रिपोर्ट- अभिनव कुमार
दरभंगा. आज हम आपको मुंगेर के एक ऐसे युवक की सक्सेस स्टोरी बताने जा रहे हैं, जिसने पैसों के आगे घुटने नहीं टेके. आर्थिक संकट से जूझते हुए आगे की पढ़ाई जारी रखी और आज दरभंगा जिले के सदर प्रखंड के बीडीओ पद पर अपना योगदान दे रहे हैं. हम बात कर रहे हैं मुंगेर जिले के एक साधारण युवक विजय कुमार सौरभ की. जिन्होंने तिलकामांझी विश्वविद्यालय से अपनी पढ़ाई करते हुए दिल्ली तक का सफर आर्थिक संकटों से जूझते हुए पूरा किया. आइए जानते हैं इनकी कहानी.
मन में था आईएएस बनना
विजय कुमार सौरव बताते हैं कि पिता बीएसएनएल में क्लर्क के पद पर हैं. घर की स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण पढ़ाई में काफी रुकावट होती रही. मन में एक एटीट्यूट था कि आईएएस बनना है, लेकिन आर्थिक संकट के कारण कई सारी परेशानियों को झेलना पड़ा. सौरव बताते हैं कि एक बार अपना सामान पैक करके दिल्ली आईएएस की तैयारी के लिए निकलने वाले थे, लेकिन सक्सेस नहीं हो सके. पैसों के अभाव में नहीं निकल पाए. आगे उन्होंने बताया कि उनके दसवीं के शिक्षक नवीन ठाकुर सर राजकुमार कहकर पुकारा करते थे. आईएएस बनने का सपना वही से उनकी तूल पकड़ने लगी.
पढ़ने के लिए इच्छाशक्ति की जरूरत
सर कहा करते थे कि पढ़ने के लिए पैसे की जरूरत नहीं होती है. पढ़ने के लिए तो दिमाग की जरूरत होती है. विद्यार्थी की इच्छाशक्ति अगर हो तो बिना पैसे की भी अच्छी पढ़ाई कर सकता है. सर की यह बात सुनकर विजय कुमार सौरभ के मन में एक बात आई कि जब भारत के सबसे बड़ा सरकारी पद आईएएस का होता है, तो उससे हम वंचित क्यों रहें. लेकिन यहां फिर उनकी आर्थिक संकट सामने आ पड़ी.
65 दिनों में ही पिताजी ने वापस बुलाया घर
उन्होंने बताया कि आईआईटी का एक कोर्स जो अखबार में आया था. 90 दिनों का कोर्स दिल्ली में रहकर करना था. उसमें 65 दिनों में ही उनके पिताजी को छुड़वा कर वापस घर बुला लिया. क्योंकि उनके पास रहने और खाने के लिए पैसा नहीं था. घर की माली स्थिति उस समय ठीक नहीं थी. फिर यहां वह कंपटीशन का तैयारी करने लगे. फिर मुलाकात हुई विवेकानंद सिंह सर से. उन्होंने बताया कि सिविल सर्विस के लिए सिविल सर्वेंट की तरह सोचना होता है.
अब एक ही टारगेट आईएएस बनना
अगर बीपीएससी निकालना है तो सिविल सर्वेंट के तरह बोलना होगा. सिविल सर्वेंट की तरफ चलना होगा. सिविल सर्वेंट की तरह रहना होगा. तभी आप भी पैसे निकाल सकते हैं. फिर सौरभ ने बीपीएससी क्वालीफाई कर लिया. जब उनके पिताजी उनको इसकी जानकारी दिए तो वह ज्वाइन करने के लिए नहीं जा रहे थे. लेकिन परिवार के दबाव और माली हालत ठीक नहीं होने के कारण वह बीडीओ के पद पर अपना योगदान दिया. लेकिन आज भी उनका सपना और टारगेट आईएएस बनने का है.
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