08 फऱवरी, 1928 के जब पूरा देश में साइमन कमीशन के विरोध होखत रहे, लखनऊ में पंडित जवाहरलाल नेहरू अउर गोविंद बल्लभ पंत पर अंगरेजी पुलिस एतना लाठी बरसवलसि कि पंत जी के गंभीर चोट आ गइल. कहल त इहो जाला कि नेहरू जी के घेराईल देखि के पंत जी उनका ओर बढ़ले. भारी अउर विशाल शरीर के पंत जी नेहरू जी के ढांपि लिहले अउर कुल्हि लाठी उनकरे ऊपर गिरल. ख्याल रखल जाउ कि लाहौर में ओहि साइमन कमीशन के विरोध में लाला लाजपत राय के उपर एतना लाठी पड़ल रहे कि पहिले से बेमार लाला जी गंभीर रूप से घाही हो गइले. ओहि चोट से बाद में लाला जी के प्राण भी चलि गईल.
बात पंत जी के होखत बा. नेहरू अउर पंत की दोस्ती जिनगी भर बनल रहि गईल. नेहरू जी के निधन के ढाई साल पहिलहिं पंत जी चलि बसल रहले. तब नेहरू जी एके लाइन कहले रहले-हम बेसहारा हो गइनीं. ओकरा पहिले, जब प्रधानमंत्री नेहरू के बुझाइल कि सरदार पटेल के निधन के बाद गृह मंत्रालय ठीक से नईखे चलत, तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री गोविंद बल्लभ पंत के केंद्र में बोला लिहले. पंत जी के प्रसिद्धि अइसन की उत्तर प्रदेश के कांग्रेस विधायक दल एगो प्रस्ताव पास कइलसि कि पंत जी के उत्तरे प्रदेश में रहे दिहल जाऊ. पंत जी विधायक लोगन के मनवले कि दिल्ली में देश अउर नेहरू जी के मदद के जरूरत बा, तब उनकरा के छोड़ल गईल.
पंत जी के ई प्रसिद्धि असहिं ना मिलि गईल रहे. साल 1921, 30,32, 34 और 42 के आंदोलन के मिलाके उहां के करीब 10 साल जेलन में बंद रहलीं. आज जवना के उत्तराखंड कहल जाला, ओहमें कुमाऊं में अल्मोड़ा के खूंट गांव में पैदा भईल पंत जी के पहाड़ के हर कठिनाई मालूम रहे. पहाड़ी लोगन में दबंगन अउर खास करि के अंगरेजन के सामान मुफ्त में ढोए के परत रहे. पंत जी एकरा खिलाफ आवाज उठवले, आंदोलन भईल अउर बेगारी प्रथा के खात्मा होखल. एही तरे उहवां के पानी के जगहा, जवना के बावड़ी कहल जाला, ओसे दलित लोगन के पानी लेबे के अधिकार ना रहे. पंत जी एहू छूआछूत के खिलाफ खड़ा भईले अउर सफल रहले. वकालत करसु त अइसन कि जे सांच ना बतावे, ओकर मोकदमवे ना लेसु. आजादी के आंदोलन के बीच म्युनिस्पल कॉरपोरेशन में रहत पंत जी जनता के भलाई खातिर कई गो काम कईले. साल 1921 में गांधी जी के असहयोग आंदोलन में कूदि गईले.
साल 1925 में काकोरी कांड के क्रातिकारी लोगन खातिर मुकदमा लड़े में भी पंत जी के भागीदारी रहे. फेरु 1927 में रामप्रसाद बिस्मिल के संगे उनकर साथी लोगन के छोडावे खातिर मदनमोहन मालवीय जी के संगे वायसराय के चिट्ठी लिखे में भी शामिल रहले. अइसे ऊ मंसूबा गांधी जी के रजामंदी ना मिलला से पूरा ना भईल. जब 1934 में विधायिका चुनाव भईल त पंत जी भी चुनाव लड़ले. सेंट्रल लेजिस्लेटिव के मेंबर भईले. ओहि टाइम 1937 से 1939 तक तब के संयुक्त प्रांत यानी युनाइटेड प्राविंस (यूपी) के प्रीमियर बनले. बाद में सभे जानत बा कि 1946 से केंद्र में गृहमंत्री बने तक उत्तर प्रदेश के पहिला मुख्यमंत्री के रूप में पंत जी के पहिचान बा.
त पंत जी के ई पहिचान के कांग्रेस पार्टी के अंदरो बड़ा धाक रहे. एह टाइम चुनाव चलत बा. चुनावे के एगो कहानी ह. पंत जी कांग्रेस पार्टी के उम्मीदवार लोगनि के लिस्ट लेके दिल्ली पहुंचल रहले. केंद्रीय चुनाव समिति ओहमे दुचारि गो बदलाव कइ देहलसि. एह पर पंत जी कहले कि बदलाव मंजूर बा, एकरा संग बस एगो निवेदन बा कि एह सूची से हमार नाम निकाल दिहल जाऊ. केंद्रीय चुनाव समिति में खुदे पंडित नेहरू अउर मौलाना अब्दुल कलाम आजाद नियर लोग बइठल रहे. सभे सकता में आ गईल. आजाद सबसे बड़ रहले. ऊ बोलले-जवाहर, देख तार पंत जी का कह तारे. एह पर नेहरू जी के जवाब रहे- पंत जी जवन लिस्ट ले आइल बड़े, ओकरे के अंतिम समझल जाऊ. पंत जी के बिना हमनि के उत्तर प्रदेश ना चला सकेलिंजा.
बहरहाल, नेहरू जी अउर पूरा देश के भरोसा पंत जी कायम रखले. उत्तर प्रदेश में जमींदारी परथा के पूरी तरह से खात्मा पंते जी करवले रहलें. जमींदार लोगन के जरिए राजस्व वसूली बंद कइला के बदला में जमींदारन के कुछ रुपया दिहल जात रहे. ओकरा के प्रीवीपर्स कहल जात रहे. पंत जी ओकरा के बंद करा दिहलें. केंद्रीय गृहमंत्री के हैसियत से पटेल जी देसी रियासतन के एक कईले, त बाद में पंत जी एही हैसियत से भाषाई राज्यन के स्थापना करवलें. पहिले बुझाइल कि एसे राज्यन में दूरी बढ़ी, बाकिर समय के साथ पंतजी के कदम सही साबित भईल.
ईमानदारी अइसन कि मुख्यमंत्री के रूप में पता चलल कि मंत्रिमंडल के बइठक में नास्ता सरकारी पईसा से आइल बा, त कहले कि मीटिंग में सरकारी पईसा से खाली चाय आई, नास्ता के खर्चा हम देबि. काम करेके ललक अइसन कि अंग्रेजी अत्याचार से शरीर काम करे लायक ना रहे, बाथरूम में बहुत टाइम लागे, त बाथरूम में भी फाइल देखे के टेबल लगवा लिहल. असहि-थोड़े कहाइल बा- मूड़ हिलावें भले पंत जी….
(डॉ. प्रभात ओझा वरिष्ठ पत्रकार हैं, आलेख में लिखे विचार उनके निजी हैं.)
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