जहानाबाद के महावीर यादव उर्फ हलखोरी यादव ने बेटियों को दूध बेचकर अफसर बनाया
राजीव रंजन विमल
जहानाबाद. बिहार के ग्रामीण इलाकों के कई घरों में आज भी बेटियों को बोझ माना जाता है. साधारण परिवार तो गरीबी का रोना रोकर बेटियों को पढ़ाने और आगे बढ़ने का साहस ही छोड़ देते हैं. कुछ लोग तो इसे अपना दुर्भाग्य भी मान लेते हैं. लेकिन, कई ऐसे भी हैं जो इसे अपना मान समझते हैं. जहानाबाद के हरखोरी अलग है छह बेटियां हैं, जिनमें चार सफल हैं. हाथ पर हाथ रखकर हालात का रोना रोने वाले लोगों को महावीर प्रसाद यादव उर्फ हलखोरी यादव के संघर्ष भरी जज्बे की कहानी से प्रेरणा लेने की जरूरत है.
जहानाबाद सदर प्रखंड के मिश्र बिगहा गांव निवासी महावीर प्रसाद उर्फ हलखोरी यादव दूध बेचते हैं. आम से खास इनकी पहचान इसलिए हो गई कि इन्होंने अपने सात संतानों को अन्य ग्रामीणों की तरह अपने पेशे में न लाकर शिक्षा की प्रेरणा दी. इतना ही नहीं अपने बच्चों को शिक्षित करने के लिए अपने घर में स्थायी तौर पर एक शिक्षक भी रख लिया. बस इस उम्मीद में कि अपने बच्चों को पढ़ा लिखाकर उंचे ओहदे पर पहुंचा सकें.
हलखोरी की जुनून ने सभी बाधाओं से संघर्ष करने की शक्ति हासिल कर ली. इस शक्ति का ही परिणाम था कि मवेशियों को पालने के साथ-साथ उसके दूध को जहानाबाद लाकर बेचने का भी धंधा आरंभ किया. इस उम्मीद में की एक दिन समय बदलेगा. सामाजिक परिवेश लड़कियों को उंची तालीम देना तो दूर की बात घर से बाहर निकलने पर भी संदेह की नजरों से देखता था. समाज के लोग लड़कियों को बस साक्षर करने तक ही फर्ज मानते थे. लेकिन, हलखोरी ने अपनी बेटियों सविता, सरिता, निशा, अनुपमा, आभा और स्वीटी के साथ छोटी बेटी की बेहतर तालिम में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी. आज छह में चार बेटियां मुकाम पा चुकी हैं.
महावीर यादव उर्फ हलखोरी यादव की बड़ी बेटी आभा कुमारी शिक्षिका हैं. दूसरी बेटी सविता कुमारी छपरा में बैंक पीओ के पद पर कार्यरत हैं. तीसरी बेटी निशा दिल्ली में इनकम टैक्स अफसर हैं. सबसे छोटी बेटी अनुपम यादव पीजी की डिग्री प्राप्त कर सिविल सेवा की तैयारी में जुटी हैं. स्वीटी कुमारी भी सिविल सेवा की तैयारी कर रही हैं. सरिता की पहले ही शादी हो चुकी है. वो दिल्ली में हैं.
बेटियों के इस हौसले को आगे बढ़ाने में पत्नी शिवरती देवी का भी भरपूर सहयोग मिल रहा था. वह बताती हैं कि तीन बजे सुबह में ही जागकर बच्चों को पढ़ने के लिए उठाते थे. साथ ही इसका भी निगरानी करते थे कि कहीं बीच में पढ़ाई छोड़कर वह सोने नहीं चल जाए. अब बच्चे सफ़लता पा रहे हैं तो शिवरती भी खुश हैं. मां पिता के इस तपस्या और जुनून ने रंग दिखाना शुरू किया. एकमात्र बेटा धमेंद्र कुमार उत्पाद इंस्पेक्टर हैं.
हलखोरी यादव के जुनून का सफर बस यहां तक समाप्त नहीं हुआ है. उसकी छोटी बेटी अभी पटना में रहकर बीपीएससी की तैयारी कर रही है. हलखोरी बताते हैं कि गांव के लोग पहले बेटियों के पढ़ाने पर तरह-तरह के कसीदे गढ़ते थे. लेकिन, इस सफलता को देख सभी हतप्रभ हैं. उन्होंने बताया कि अन्य लोग भी समस्याओं से निराश होने के बजाय उसका डटकर मुकाबला करें. मन से किया गया परिश्रम कभी बेकार नहीं जाता है. गरीबी और समस्याओं का रोना रोना इसका निदान नहीं है. इसके लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है.
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