लोकसभा चुनाव: कांग्रेस के गढ़ में BJP की बाजीगरी के बाद अब RJD-JDU की जंग

फाइल फोटो
आरजेडी के शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल और जेडीयू के अजय कुमार मंडल के बीच सीधी लड़ाई मानी जा रही है.
- News18 Bihar
- Last Updated: April 17, 2019, 12:30 PM IST
भागलपुर लोकसभा क्षेत्र कांग्रेस का मजबूत गढ़ मानी जाती थी, लेकिन 1989 के भागलपुर दंगे के बाद से कांग्रेस बैकफुट पर चली गयी. इसके बाद एक भी चुनाव कांग्रेस नहीं जीत पायी. 1989 से 1996 तक इस सीट पर जनता दल का कब्जा रहा. 1991 के चुनाव से बीजेपी ने दस्तक देने के साथ ही पैठ भी बनानी शुरू कर दी. 1996 के बाद बीजेपी और आरजेडी ही मुख्य मुकाबले में रहा. इस बार भी दोनों ही ओर से गठबंधनों के बीच मुकाबला है.
आरजेडी के शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल और जेडीयू के अजय कुमार मंडल के बीच सीधी लड़ाई मानी जा रही है. हालांकि बीएसपी से पूर्व आयुक्त मोहम्मद आशिकी इब्राहिमी, एसयूसीआई से दीपक कुमार, आप से सत्येन्द्र कुमार, भारतीय दलित पार्टी से सुशील कुमार दास, निर्दलीय अभिषेक प्रियदर्शी, निर्दलीय नुरूल्लाह और निर्दलीय सुनील कुमार। भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं.

1991 के बाद से एक तरह से बीजेपी की परंपरागत सीट बन गई. 1991 से अब तक बीजेपी ने एक उपचुनाव सहित चार बार चुनाव जीते हैं. वहीं जेडीयू कभी इस सीट से नहीं जीती है, लेकिन इस बार यह सीट बंटवारे के तहत जेडीयू के खाते में चली गई. वहीं आरजेडी भी कभी दोबारा यहां से अभी तक जीत दर्ज नहीं की है.2014 में बीजेपी से अलग होकर जेडीयू ने चुनाव लड़ा था. इसमें जेडीयू के अबु कैसर तीसरे स्थान पर रहे थे. इस सीट से राजद ने एक बार मात्र 2014 में चुनाव जीता है. दोनों प्रत्याशियों को इतिहास बनाने का मौका है.

भागलपुर में कुल 7 विधानसभा क्षेत्र हैं. सुल्तानगंज को छोड़कर बिहपुर, गोपालपुर, पीरपैंती, कहलगांव, भागलपुर और नाथनगर विधानसभा क्षेत्र भागलपुर लोकसभा के अंतर्गत आता है. पहली बार बनारसी प्रसाद झुनझुनवाला सांसद चुने गए थे.
इस क्षेत्र की विशेषता है कि जनता जिसे पसंद करती है, उसे कई बार संसद जाने का मौका देती है. पहले चुनाव के बाद तीन बार लगातार यहां के मतदाताओं ने भागवत झा आजाद पर भरोसा किया. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद यहां से कांग्रेस के टिकट पर पांच बार सांसद बने.
आजाद ने 1962, 1967,1971, 1980 और 1984 में जीत हासिल की. 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर में लोकदल के टिकट पर डॉ. रामजी सिंह ने भागवत झा को हराया. आजाद ने फिर वापसी की और लगातार दो बार चुने गए.
वहीं जनता दल के टिकट पर चुनचुन यादव ने 1989 से 1996 तक तीन बार चुनाव जीता. जबकि बीजेपी से सैयद शाहनवाज हुसैन 2006 (उपचुनाव) और 2009 में लगातार दो बार यहां से सांसद चुने गए. प्रभाष चंद्र तिवारी और सुबोध राय भी यहां का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.
यहा स्थानीय बनाम बाहरी बड़ा चुनावी मुद्दा रहा है, लेकिन इस बार के चुनाव प्रचार में बाहरी का मुद्दा नहीं उठ रहा है क्योंकि इस बार एनडीए और महागठबंधन के प्रत्याशी भागलपुर जिले के रहने वाले हैं.

दरअसल 2004 में भाजपा ने भागलपुर सीट पर सुशील कुमार मोदी को प्रत्याशी बनाया था. 2006 के उपचुनाव के अलावा 2009 और 2014 के चुनाव में बीजेपी से सैयद शाहनवाज हुसैन प्रत्याशी थे. 2006 और 2009 में आरजेडी प्रत्याशी शकुनी चौधरी मुंगेर जिले से थे.
बहरहाल चुनाव में सामाजिक समीकरण बड़ी भूमिका अदा करते हैं. इस सीट पर मुस्लिम और यादव वोटरों की संख्या सबसे अधिक है. राजनीतिक दलों से मिले आंकड़ों के अनुसार यहां मुस्लिम करीब साढ़े तीन लाख, यादव तीन लाख हैं.
वहीं गंगौता दो लाख, वैश्य डेढ़ लाख, सवर्ण ढाई लाख, कुशवाहा और कुर्मी डेढ़ लाख के करीब हैं. अति पिछड़ा और महादलित मतदाताओं की संख्या भी करीब तीन लाख है. जातीय आंकड़े बताने के लिए काफी है कि यहां की राजनीति में यादव-मुस्लिम के साथ-साथ गंगोता समाज के लोगों का दबदबा है.
आरजेडी के शैलेश कुमार उर्फ बुलो मंडल और जेडीयू के अजय कुमार मंडल के बीच सीधी लड़ाई मानी जा रही है. हालांकि बीएसपी से पूर्व आयुक्त मोहम्मद आशिकी इब्राहिमी, एसयूसीआई से दीपक कुमार, आप से सत्येन्द्र कुमार, भारतीय दलित पार्टी से सुशील कुमार दास, निर्दलीय अभिषेक प्रियदर्शी, निर्दलीय नुरूल्लाह और निर्दलीय सुनील कुमार। भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा रहे हैं.

भागलपुर का प्राचीन विक्रमशिला विश्वविद्यालय
1991 के बाद से एक तरह से बीजेपी की परंपरागत सीट बन गई. 1991 से अब तक बीजेपी ने एक उपचुनाव सहित चार बार चुनाव जीते हैं. वहीं जेडीयू कभी इस सीट से नहीं जीती है, लेकिन इस बार यह सीट बंटवारे के तहत जेडीयू के खाते में चली गई. वहीं आरजेडी भी कभी दोबारा यहां से अभी तक जीत दर्ज नहीं की है.2014 में बीजेपी से अलग होकर जेडीयू ने चुनाव लड़ा था. इसमें जेडीयू के अबु कैसर तीसरे स्थान पर रहे थे. इस सीट से राजद ने एक बार मात्र 2014 में चुनाव जीता है. दोनों प्रत्याशियों को इतिहास बनाने का मौका है.

भागलपुर का विख्यात महर्षि मेहीं आश्रम
भागलपुर में कुल 7 विधानसभा क्षेत्र हैं. सुल्तानगंज को छोड़कर बिहपुर, गोपालपुर, पीरपैंती, कहलगांव, भागलपुर और नाथनगर विधानसभा क्षेत्र भागलपुर लोकसभा के अंतर्गत आता है. पहली बार बनारसी प्रसाद झुनझुनवाला सांसद चुने गए थे.
इस क्षेत्र की विशेषता है कि जनता जिसे पसंद करती है, उसे कई बार संसद जाने का मौका देती है. पहले चुनाव के बाद तीन बार लगातार यहां के मतदाताओं ने भागवत झा आजाद पर भरोसा किया. बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री भागवत झा आजाद यहां से कांग्रेस के टिकट पर पांच बार सांसद बने.
आजाद ने 1962, 1967,1971, 1980 और 1984 में जीत हासिल की. 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर में लोकदल के टिकट पर डॉ. रामजी सिंह ने भागवत झा को हराया. आजाद ने फिर वापसी की और लगातार दो बार चुने गए.
वहीं जनता दल के टिकट पर चुनचुन यादव ने 1989 से 1996 तक तीन बार चुनाव जीता. जबकि बीजेपी से सैयद शाहनवाज हुसैन 2006 (उपचुनाव) और 2009 में लगातार दो बार यहां से सांसद चुने गए. प्रभाष चंद्र तिवारी और सुबोध राय भी यहां का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं.
यहा स्थानीय बनाम बाहरी बड़ा चुनावी मुद्दा रहा है, लेकिन इस बार के चुनाव प्रचार में बाहरी का मुद्दा नहीं उठ रहा है क्योंकि इस बार एनडीए और महागठबंधन के प्रत्याशी भागलपुर जिले के रहने वाले हैं.

भागलपुर का प्रसिद्ध दिगम्बर जैन मंदिर
दरअसल 2004 में भाजपा ने भागलपुर सीट पर सुशील कुमार मोदी को प्रत्याशी बनाया था. 2006 के उपचुनाव के अलावा 2009 और 2014 के चुनाव में बीजेपी से सैयद शाहनवाज हुसैन प्रत्याशी थे. 2006 और 2009 में आरजेडी प्रत्याशी शकुनी चौधरी मुंगेर जिले से थे.
बहरहाल चुनाव में सामाजिक समीकरण बड़ी भूमिका अदा करते हैं. इस सीट पर मुस्लिम और यादव वोटरों की संख्या सबसे अधिक है. राजनीतिक दलों से मिले आंकड़ों के अनुसार यहां मुस्लिम करीब साढ़े तीन लाख, यादव तीन लाख हैं.
वहीं गंगौता दो लाख, वैश्य डेढ़ लाख, सवर्ण ढाई लाख, कुशवाहा और कुर्मी डेढ़ लाख के करीब हैं. अति पिछड़ा और महादलित मतदाताओं की संख्या भी करीब तीन लाख है. जातीय आंकड़े बताने के लिए काफी है कि यहां की राजनीति में यादव-मुस्लिम के साथ-साथ गंगोता समाज के लोगों का दबदबा है.