गोपालगंज. आज पूरा देश डॉक्टर्स-डे मना रहा है. देशवासी डॉक्टर को शुभकामनाएं दे रहे हैं. लेकिन, गोपालगंज मॉडल सदर अस्पताल में उसी डॉक्टर के इंतजार में जच्चा-बच्चा की तड़प-तड़पकर मौत हो गयी. डॉक्टरी पेशे को शर्मसार करनेवाली घटना को जिसने भी देखा, उसकी आंखें नम हो गयी. मरीज की मौत के बाद परिजनों ने हंगामा भी किया, लेकिन किसी अधिकारी ने इसे गंभीरता से नहीं लिया. नतीजा हुआ कि भर्ती मरीज भी अस्पताल की लापरवाही को देखकर लौटने लगे.
मृतक महिला का नाम ज्योति देवी है, जो मांझा थाना क्षेत्र के पुरानी बाजार निवासी चंद्रशेखर प्रसाद की 30 वर्षीय पत्नी थी. मरीज की मौत के बाद परिजनों ने डॉक्टर, स्वास्थ्य प्रबंधक, उपाधीक्षक और सिविल सर्जन को नामजद करते हुए प्राथमिकी दर्ज कराने की बात कही है. वहीं इस मामले में सिविल सर्जन डॉ बीरेंद्र प्रसाद ने जांच कराकर कार्रवाई करने की बात कही है.
दर्द बढ़ता गया और टूटती गयी उम्मीद
मांझा प्रखंड के पुरानी बाजार के रहनेवाले चंद्रशेखर प्रसाद ने बताया कि गुरुवार की रात में लेबर पेन हुआ. जिसके बाद मांझा स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया. वहां नर्सों ने देखा और सुबह होते ही रेफर कर दिया. सदर अस्पताल में जाने के लिए एंबुलेंस का लंबा इंतजार करना पड़ा. इसके बाद सदर अस्पताल में जब 5.30 बजे ज्योति देवी को लेकर परिवार पहुंचा तो वहां इंचार्ज से लेकर डॉक्टर तक गायब थे. नर्सों ने जैसे-तैसे इलाज शुरू किया, इसके छह बजे से डॉक्टर को बुलाने का प्रयास शुरू हो गया. इधर, मरीज का दर्द बढ़ता गया और डॉक्टर के आने का उम्मीद टूटता गया.
मिलता रहा डॉक्टर के आने का आश्वासन
परिजनों ने जब सिविल सर्जन से लेकर स्वास्थ्य प्रबंधक और अधिकारियों को इसकी जानकारी दी तो उनलोगों की तरफ से बार-बार डॉक्टर के आने का आश्वासन मिलता रहा. परिजन अधिकारियों को फोन कर डबडबाई आंखों से गुहार लगाते रहे, मगर डॉक्टर समय पर नहीं पहुंचे. वक्त आठ बजने को हुआ तो प्रसूता के पेट में ही बच्चे की मौत हो गयी. इधर, 9.20 बजे डॉक्टर डेजी पहुंची. उन्होंने आते ही मरीज को देखा और अपना पल्ला झाड़ते हुए मरीज को तुरंत रेफर कर दिया. परिजन नाराज हुए और डॉक्टर से गुहार लगाने लगे कि अब इतने कम समय में गोरखपुर मरीज को लेकर कैसे पहुंच पाएंगे, जब मरीज अंतिम स्टेज में पहुंच गया है. इधर, डॉक्टर कुछ ही मिनट में वहां से निकल गयीं.
ओपीडी में भी नहीं था कोई भी डॉक्टर
शुक्रवार को सदर अस्पताल के ओपीडी कक्ष में भी कोई डॉक्टर नहीं था. महिला एवं प्रसूति विभाग में दर्द और मर्ज से मरीज कराह रहे थे, लेकिन कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था. डॉक्टर की कुर्सियां खाली पड़ी हुई थी. कई ऐसे मरीज थे, जो बिना इलाज कराये ही लौट गये. अब सवाल उठता है कि ऐसे डॉक्टरों पर विभाग या जिला प्रशासन कार्रवाई क्यों नहीं करता. आये दिन अस्पताल में मरीजों की हो रही मौत पर एक्शन कब होगा. ऐसा नहीं है कि अस्पताल में मॉनिटरिंग के लिए सीसीटीवी कैमरा नहीं लगा है. इन सब के बावजूद अधिकारी न तो मॉनिटरिंग करते हैं और न ही अस्पताल की हालात को सुधारने के लिए कदम उठा पाते हैं.
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