रिपोर्ट: अभिनव कुमार
दरभंगा: आमतौर पर लोग संस्कृत और उर्दू को धर्म विशेष की भाषा मान लेते हैं. जबकि ऐसा है नहीं. भाषा, ज्ञान प्राप्त करने का माध्यम होता है. संस्कृत और उर्दू को लेकर आम धारणा बनाई गई कि यह धर्मविशेष की भाषा है. यह धारणा टूटती है मिथिला की धरती पर. यहां हायाघाट के त्रिवेणी संस्कृत मध्य विद्यालय में मुस्लिम घरों के तीन दर्जन बच्चे संस्कृत पढ़ते हैं. इस विषय में सबसे अधिक नंबर लाते हैं. धाराप्रवाह संस्कृत बोलते हैं. संस्कृत के सहारे ही करियर चमकाने की सोच रहे. वे संस्कृत शिक्षक बनेंगे. मुस्लिम छात्रों का नामांकन होता है, बल्कि ये छात्र संस्कृत पढ़ते भी हैं और कई बार जिला टॉपर तक होते हैं. अन्य विषयों के साथ-साथ यहां के छात्र संस्कृत विषय को पढ़ने के लिए काफी उत्साहित रहते हैं. सबसे खास बात यह है कि इस विद्यालय में 40 फीसदी अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र पढ़ते हैं.
इस विद्यालय के अन्य सभी छात्रों की ही तरह अल्पसंख्यक समुदाय के छात्र भी संस्कृत पढ़ने में अपनी रुचि रखते हैं. इससे यहां पढ़ने वाले इन छात्रों का संस्कृत का ज्ञान भी समृद्ध होता है. अगर बात करें यहां के मुस्लिम बच्चों की, तो इतने धाराप्रवाह संस्कृत में बातें करते हैं कि आप देखकर दंग रह जाएंगे. विद्यालय परिसर में आते ही सभी छात्र आपस में संस्कृत में वार्तालाप करते आप को दिख जाएंगे. न्यूज 18 डिजिटल के कैमरे पर जब छात्राओं ने संस्कृत के श्लोक पढ़े तो सभी संशय भी दूर हो गए.
मुस्लिम छात्रा ने संस्कृत में किया टॉपर
इस विद्यालय में पढ़ने वाले अल्पसंख्यक समुदाय के छात्रों को संस्कृत विषय की इतनी अच्छी जानकारी होती है कि ये संस्कृत विषय में जिला टॉपर भी होते हैं. इसी विद्यालय की छात्रा रही नाजिया परवीन वर्ष 2017 में संस्कृत विषय में जिला टॉपर रही हैं. ऐसे समय में जबकि बिहार में संस्कृत स्कूलों की स्थिति काफी खराब होते जा रही है, नाजिया न सिर्फ यहां पढ़ने वाले अल्पसंख्यक छात्रों के लिए, बल्कि अन्य छात्रों के लिए भी नजीर पेश कर रही हैं कि भाषा भले ही कोई भी क्यों न हो, असली मंजिल तो ज्ञान प्राप्त करने का है.
उदासीनता का शिकार यह संस्कृत विद्यालय
यहां के शिक्षक प्रभाकर कुमार बताते हैं कि इस विद्यालय को अन्य सरकारी स्कूलों जैसे सुविधाएं नहीं मिलती हैं. चाहे वह छात्रों के बौद्धिक विकास से जुड़ी योजनाएं हों या फिर विद्यालय के विकास से जुड़ी योजनाएं. इस विद्यालय के छात्र ना तो तरंग प्रतियोगिता में शामिल हो पाते हैं और ना ही वे बाल संसद का गठन कर पाते हैं. इस कारण से पढ़ाई के साथ-साथ छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए सरकार द्वारा समय-समय पर चलाई जाने वाली योजनाओं से यहां के छात्र वंचित रह जाते हैं. इसका इन छात्रों को हमेशा मलाल रह जाता है.
कुछ अनसुनी और वास्तविक कहानियां
आपको बता दें कि जिला मुख्यालय से लगभग 8 किलोमीटर दूर बहेड़ी मार्ग पर रघुनाथपुर स्थित इस विद्यालय की स्थापना वर्ष 1950 में हुई थी.
जबकि इस विद्यालय को वर्ष 1971 में सरकार से मान्यता भी मिल गई. यहां वर्ग 6 से 8 तक की पढ़ाई होती है. साथ ही इस समय विभिन्न कक्षाओं में कुल 130 छात्र-छात्राएं नामांकित भी हैं.
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