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Ajab Gajab: मौलवी नहीं बिहार पुलिस के जवान चलाते हैं इस मदरसे को, अपने वेतन से करते हैं मदद

गया शहर में स्थित पुलिस लाइन में अहले सुन्नत मदीनतूल उलूम अनाथालय नामक मदरसा है. इस कोई मौलवी नहीं बल्कि पुलिसकर्मी चला ...अधिक पढ़ें

रिपोर्ट: कुंदन कुमार

गया. मदरसों के खिलाफ राजनीतिक दलों के नेताओं द्वारा कई विवादास्पद बयान दिए जाते हैं, लेकिन कई लोग मदरसों की सेवाओं को स्वीकार करते हुए प्रशंसा भी करते हैं. गया में एक ऐसा मदरसा है जिससे पुलिस विभाग कर्मी जुडे हुए हैं. गया शहर में स्थित पुलिस लाइन में जिला पुलिस का मुख्यालय है. जबकि पुलिस लाइन में ही मदरसा अहले सुन्नत मदीनतूल उलूम अनाथालय नामक मदरसा है. यह 10 से अधिक कट्ठे जमीन पर बना हुआ है. इसमें कुरान कंठस्थ और आधुनिक शिक्षा के साथ प्राथमिक शिक्षा दी जाती है.

इस मदरसे में छात्रों की संख्या करीब 100 है. खास बात यह है कि यह न केवल पुलिस लाइन में स्थित है बल्कि इसे मुस्लिम पुलिसकर्मी चलाते हैं. इस मदरसे की दीवारों पर उन वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के नाम की तख्तियां लगी हैं, जिन्होंने किसी इमारत या बाउंड्री का उद्घाटन किया है. पिछले 30 सालों से मदरसा प्रबंधन समिति के अध्यक्ष, सचिव और कोषाध्यक्ष मुस्लिम पुलिस कर्मी रहे हैं. जब समिति में शामिल पुलिसकर्मी का तबादला होता है तो उसकी जगह कोई दूसरा पुलिस कर्मी ज्वाइन कर लेता है. वर्ष 2002 में जिले के पूर्व एसपी रवींद्रन शंकरन और वर्तमान एडीजी ने पुलिस लाइन में तैनात पुलिस अधिकारियों एवं कर्मियों की बैठक की. साथ ही यह व्यवस्था की थी कि जिले में जितने मुस्लिम पुलिस अधिकारी या कर्मी तैनात होंगे. वे अपने वेतन में से कुछ राशि (इच्छा अनुसार) सीधे मदरसा के खाते में भेज दें. इस राशि को कटने के बाद ही वेतन का भुगतान किया जाए. पुलिस विभाग में पहले ‘पेरोल’ प्रणाली थी, इसलिए यह प्रक्रिया आसान थी. हालांकि पेरोल सिस्टम बंद होने के बाद जैसे ही पुलिसकर्मियों को उनके खाते में वेतन मिलता है, वे खुद मदरसे के खाते में राशि ट्रांसफर कर देते हैं या नकद राशि पहुंचा देते हैं.

1969 में रखी थी मदरसे की नींव
मदरसा अहले सुन्नत मदीनतूल उलूम अनाथालय के मौलाना शब्बीर अशरफी का कहना है कि मदरसा परिसर में एक मस्जिद और एक दरगाह हजरत अंजान शहीद की है. इसका इतिहास 300 साल पुराना है, लेकिन मदरसे की नींव हाफिज जमील अजीजी ने साल 1969 में रखी थी. मदरसा स्थापित होने के बाद यह ठीक-ठाक चला, लेकिन बाद में इसे चलाने में मुश्किलें आने लगीं. जिसके बाद यहां पुलिस लाइन में तैनात मुस्लिम पुलिस अधिकारियों और कर्मियों ने मदरसे के प्रबंधन और रख-रखाव की जिम्मेदारी मोहल्ले के लोगों से ले ली और मोहल्ले के लोगों की सलाह मशवरे के बाद व्यवस्था बहाल की गई. लगभग तीस वर्षों से इस मदरसा को पुलिस के जवान चला रहे हैं जिसकी वजह से मदरसा के रखरखाव समेत इसकी शिक्षा में काफी प्रगति हुई है. हालांकि ऐसा नहीं है कि मुहल्ले के लोगों का सहयोग नहीं मिलता है. मोहल्ले के लोगों की ओर से पुलिस कमेटी को सभी तरह से मदद की जाती है. वहीं, सचिव इम्तेयाज अहमद ने कहा कि यहां के सीनियर पदाधिकारियों से भरपूर सहयोग मिलता है. शिक्षा की व्यवस्था उच्चस्तरीय की गई है. यहां बिहार मदरसा एजुकेशन बोर्ड के तहत पढ़ाई होती है.

तत्कालीन एसपी रवींद्रन शंकरन से जुड़ी हैं यादें
कहा जाता है वर्ष 2003 तक मदरसा स्थल पर कोई बाउंड्री नहीं थी. जहां मदरसा स्थित है, वहां से कुछ दूरी पर मुस्लिम आबादी रहती है. इसलिए शरारती लोग शाम को मदरसा क्षेत्र में आ जाते थे और नशा व ताश खेलने लगते थे. मदरसे के लोगों द्वारा मना किए जाने पर वे झगड़ने पर उतारू हो जाते. जब इसकी सूचना तत्कालीन एसपी रवींद्रन शंकरन को दी गई, तो उन्होंने मामले को गंभीरता से लिया और खुद रोज शाम को मदरसे पहुंच जाते. एसपी के पहुंचते ही पुलिसकर्मी हरकत में आ जाते. बाद में एसपी ने मुस्लिम पुलिसकर्मियों को इकट्ठा कर उनका हौसला बढ़ाया और बाउंड्री करवाने की सलाह दी. जब यहां बाउंड्री का काम शुरू हुआ तो एसपी शंकरन खुद मौजूद थे.उन्होंने स्थानीय थाने को बाउंड्री के काम में बाधा डालने वालों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया. मदरसे के विकास और इसमें आ रही समस्याओं को दूर करने में पूर्व डीआईजी नायर हसनैन खान का भी अहम योगदान रहा है.

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