रिपोर्ट : कुंदन कुमार
गया. जिले के किसान अब बंजर भूमि से मालामाल होंगे. किसानों की आर्थिक स्थिति बेहतर बनाने की कोशिश में कृषि विभाग लगा है. किसानों को अब औषधीय फसल लगाने के लिए प्रेरित किया जा रहा है. इस पौधा का नाम है मेंथा. वैसे तो मेंथा की खेती पूरे भारत में की जाती हैं लेकिन इसकी खेती अब गया में भी शुरू हो गई है. मेंथा तेल 1500 रुपए प्रति लीटर से अधिक दाम पर बिकता है.
गया के बांकेबाजार प्रखंड क्षेत्र के बिहरगाई गांव के रहनेवाले किसान राजेन्द्र प्रसाद ने 5 एकड़ खेत में मेंथा की खेती की शुरुआत की है. इसके लिए इन्हें एक कंपनी ने बीज उपलब्ध कराया है. तेल निकालने के लिए प्रोसेसिंग यूनिट भी लगाई गई है. इन्होंने बताया इसके लिए 15 हजार के करीब लागत आई है. प्रोसेसिंग यूनिट से तेल निकालने के बाद इसकी मार्केटिंग कराई जाएगी. मेंथा की खेती नकदी फसल है. सबसे अच्छी बात यह है कि इसकी खेती में लागत काफी कम आती है और इसकी फसल 90 से 110 दिन में तैयार हो जाती है. इस कारण किसानों को जल्द ही खेती में किए गए खर्च का पैसा मोटे मुनाफे के साथ वापस मिल जाता है.
किसान मेंथा के पत्ते को नहीं, बल्कि उससे तेल निकालकर सीधे बाजार में बेचते हैं. वर्तमान में मेंथा का तेल 1500 रुपया से भी अधिक भाव में बिक रहा है. मेंथा की एक एकड़ में की गई खेती से 10-15 किलोग्राम तक तेल निकलता है. एक एकड़ की खेती से 15 हजार रुपये तक की कमाई आसानी से हो सकती है. मेंथा से एक सीजन में होने वाली कमाई किसी भी अन्य फसल से होने वाली कमाई से कई गुना अधिक है.
इसकी रोपाई से पहले पौधे तैयार करने के लिए पहले नर्सरी तैयार की जाती है. नर्सरी तैयार करने के लिए सबसे पहले किसान मेंथा की जड़ लेकर उसे छोटा-छोटा काट लें. फिर उसे जूट के बोरे में दो-तीन दिनों के लिए रख देंगे. ताकि जड़ें विकसित हो जाएं. फरवरी महीने में मेंथा की नर्सरी तैयार करते हैं. क्योंकि इस समय तामपान बढ़ने लगता है. तापमान बढ़ने से मेंथा की बढ़वार अच्छी होती है. फरवरी में लगाई गई नर्सरी 20-25 दिन में तैयार हो जाती है. मेंथा की खेती के लिए ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है. जहां न्यूनतम तापमान 5 डिग्री सेल्सियस और उच्चतम तापमान 40 डिग्री सेल्सियस तक जाता है. वहां पर भी इसकी खेती आसानी से की जा सकती है.
मेंथा पुदीना वंश से संबंधित एक बारहमासी, खुशबूदार औषधीय जड़ी हैं. अंग्रेजी में इसे मिन्ट के नाम से जाना जाता है. मेंथा का वैज्ञानिक नाम मेंथा आरवैन्सिस है. मेंथा में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं जैसे कि ऊर्जा, कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, नियासिन, विटामिन ए, विटामिन सी, सोडियम, पोटेशियम, आयरन, मैग्नीशियम और कैल्शियम आदि. मेंथा की ताजी पत्ती में 0.4 से 0.6 प्रतिशत तेल होता है. तेल का मुख्य घटक मेन्थोल 65 से 75 प्रतिशत, मेन्थोन 7 से 10 प्रतिशत तथा मेन्थाइल एसीटेट 12 से 15 प्रतिशत तथा टरपीन पिपीन, लिकोनीन तथा कम्फीन हैं. तेल का मेन्थोल प्रतिशत, वातावरण के प्रकार पर भी निर्भर करता है. सामान्यतः यह गर्म क्षेत्रों में अधिक होता हैं. इस पौधे के पूरे भाग से औषधियां बनाई जाती है.
इसका उपयोग कई औषधीयों के निर्माण में किया जाता है. मेंथा की पत्तियों में तेल होता है. साथ ही इसमें मेन्थोल भी पाया जाता है. इस मेन्थोल का उपयोग बड़ी मात्रा में दवाइयों, सौंदर्य प्रसाधनों, पेय पदार्थ, सिगरेट, पान मसाला आदि में किया जाता है. इसके अलावा इसका तेल यूकेलिप्टस के तेल के साथ कई रोगों में काम आता है. कभी-कभी गैस दूर करने के लिए, दर्द निवारण हेतु तथा गठिया आदि में भी उपयोग किया जाता है. त्वचा पर हो रही लगातार खुजली से छुटकारा पाने के मेन्थाल का तेल महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है.
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Tags: Agriculture department, Farmer, Gaya news
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