भोजपुरी विशेष : जेंवत देहिं मधुर धुनि गारी-ई गारी प्रेम पियारी जी !
भोजपुरी विशेष : जेंवत देहिं मधुर धुनि गारी-ई गारी प्रेम पियारी जी !
भोजपुरी इलाका के शादी बिआह में हास परिहास के परंपरा में गारी भी ह.
भोजपुरी के जोड़े वाली मधुरता नियर ही भोजपुरिया इलाका में रश्म रेवाज भी जोड़े वाला आ प्रेम से परिपूर्ण बाने स. बिआह के समय जब दुल्हा आ दुल्हा के रिश्तेदार खाए जाला लो त मंडप जवना के मांडो कहल जाला उहां कन्या पक्ष के औरत लोग गारी गावेला. रामचरित मानस में भी इ परंपरा के उदारहण मिलेला.
माड़ो में दुलहा का संगें पंगत में बइठल बरियात. थरिया आ पत्तल में परोसाइल किसिम-किसिम के व्यंजन. बाकिर केहू खाए के नांवें नइखे लेत.
'का बात बा, भाई साहेब! रउआ सभ भोजन काहें नइखीं करत?'
'भोजन का कइल जाउ, खाक, जब गारी गवाते नइखे!'
'गारी-वारी का गवाउ! ई त प्रेमभाव पर रुचिरा, बाकिर रउआ सभ अब ले किछु छोड़ले बानीं, जे-सांझहीं से थुक्का-फजीहत-'
सांच सोगहगे सोझा आ जात बा. दरअसल बरतिहा लोग दारू पी-पीके खूब ऊधम मचवले रहे आ लरिकीवालन का संगें बहुते बदतमीज़ी कइले रहे. ई त ओह लोग के बड़प्पन रहे, जे मए अनेति बरदास करत अइलन. दहेजो के लेके तू-तू-मैं-मैं भइल रहे.आखिरकार समधी के अपना गलती के भान भइल आ ऊ हाथ जोड़िके माफी मंगलन. तब जाके ममिला रफा-दफा भइल.तुरुंते इशारा होत कहीं कि ढोलत प थाप परते नारी-सुर फूटि परल-
दाल-भात, मैदा के रोटी
परवल के तरकारी जी,
जेवहिं बइठेले किसन कन्हैया
देत सखिन सब गारी जी,
तोहरा के गारी,तोहरा माई के गारी
नंद बाबाजी के गारी जी!
भगवान किसुन जी के प्रसंग
मेहरारू लोग किसुन जी के प्रसंग से शुरुआत कइले बा गारी गावे के. उन्हुका के आउर उन्हुका माई-बाप के खूब गारी दियाइल रहे ससुरारी में, बाकिर ऊ त पटुका पसारिके लेले रहलन आ कहलहूं रहलन कि ई गारी कनिया पच्छ का ओरि से मिलल नेह-छोह के थाती ह-
दीं ना सखी सब हमरा के गारी
हम लेबों पटुका पसारी जी,
अइसन गारी के गारी न कहियो
ई गारी प्रेम पियारी जी!
खाली अतने ना,ससुरारी से वापिस लवटिके कन्हैया माता जसोदा से सासु आउर ससुरारी के बड़ाई के अइसन पुल बन्हलन कि माई के अचंभा होखे लागल. ऊ बेटा के पलली-पोसली,बाकिर आजु ले ऊ कबो उन्हुकर तारीफ ना कइलन आ एके रात ससुरारी में रहला का बाद सासु के अइसन बड़ाई!
नवहिं मास क्रिस्न एही कोखी रहले
कबहूं ना कइले बड़ाई जी,
एकहिं रात क्रिस्न गइले ससुरारी
सासु के अतना बड़ाई जी!
ससुरारी खातिर अनन्य अनुराग के अइसने झलक संस्कृत काव्यो में लउकेला-
जेंवत देहिं मधुर धुनि गारी
गारी गावे के ई परंपरा कवनो नया ना ह. जनकपुर के मेहरारुओ अजोधा के मरद-मेहरारू के नांव ले-लेके राम-सीता के बियाह में जमिके गारी देले रहली.गोसाईं तुलसी बाबा लिखले बाड़न-
छव रस रुचिर बिंजन बहु जाती
एक-एक रस अनगिन भांती.
जेंवत देहिं मधुर धुनि गारी,
ले-ले नाम पुरुष अरु नारी.
गोसाईं जी कई जगहा प गारी देबेवाला प्रसंग के सरस चित्र उकेरले बाड़न.
'समय सुहावनि गारि बिराजा' पांतियो में ई मुखर भइल बा. राम-क्रिस्न के पौराणिक बात के चरचा करत गारी गावेवाली कनिया पच्छ के औरत दुलहा का संगहीं उन्हुका परिवार के, एक-एक कऽके तमाम बरियतिहा लोग के नांव ले-लेके गारी गावत बाड़ी.मवेशियनो के मार्फत माहौल के रसगर बनावल जात बा-
अब कहवां के गइया चरन आवे
अब कहवां के उमड़ल सांड़?
गगरिया घीव ढरके-
अब गइया के बन्हबों बबूर गांछी
अब सांड़वा के देबों टिटकारि
गगरिया घीव ढरके-
किसिम-किसिम के गारी
अलगा-अलगा रसम में गवाएवाली गारियो, किसिम-किसिम के होली स. लरिकन के जनम के मोका प सोहर आउर झूमर में गवाएवाली गारी. छठियार में जनमतुआ के माई-बाप, ननिआउर खातिर गवाएवाली गारी. तिलक में वर पच्छ का ओरि से कनिया पच्छ के दिहल जाए वाली गारी.
बियाह का दिने दुआरपूजा,गुरहत्थी,कनियादान आउर जेवनार के मोका प गावलजाएवाली गारी. किसिम-किसिम के मजेदार गारी.गारी आ गारी.
माड़ो से जेवनार ले
दुलहा जइसहीं माड़ो में बइठत बा,चुहलबाजी करत लरिकी-मेहरारू ओकरा के गारी के बौछार से सराबोर कऽ देत बाड़ी स.वर के अंग-प्रत्यंग के अधूरा बतावत ओकरा माई-बहिन के संबंध पनवाड़ी,हज्जाम, माली, धोबी, मोची से जोड़ल जाला-
मुंह तोरे देखों रे वर, पनवो नाहीं,
माई तोर पनवरिया-बहू
साथ काहें ना लायो रे वर,आजु के रात?
गोड़ तोरे निरेखों रे वर, पनही नाहीं,
बहिना तोरी चमरवा-बहू
साथ काहें ना लायो रे वर आजु के रात?
गुरहत्थी के रसम में वर के बड़ भाई कनिया के गहना-गुरिया भेंट करेला.गीतगवनी देह के तमाम कमी-कमजोरी के भसुर का संगें जोड़िके ओकरा के लूल, लंगड़,काना बनावे से बाज ना आवेली स.
बीछि-बीछिके गारी गवाला.एक से बढ़िके एक धराऊं गारी. श्लील आ अश्लील के कवनो भेद ना. सवालो-जवाब खूब होला एह गीतन में.
केकरा आंगन में जेवनार बनल बा आ के
भोज खाए आ पहुंचल बा!
केकरा अंगना जेवनार बनतु है,
कवन भड़ुआ जेवन आयो
हाय सियाराम के भजो!
किया रउआ जेईं समधी
पीपरा के पतवा हे
किया रे हारींले आपन बहिना
हाय सियाराम के भजो!
प्यार लुटावे के नायाब तरीका
का समां बन्हाइल रहेला ओह घरी!गारी गावेवाली एकसुरिए गारी देत जाली स आ सुननिहार मंत्रमुग्ध भाव से सुनत जालन.
संगें-संगें अपना अउर हीत-नात के नांव बतावत जालन, जवना से कि उहो लोग ऊ प्रसाद पावे से वंचित ना रहि जासु. तबे नू जब किसन कन्हैया जब ससुरारी से लवटिके गीत गवनिहारिन के चरचा करत बाड़न, त उन्हुकर महतारी अशीषत अभिभूत होके कहत बाड़ी-
अइसना माहौल में, जहवां आपन-पराया के कवनो भेद नइखे, बेटो-बेटी, महतारी-बाप- सभे मौजूद बा, हितई-नतई के मए हुजूम उमड़ल बा,गीत गवनीलोग बिना कवन अहस के गीत गावत गरिया रहल बा. दुलहा, समधी, समधिन के गारी. बरियतिहा लोगन के गारी.नाऊ-कंहारन के गारी. नचनिया-बजनियन के गारी. गारी गावे वालिन के गारी सुनेवालन का ओरि से नेगो देबे के परिपाटी बा. कतहीं-कतहीं त गारी गावे के बेवसायो होला. रउआ मुंह मांगल रकम देके बोलवनीं आ ऊ मेहरारुन के मंडली ढोलक वगैरह लेके गारी गावे खातिर हाजिर!गारी सुनीं, मन में गुनींआ समुझि-समुझिके अरथ लगाईं. दरअसल एकरा के गारी कहां मानल जाला! ई त बेइंतिहा प्यार लुटावे के नायाब तरीका ह. इहवां नेह-छोह लुटावल जा रहल बा. रउओं मन भर लूटीं!