Bihar Election Result 2020 Live: कहलगांव विधानसभा सीट से कांग्रेस को करारी हार

Bihar Election Result: कहलगांव से बीजेपी की जीत.
Bihar Assembly Election Result 2020 Live Updates: कहलगांव विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के पवन कुमार यादव ने कांग्रेस 42,893 मतों से हारी.
- News18 Bihar
- Last Updated: November 11, 2020, 2:18 AM IST
भागलपुर. कहलगांव विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी के पवन कुमार यादव ने कांग्रेस के शुभानंद मुकेश को 42,893 मतों से हराया. बिहार में कांग्रेस (Congress) की मजबूत सीटों में से एक है कहलगांव विधानसभा सीट (Kahalgaon assembly seat). यहां से पार्टी के वरिष्ठ नेता सदानंद सिंह (Sadanand Singh) बारह बार चुनाव लड़ चुके हैं. इनमें से नौ बार जीत दर्ज कर उन्होंने बिहार में सबसे अधिक बार विधानसभा पहुंचने का रिकॉर्ड बनाया है. लेकिन इस बार सदानंद सिंह का चेहरा चुनावी अखाड़े में नहीं होगा क्योंकि उन्होंने चुनाव नहीं लड़ने का ऐलान कर दिया है. अपनी विरासत को संभालने के लिए उन्होंने अपने पुत्र शुभानन्द मुकेश (Shubhanand mukesh) को अखाड़े में ताल ठोकने के लिए उतारने की घोषणा की है. जिसके बाद से लगातार शुभानन्द मुकेश क्षेत्र में अपनी पैठ बनाने के लिए जनसम्पर्क में जुटे हैं.
दो गठबंधन के बीच मुकाबला
कहलगांव में इसबार चुनाव बहुत ही रोचक होने वाला है. दरअसल मुख्य मुकाबला कांग्रेस बनाम एनडीए ही है. 2015 के चुनाव में लोजपा कहलगांव में दूसरे नम्बर पर थी. इसबार देखना दिलचस्प रहेगा कि एनडीए के किस घटक दल के खाते में यह सीट जाती है क्योंकि कहलगांव के सियासत में यह भी खास मायने रखता है. बता दें कि वर्ष 2010 में यहां जदयू से कहकशां परवीन चुनाव लड़ी थीं और दूसरे नम्बर पर रही थीं.
सामाजिक-राजनीतिक समीकरणकहलगांव विधानसभा क्षेत्र में कहलगांव,सबौर और सन्हौला तीन प्रखंड आते हैं. 43 ग्राम पंचायत वाले इस विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाता 303349 हैं,जिसमें पुरुष मतदाता 1 43310 और महिला मतदाता 1 60 031 और 8 अन्य हैं. सामाजिक और जातीय समीकरण की बात करें तो यहां सबसे अधिक मुस्लिम वोटर 20 फीसदी हैं. कुर्मी 12, यादव 10, कोयरी 9 फीसदी वोटर हैं. सवर्णों में राजपूत व ब्राह्मणों की संख्या 8 फीसदी के करीब है.
17 में 13 बार कांग्रेस की जीत
कहलगांव में 17 में 13 चुनाव कांग्रेस ने जीती है. 1951 में यहां से रामजन्म महतो पहले विधायक बने, जो कांग्रेस से थे. 1957 और 1962 के चुनाव में सैयद मकबूल अहमद जीते, जो श्रीकृष्ण सिंह मंत्रिमंडल के प्रमुख मंत्रियों में से एक थे. मगर 1967 में कम्युनिस्ट पार्टी के नागेश्वर सिंह ने यहां से चुनाव जीता. अब तक हुए 19 चुनावों में कांग्रेस यहां से 13 बार जीत चुकी है. एक बार कम्युनिस्ट, दो बार जनता दल और एक बार जदयू उम्मीदवार जीते हैं. जनता दल दो, कम्युनिस्ट-जदयू एक-एक बार जीते हैं.
विरासत बचाने की सियासत
सदानंद सिंह वर्ष 1969 में कम्युनिस्ट के नागेश्वर सिंह को हराकर कांग्रेस से विधायक बने थे. 1985 में कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया, जिसके बाद उन्होंने निर्दलीय लड़ चुनाव जीता. सदानंद को 1990 और 1995 के चुनाव में जनता दल के महेश मंडल और 2005 में जदयू के अजय मंडल से शिकस्त मिली. इस बार सदानंद सिंह का बेटा चुनावी मैदान में होंगे ऐसे में देखना दिलचस्प रहेगा कि वे अपनी पिता की विरासत को कितना आगे बढ़ा पाते हैं.
ऐतिहासिक-सांस्कृतिक महत्व
यह क्षेत्र एनटीपीसी और विक्रमशिला विश्वविद्यालय के भग्नावशेष के लिए विश्व मे जाना जाता है. यहां प्रधानमंत्री ने केन्द्रीय विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा की है. गंगा तट पर बटेश्वर स्थान है और सालों भर सैलानी विक्रमशिला भग्नावशेष और बटेश्वरस्थान घूमने आते हैं. लोगों के जीविका का प्रमुख साधन कृषि है. मुख्य रूप से आम और हरी मिर्च के अलावे दलहन की खेती होती है.
दो गठबंधन के बीच मुकाबला
कहलगांव में इसबार चुनाव बहुत ही रोचक होने वाला है. दरअसल मुख्य मुकाबला कांग्रेस बनाम एनडीए ही है. 2015 के चुनाव में लोजपा कहलगांव में दूसरे नम्बर पर थी. इसबार देखना दिलचस्प रहेगा कि एनडीए के किस घटक दल के खाते में यह सीट जाती है क्योंकि कहलगांव के सियासत में यह भी खास मायने रखता है. बता दें कि वर्ष 2010 में यहां जदयू से कहकशां परवीन चुनाव लड़ी थीं और दूसरे नम्बर पर रही थीं.
सामाजिक-राजनीतिक समीकरणकहलगांव विधानसभा क्षेत्र में कहलगांव,सबौर और सन्हौला तीन प्रखंड आते हैं. 43 ग्राम पंचायत वाले इस विधानसभा क्षेत्र में कुल मतदाता 303349 हैं,जिसमें पुरुष मतदाता 1 43310 और महिला मतदाता 1 60 031 और 8 अन्य हैं. सामाजिक और जातीय समीकरण की बात करें तो यहां सबसे अधिक मुस्लिम वोटर 20 फीसदी हैं. कुर्मी 12, यादव 10, कोयरी 9 फीसदी वोटर हैं. सवर्णों में राजपूत व ब्राह्मणों की संख्या 8 फीसदी के करीब है.
17 में 13 बार कांग्रेस की जीत
कहलगांव में 17 में 13 चुनाव कांग्रेस ने जीती है. 1951 में यहां से रामजन्म महतो पहले विधायक बने, जो कांग्रेस से थे. 1957 और 1962 के चुनाव में सैयद मकबूल अहमद जीते, जो श्रीकृष्ण सिंह मंत्रिमंडल के प्रमुख मंत्रियों में से एक थे. मगर 1967 में कम्युनिस्ट पार्टी के नागेश्वर सिंह ने यहां से चुनाव जीता. अब तक हुए 19 चुनावों में कांग्रेस यहां से 13 बार जीत चुकी है. एक बार कम्युनिस्ट, दो बार जनता दल और एक बार जदयू उम्मीदवार जीते हैं. जनता दल दो, कम्युनिस्ट-जदयू एक-एक बार जीते हैं.
विरासत बचाने की सियासत
सदानंद सिंह वर्ष 1969 में कम्युनिस्ट के नागेश्वर सिंह को हराकर कांग्रेस से विधायक बने थे. 1985 में कांग्रेस ने उनका टिकट काट दिया, जिसके बाद उन्होंने निर्दलीय लड़ चुनाव जीता. सदानंद को 1990 और 1995 के चुनाव में जनता दल के महेश मंडल और 2005 में जदयू के अजय मंडल से शिकस्त मिली. इस बार सदानंद सिंह का बेटा चुनावी मैदान में होंगे ऐसे में देखना दिलचस्प रहेगा कि वे अपनी पिता की विरासत को कितना आगे बढ़ा पाते हैं.
ऐतिहासिक-सांस्कृतिक महत्व
यह क्षेत्र एनटीपीसी और विक्रमशिला विश्वविद्यालय के भग्नावशेष के लिए विश्व मे जाना जाता है. यहां प्रधानमंत्री ने केन्द्रीय विश्वविद्यालय खोलने की घोषणा की है. गंगा तट पर बटेश्वर स्थान है और सालों भर सैलानी विक्रमशिला भग्नावशेष और बटेश्वरस्थान घूमने आते हैं. लोगों के जीविका का प्रमुख साधन कृषि है. मुख्य रूप से आम और हरी मिर्च के अलावे दलहन की खेती होती है.