पूर्वांचल में बनारस के अलावा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापार करे वाला केहु जिला हौ तो ऊ हौ भदोही. बनारस अपने सिल्क के साड़ी खातिर दुनिया में मशहूर भइल त भदोही अपने कालीन के बेजोड़ कारीगरी खातिर. भदोही के एही कालीन विश्व स्तर पर पहचान दिलइले हौ. चाहे घर हो चाहे होटल, आफिस हो या कउनो अउर संस्थान, कालीन के दीवानगी हर कहूं दिख जाई. जमीन पर बिछल कालीन कमरा के सान त बढ़इते हौ, रहन-सहन में इंसान के स्तरौ के बतावेला. जेकरा घरे कालीन बिछल हौ, त ओके बडमनई मानल जाला. कालीन के ई रुआब केवल एही देस में नाहीं, पूरी दुनिया में देखल जा सकेला. हालांकि घरेलू बाजार में कालीन के खरीदार भले ओतनी संख्या में ना मिललें लेकिन बिदेसन में एकर भारी डिमांड हौ.
अब त भदोही के कालीन व्यापार के रफ्तार तेज हो जाई काहेकि अब भदोही में कालीन एक्सपो मार्ट बन गइल हौ. अब देस बिदेस के कालीन खरीदार ई एक्सपो मार्ट में एके छत के नीचे व्यापार कई सकेलें. 7.50 एकड़ जमीन पर बनल एक्सपो मार्ट में 3 मंजिला इमारत में 94 दुकान हौ. ई एक्सपो मार्ट में साल मे दू अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी अउर 6 घरेलू प्रदर्शनी क आयोजन होई. एक्सपो मार्ट बने से भदोही अउर मिर्जापुर के 6 सौ से अधिक बुनकरन अउर निर्यातकन के लाभ होई. अंतर्राष्ट्रीय प्रदर्शनी में थोड़ा विलंब हो सकेला काहेकि प्रदर्शनी में करीब 60 देसन के कालीन खरीदारन के बुलावल जाइ, त कुछ अधिक समय लगबे करी. उम्मीद हौ कि अक्टूबर से इहां प्रदर्शनी लगे शूरू हो जाई.
हालांकि दुनिया में कालीन उद्योग के इतिहास करीब 5 हजार साल पुराना हौ. मिस्र के लोग कालीन के कुसल कारीगर रहलें. मिस्र से कालीन के कला फारस पहुंचल जहां एकर विकास रुक गइल. फारस से कालीन बनावे के हुनर मुगलन के साथ भारत आइल. मुगलकाल में पहिले कालीन के काम कश्मीर में शुरू भइले के बाद में उत्तर प्रदेश, राजस्थान अउर पंजाब पहुंचल. भदोही के कालीन उद्योग के लिखित साक्ष्य 16वीं सदी के हौ, जहां आइन-ए-अकबरी में कालीन के बारे में जानकारी लिखल बा. 1580 ई. में मुगल बादशाह अकबर फारस से कालीन के कुछ कारीगरन के दरबार में बुलउले रहलन. ओनके कला से प्रभावित हो के बादशाह आगरा, दिल्ली अउर लाहौर में कालीन बनवले खातिर प्रशिक्षण केंद्र खुलवउलें. आगरा के बाद बुनकरन के दल जब जीटी रोड के रास्ते बंगाल जात रहल, त आराम करे खातिर घोसिया माधोसिंह में रुक गइल. बाद में बुनकरन के स्थानीय प्रशासन सुविधा दिहलें अउर ओकरा बाद में भदोही में कालीन के व्यापार रफ्तार पकड़ लिहलेस. बाद में ईस्ट इंडिया कंपनी के देखरेख में अंग्रेज कालीन उद्योग के आगे बढ़वलन.
मौजूदा समय में अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में कालीन के 6 प्रमुख उत्पादक देस हवन ईरान, चीन, भारत, पाकिस्तान, नेपाल और तुर्की. जबकि गांठ वाले कालीन के 90 प्रतिशत निर्यात ईरान, चीन, भारत अउर नेपाल से होला. करीब 95 फीसदी कालीन के निर्यात यूरोप अउर अमेरिका में होला. अऊर विदेसी बाजार में भदोही के कालीन के कउनों सानी नाहीं. मजे के बात ई हौ कि इहां कालीन के कच्चा माल पैदा ना होला, इहां खाली बेहतर कारीगर उपलब्ध होलन. भदोही के कार्पेट के कारोबार सालाना करीब 600 करोड़ रुपया के होला, एहमे पर्शियन कार्पेट के कारोबार करीब 80 करोड़ के होला. पर्शियन कार्पेट के डिमांड काफी रहेला. कुल कालीन के डिमांड के करीब 6 फीसदी हिस्सा पर्शियन कार्पेट के रहेला. 10 x 12 फीट के कार्पेट बनावे में 3-4 महीना लागेला. ई कालीन गांठ पर बनेला. जेतना गझिन गांठ होई, काली उतने महंगा अउर टिकाऊ होई. पर्शियन कालीन के एक स्क्वायर इंच में 128 बारीक गांठ होलीं. लेकिन ई कालीन के बनावे वाले कारीगर अब कम देखालन.
भारत में कालीन उद्योग लावे खातिर जवनी तरह मुगल बादशाह अकबर के नाम इतिहास में दर्ज हौ, ओही तरह भदोही में कालीन व्यापार के बढ़ावे खातिर हाजी जलील अहमद अंसारी का नाम लिहल जाला. हाजी के अथक प्रयास से इहां एक्स्पो मार्ट के आकार मिलल हौ. 40 साल से हाजी के सपना रहल की उत्तर प्रदेश के भदोही जिला में एक्सपो मार्ट बनेके चाहीं. भारत में 1980 में दिल्ली के प्रगति मैदान में कालीन मेला लगल लेकिन विदेसी खरीदार ना अइलन. बाद में अंसारी 20 लोगन के साथ मिलि कै खुदै ट्रेड फेयर कमेटी के गठन कइलन. दिल्ली के ताज होटल में दू साल कालीन मेला लगल लेकिन विदेसी खरीदार के कमी बनल रहल. बाद में धीरे धीरे खरीदार आवे लगलें. फिर दिल्ली के प्रगति मैदान में सरकार बड़े पैमाना पर मेला लगउलेस, ऊ काफी सफल भइल. लेकिन अंसारी के इच्छा रहल कि अइसन मेला भदोही में लागे के चाहीं. अब अंसारी के सपना पूरा होता. अक्टूबर में भदोही में बड़ा कालीन मेला लागी. भारत के कालीन निर्यात 1960 में 436 करोड रुपए रहल, ऊ अब 2020 में 10,000 करोड़ रुपए से बेसी हो गइल हौ. माना जाता कि भदोही में अंतर्राष्ट्रीय कालीन मेला लगले के बाद एकरे व्यापार में अउर तेजी आई अउर भदोही के कालीन फिर से दुनिया में अपनी खूबसूरती के कारण छा जाई. (लेखक करुणेश त्रिपाठी वरिष्ठ पत्रकार हैं.)
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