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भोजपुरी में पढ़ें: मॉरिशस क भोजपुरी

जब हम बता भयिलीं त बनारस क नाम सुनते भोजपुरी में बतियावे लगलन.

जब हम बता भयिलीं त बनारस क नाम सुनते भोजपुरी में बतियावे लगलन.

भारत के अलावा मारीशस, त्रिनिडाड, सूरीनाम अउर गयाना में भी भोजपुरी खूब बोलल जाला, लेकिन मारिशस के भोजपुरी के मिठास लेखक ...अधिक पढ़ें

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साल 2017 में भारत से पांच हजार किलोमीटर दूर मॉरिशस जाए क मोका मिलल. उहां गईले की बाद ना लागत रहे कि हम विदेश में बानी. एकर सबसे बड़हर कारण भोजपुरी रहे. एक जाने हमसे हिंदी में परिचय पूछलन. जब हम बता भयिलीं त बनारस क नाम सुनते भोजपुरी में बतियावे लगलन. फिर आप समझ सकी लां की केतना नीमन लागल होई. बातचीत हो गईल. सांझी बेला अपनी काम से खाली होके उनकरा घरे गईलीं. पूरा परिवार भोजपुरी में बतियावत रहे. बीच-बीच में कुछ अवधी क शब्द छवका क काम करत रहे. इ मेरहन भाव हमरे गाँवे-घरे में बियाह के समय में देखेके मिलेला जब बहिन बेटी, नातेदारी क लोग अलग-अलग जगह से आवेला.

अइसहीं गलचउरन खाये क बेला हो गईल. घाठी क मकूनी आउर धनिया क चटनी खाएके मिलल. सबसे बढ़िया लागल तब जब खाना देवे वाली एगो लईकी एक बार देके के किनारे सुहरावे वाला फोन लेके बईठ गईल. लेकिन लईकी की दादी फूला (फूला क दादा 1834 में जवनपुर (जौनपुर) से मॉरिशस गईल रहलन) अपनी नतिनी के डांटे लगलीं, ‘असहीं पहुना खियावल जाला. तोहन लोगन की राज में कवनो लजाधुर अदमी रही त आधा पेट खाके चल जाई.’ फिर हमरी ओरा देख के कहलीं, ‘ये भईया! लजइहा मत. मांग के खा लिहा. आजकल क लईका-लईकी दिन भर मोबाईल में लागल रहत बाड़न जा. पता न कवन सोना-चानी ओकरा में मिलता बा.’ दादी क बात सुनके लागल की एहिसे मॉरिशस के ‘छोटहन भारत’ कहल जाला. उहाँ क पुरनका लोग खूब बढ़िया से भोजपुरी बोलेला.

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एगो बात आउर. पाहिले दू दिन त हम नया रहलीं. टक्सी में घूमलीं. तीसरे दिन एक जाने कहलन की बस में घुमबा त पईसा कम लागी आउर इहाँ की बारे में जनहु के ढेर मिली. हम बिहाने उठलीं आउर बस में चढ़ गईलीं. ओमई पनरह-बीस लोग बईठल रहलन. सब केहू ‘क्रियोल’ (इ मॉरिशस में बोलचाल में खूब प्रयोग होखे ले) भाषा में बोलत/बतियावत रहे. हम चिंता में पड़ गईलीं की टिकठ कईसे लेब? का बोलले पर टिकठ मिली? इहे कुल सोचत रहलीं, तबले केहू क भोजपुरी में आवाज़ आईल, ‘तनी रोकिहा हो.’ हमके लागल जईसे की हम अपनी जिला (गाजीपुर) में बाड़ी. अईसन जगह पर भोजपुरी सुन के लागल की अब सब सही हो जाई. हिंदी में मगले पर टिकठ मिल गईल. बातचीत में पता चलल की बस से घुमल जा सकेला. पता-ठिकाना खोजले में दिकत ना होई. भोजपुरी काफी लोग समझ लेला.

दुई दिन बाद उहाँ भोजपुरी के आगे बढ़ावे क काम करे वाली एगो मैडम डॉ. सरिता बुद्धू हमके पेट्टीराफ्रे गाँव में ले गईलीं. उहाँ जाके पता चलल कि आजकल सगरो मॉरिशस में पच्चीस जगह भोजपुरी के सीखे क स्कूल चलत बा. ओह स्कूल में भोजपुरी गीत/भजन कीर्तन गावे आउर पढ़ावे क काम मेहरारुये करेलीं. बहुत दिन बाद मॉरिशस की ओह गाँव में झूमर देखलीं. अपनी गाँव में पवंरिया के नाचत देखले रहलीं. हमनी के इहाँ त केहुकी की घरे लईका होखे त पवंरियां माँगे आवे स. सोहर गावें और नेग लें. ठीक ओयिसने झूमर मॉरिशस में देखलीं. बीस गो मेहरारू दोहरी ताल पर ढोलक बजा के गावत रहलीं जा आउर दूगो मेहरारू नाचत रहलीं जा. ठीक वोइसहीं जईसे हमरा गाँव में शनिचर के बयिठकी होखत रहे. उ लोग निरगुन, पूर्वी, छपरहियो जानत रहलीं जा. दोहरी झाल बजा के आउर ठेंघुनिया के मेहरारुन के गावत पहिली बार देखलीं. लेकिन इतना सुघर लागत रहे नू की अब लिखे खातिर शब्द ना मिलत बा. हमके तनिको पता ना चालत रहे कि हम दूसरी देश में हईं.

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ओह गाँव में कुल हो-हवा गईल त एगो मेहरारु से गावेवाला समूह के बारे में कुल जानकारी लिहलीं. वहां के स्कूल में ‘गीत गवाई’ की संगे भोजपुरी पढ़ावे क काम भी कईल जाला. ये लोगन की प्रयास से भोजपुरी के यूनेस्को में ‘विश्व धरोहर’ क मान्यता मिल गईल बा. मतलब कि भोजपुरी के बढ़ावे खातिर यूनेस्को सहयोग करी. आप के बतावत चलीं कि इ बहुत बड़हर सफलता बा. एह प्रयास से दुनिया में भोजपुरी के अलग पहिचान मिली.

‘गीत गवाई’ में गावे वाली मेहरारू दुनिया के कई देश में घूमके गावत बाड़ी जा. उनहन लोगन के लगन के कारन मॉरिशस सरकार की तरफ से सहयोग मिलत बा. गीत गवाई क पच्चीसगो स्कूल सरकारी सहयोग से चलत बा. एमे सबसे सही काम इ होत बा की नया-नया लईका-लईकिन के ‘भोजपुरी क सुघरता’ बतावल सिखवाल जात बा. सरिता जी आज उहाँ भोजपुरी के स्थायी बनावे की प्रयास में जुटल बाड़ीं. उनकर मेहनत देखल जा सकेला. जईसे कि छोट लईकन के पढ़े खातिर भोजपुरी में किताब बनत बा. छोट-मूट गीत/कविता लिखल जात बा. कई लोग त पुरान गीत के नयका रंग में ढाल देत बाड़न जा.

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भारत से बहरे सूरीनाम, गयाना आउर त्रिनिडाड में भोजपुरी बोलल जाले. लेकिन भोजपुरी के लेके एतना सुघर कोशिश कहीं ना देखेके के मिलल. भारते में देख लिहीं. इहां भोजपुरी गावें-घरे में जवन बा, ओतने बा. जे शहराती हो गयल बा, उ तनी-मनी केहू से बोले-बतियावे में प्रयोग क देला. भाषा क पहिचान की हिसाब से सोचब त इ कहले में तनिको संकोच ना होखे के चाही कि भोजपुरिया माटी में जनमल लोग भोजपुरी के ‘अपना स्वाभिमान आउर सम्मान’ से ना जोड़ पउलन जा. यदि जोड़ल गईल रहत त ओकरा में जवन बुराई घुसावल जात बा, लोग ओकर विरोध करत.

मॉरिशस में भोजपुरी के लेके जवन प्रयास होत बा, ओकरा से सिखले क जरुरत बा. आज अगर ठीक से काम कयल जाव त भोजपुरी के लोक में जवन खासियत ह, ओकरा के सबके सामने लावल जा सकेला. दुनिया में कईगो अईसन विश्वविद्यालय बाड़न सो जहाँ स्थानीय भाषा/बोली में पढ़ाई होले. खोज क काम कईल जाला. लेकिन इ तबे हो सकेला जब कुछ पढ़ल-लिखल लोग ये बारे में सोची आउर भोजपुरी के अपनी स्वाभिमान-सम्मान से जोड़ी. जबले ठीक से प्रयास ना कईल जाई, तबले कुछ सुघर बनी नाहीं.

आपके शहर से (पटना)

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