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दो चढ़ि गइल बा…भादो के महीना के भोजपुरिया समाज बाढ़ि, लगातार होखे वाला बारिश खातिर यादि करेला..एकर वजहि ई बा कि एही महीना में हथिया नछतर आवेले…जवना के बारे में कहल जाला कि ओह में हाथी नियर बरखा होला..जवना से जीयल मुसकिल हो जाला..बचपन में मइया बतावत रहली कि हथिया नछतर के तेयारी काफी पहिले से होत रहे..तब आजु नियर गैस के चूल्हा ना होत रहे..बिजुली भी ना रहे..त पूरा नछतर खातिर तीन पिसान, सतुआ आ लकड़ी-गोइंठा धई दियात रहे…काहे कि जब हथिया बरसे लागत रहे त ओकर धार रूकते ना रहे..
भादो के महीना श्रीकृष्ण आ गणेश जी खातिर भी जानल जाला. एही महीना के अष्टमी के दिने माखनचोर नंदकिशोर मथुरा के कारागार में जनमल रहले..एकरा अलावे एह महीना के अन्हरिया के गणेश चतुर्थी के बहुते सरद्धा से मनावल जाला. एही महीना में दुलरूआ व्रत अनंत भी आवेला..जवना के अनंत चतुर्थी कहल जाला…
बाकिर भोजपुरिया समाज में भादो के लेके किसिम-किसिम के कहाउतियो बाड़ी स…एह में सबसे पहिले नाम
आवेला घाघ के कहाउति के,
घाघ कहले बाड़े,
भादों की छठ चांदनी, जो अनुराधा होय.
ऊबड़ खाबड़ बोय दे, अन्न घनेरा होय.
यानी घाघ कहले बाड़े कि यदि भादो के छठ के तिथि के दिने अनुराधा नक्षत्र परे त ऊबड़ो-खाबड़ जमीन में ओह दिन अनाज बो द त बहुते पैदावार होले.
घाघे के भादो के लेके एगो आउर कहाउति बा.
कुलिहर भदई बोओ यार.
तब चिउरा की होय बहार.
यानी कुलिहर माने पूस-माघ में जोतल खेत में भादों में पाके वाला धान बोआई त चिउरा के बहार आवे ला..कहे के मतलब ई कि धान के खूब उपज होला. कुछु इलाकन में कुलिहर के पलिहर भी कहल जाला. भोजपुरी के एगो बाड़ा मशहूर कहाउति बा, पलिहर के बानर.माने अइसन आदमी, जवन बेअंदाज होखे, आ बेमतलब दउरत-फानत रहे.
खैर, भादो महीना में आवे वाला हथिया नछतर के संस्कृतनिष्ठ नाम हस्त ह. ओह से जुड़ल एगो आउर कहाउति देखीं,
हस्त बरस चित्रा मंडराय.
घर बैठे किसान सुख पाय.
यानी यदि हथिया में खूब बरखा बरसे आ चित्रा नछतर में आसमान में बादल छवले रहे तक किसान के बहुते सुख मिलेला. माने खूबे अनाज होला. इहवां ई जाने के चाहीं कि चित्रा नछतर के दिनवन में घाम बहुते तीखा होला.
भादो से जुड़ हथिया नछतर के लेके एगो आउर भोजपुरी कहाउति देखीं.
हथिया पोछि डोलावै.
घर बैठे गेहूं पावै.
माने यदि हथिया नछतर में तनिकियो बरखा होखे, त गहूं के पैदावार खूब होला.
भादो के लेके अगिला कहाउति पर नजर डालीं,
सावन में पुरवैया, भादों में पछयाव.
हरवारे हर छाड़िके लइका जाय जियाव.
कहे के मतलब बा कि सावन में पुरूब के ओर से पुरवाई हवा बहे आ भादो में पछुआ बहे त अकाल परे के आशंका रहेला. तब किसान लोगन के हर-फरूहा छोड़ि के बाल-बाच्चा पाले खातिर कवनो दोसर काम देखे के चाहीं.
ई त भइल मौसम से जुड़ल कहाउतिन के बा. अब देखीं सेहत से जुड़ल कहाउति देखीं. आ ओह में कइसन चिंता
जतावल गइल बा, उहो देखीं,
माघ के टूटल मरद अउरी भादो के टूटल बरध कबो नाहीं जुटेले.
मतलब कि माघ महीने में जवन मरद बेमारी-हारी के चलति टूटि जाला, आ ओही तरी अगर भादो में कवनो बरध यानी बैल टूटि जाला त ऊ कबो ना उठि पावेला. मतलब ओकर सेहति लवटे के संभावना कमे रहि जाला.
सेहत से जुड़ल एगो आउर कहाउति बा, जवना में सावन-भादो के बात कहलि गइल बा आ ओकरा के लेके चेतावनी
दिहलि गइल बा. ई कहावत बा,
सावन साग ना भादो दही.
क्आर करइला ना कातिक मही.
माने सावन में साग ना खाए के चाहीं, एही तरी भादो में दही से बचे के चाहीं.ओही तरी कुआर में करइला से परहेज रखे के चाहीं आ कातिक में माठा ना खाए के चाहीं.
अब तक बिजुली के चमक बा. बाकिर पहिले जब बिजली ना रहे त भादो के राति बहुते भयानक होत रहे. भादो के अन्हरिया के भोजपुरी लोकगीतन में बहुते जिकिर भइल बा. भादो के अन्हरिया के जिनिगी के कमजोरी के रूप में भी देखल गइल बा आ जगहि-जगहि एकर तुलना कइल गइल बा..
भादो के चर्चा भलुके खराब ढंग से भइल होखे, बाकिर ई तय बा कि एह महीना के जवना धाराधार बरखा से लोग डेराला, अगर ऊ ना होखे त सृष्टि के प्रमुख भोजन धान के पैदावारे ना होई. भादो के हमनी के एह खातिर महत्वपूर्ण माने के चाहीं.
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