिशन को 2050 तक नेट ज़ीरो किया जा सके.

Tags: Air pollution

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