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Kaimur News : हर साल यूपी से बिहार आता है यह परिवार, बांस की टोकरी बनाकर करता है व्यवसाय

कारीगर बबलू दरकार ने बताया कि पूरे परिवार सहित हर साल ठंड के महीने में यहां आ जाते हैं. यहीं से बांस खरीदकर टोकरी बनाते ...अधिक पढ़ें

रिपोर्ट: आलोक कुमार पाठक

कैमूर: जिले के चैनपुर प्रखंड के अंतर्गत चैनपुर बाजार में इन दिनों यूपी के मऊ जिले के टोकरी बनाने वाले कारीगर अपने व्यवसाय को लेकर काफी सक्रिय दिख रहे हैं. ये कारीगर हर साल चैनपुर प्रखंड में ठंड के आगमन होते ही यूपी से बिहार आ जाते हैं.

टोकरी बनाकर बेचना ही इनका मुख्य व्यवसाय है. यही इनका जीविकोपार्जन का मुख्य स्रोत भी है. मऊ से कारीगरों का परिवार इस बार भी आया हुआ है. जो आस-पास के इलाके से बांस खरीदकर टोकरी सहित अन्य सामान बना रहे हैं. कारीगर बताते है कि महंगाई के इस दौर में मेहनत के अनुसार मेहताना तो नहीं मिल पाता है. इसके अलावा इनके पास कोई दूसरा रोजगार भी नहीं है

खुले आकाश के नीचे झोपडी डाल कर करते हैं काम

पेट का जतन करने के लिए इंसान को क्या-क्या करना पड़ता है और कितने कष्ट झेलने पड़ते हैं. इन कारीगरों से बेहतर भला कौन जान सकता है. यूपी के मऊ जिले से हर साल ये पांच परिवार अपने रोजी- रोटी के लिए बिहार आते हैं और यहां टोकरी बनाने का काम करते हैं.

यहीं पर खुले आकाश के नीचे झोपडी डाल कर पूरे ठंड रहते हैं और अपना रोजगार करते हैं. ये लोग टोकरी बनाने के लिए बांस भी यही से खरीदते हैं. टोकरी बनाकर बेचने के लिए इन्हें बाहर कही नहीं जाना पड़ता है. लोग खुद यहीं आकर टोकरी खरीदते हैं. बरसात का मौसम जैसे ही आता है ये लोग वापस अपने क्षेत्र को लौट जाते हैं.

एक बांस से 6 टोकरी होती हैं तैयार

इस संबंध में जब काम कर रहे कारीगर बबलू दरकार से बात की गई तो उन्होंने बताया कि पूरे परिवार सहित हर साल ठंड के महीने में यहां आ जाते हैं. यहीं से बांस खरीदकर टोकरी बनाते और बेचते हैं. बबलू ने यह भी बताया की एक बांस की कीमत 400 रुपये पड़ती है और उसमें 6 टोकरी तैयार होता है. एक टोकरी की कीमत 150 रुपये पड़ती है.

पूरे दिन 4 लोग मिलकर 10 टोकरी तैयार कर लेते हैं. लोग टोकरी खरीदने खुद आते हैं. लेकिन जो टोकरी बच जाती है, उसे हमलोग घूम-घूम कर भी बेचते हैं. एक साधारण सी टोकरी बनाने में कितनी मेहनत लगती है. इनसे बेहतर कौन जान सकता है? ये लोग दो पैसे कमाने के लिए अपना घर- बार तक छोड़ देते हैं ताकि परिवार का गुजारा किसी तरह चल सके.

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