रिपोर्ट- कुंदन कुमार
गया. माउंटेन मैन दशरथ मांझी किसी पहचान के मोहताज नहीं हैं. वही दशरथ मांझी जिन्होंने अकेले 22 साल तक पहाड़ का सीना चीर कर रास्ता बनाया था. सुर्खियों में आने के बाद इनके गांव में सरकार के द्वारा किसान भवन, हेल्थ एंड वैलनेस सेंटर, थाना तथा गहलोर घाटी में सड़क का निर्माण कराया गया. बड़े नेता और अभिनेता दशरथ मांझी से मुलाकात करने पहुंचे और उनके कारनामे की गाथा सुनी, लेकिन गाथा सुनने के बाद फिल्म इंडस्ट्री की टीम गया के गहलोर घाटी पहुंची.
माउंटेन मैन दशरथ मांझी के नाम से दर्जनों फिल्म और डॉक्यूमेंट्री बनाया गया. उनकी पहचान पूरे विश्व में हो गई. मुंबई फिल्म इंडस्ट्री से अभिनेता आमिर खान, नवाजुद्दीन सिद्दीकी इनके गांव गहलोर पहुंचे. अभिनेता आमिर खान की डॉक्यूमेंट्री ‘सत्यमेव जयते’ की शूटिंग इस गांव में हुई. वहीं अभिनेता नवाजुद्दीन सिद्दीकी की फिल्म ‘मांझी द माउंटेन मैन’ के नाम से फिल्म बनाया गया. फिल्म बनाने से पहले इंडस्ट्री वालों ने मांझी के परिवार को सहयोग करने की बात कही थी और फिल्म के कुल कमाई का 2 प्रतिशत हिस्सा माउंटेन मैन के परिवार कोदेने का वादा किया था.
माउंटेन मैन फिल्म के बने लगभग 10 साल होने को है, लेकिन अब तक फिल्म इंडस्ट्री वालों ने अपना किया हुआ वादा पूरा नहीं किया है.
फिल्म बनाने वालों ने नहीं निभाया किया हुआ वादा
दशरथ मांझी के पुत्र भागीरथ मांझी ने ‘न्यूज 18 लोकल’ को बताया कि फिल्म बनाने से पहले 2 प्रतिशत हिस्सा देने का वादा किया गया था, लेकिन फिल्म बनने के बाद आज तक कोई वापस यहां नहीं आया है. 1991 में पिताजी के द्वारा चार कमरा बनाया गया था. वही चार कमरे में हम लोग अपने परिवार के साथ रहते हैं. बांकी घर मिट्टी तथा फूस का बना हुआ है. आज भी हम लोग इंतजार कर रहे हैं कि फिल्म बनाने वाले हमारे गांव आए और जो वादा करके गए थे उसको पूरा करें.
पत्नी की मौत के बात 22 वर्षों तक पहाड़ काटकर बनाया रास्ता
बता दें कि दशरथ मांझी जुनून के पक्के इंसान थे. अपने गांव गहलोर से पहाड़ के उस पार मोहड़ा के जंगल में लकड़ी काटा करते थे. उनकी पत्नी फगुनिया उनके लिए खाना और पानी लेकर जाती थी, लेकिन एक दिन पहाड़ से फिसल कर फगुनिया गिर गई. जिसे अस्पताल ले जाया गया, लेकिन उनके गांव से अस्पताल की दूरी 55 किलोमीटर थी. अस्पताल ले जाने के क्रम में उनकी मौत हो गई. तभी दशरथ मांझी ने ठाना की पहाड़ को काटकर रास्ता बनाएंगे. ताकि अस्पताल की दूरी जो 55 किमी है उसको कम किया जा सके. पहाड़ काटने के लिए उन्होंने घर के बकरी बेचकर छेनी और हथौड़ा खरीदा. उसके बाद अकेले 22 वर्षों तक पहाड़ काटते रहे. रास्ता बनने के बाद वजीरगंज की दूरी जो 55 किलोमीटर था जो घटकर मात्र 10 किलोमीटर रह गया.
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